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खासगी सम्पत्तियों की बिक्री में सरकार के नुमाइंदे भी शामिल रहे

October 06, 2020

  • अग्निबाण ने ही उजागर किए थे सबसे पहले खासगी ट्रस्ट के सिलसिलेवार घोटाले
  • इंदौर के संभागायुक्त के प्रस्ताव पर बिका कुशावर्त घाट तो भारत सरकार के प्रतिनिधि ने डीड में संशोधन कर संपत्तियां बेचने के अधिकार दिलाए

इंदौर। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने कल एक बड़ा फैसला देते हुए खासगी संपत्तियों की बिक्री पर रोक लगाए जाने के साथ ही पहले बिकी संपत्तियों पर संज्ञान लेने के आदेश देते हुए बनाई कमेटी में जहां कलेक्टर और कमिश्नर को सदस्य बनाया है, वहीं इस मामले का सबसे बड़ा सनसनीखेज पहलू यह है कि खासगी ट्रस्ट की बिकी हुई संपत्तियों में सरकार के नुमाइंदे भी शामिल रहे हैं। अभी तक जितनी सम्पत्तियां बेची गई हैं उनके लिए तैयार किए गए प्रस्ताव में जहां ट्रस्ट के ट्रस्टी की हैसियत से संभागायुक्त द्वारा हस्ताक्षर किए जाते रहे, वहीं देखरेख के लिए दी गई मध्यप्रदेश शासन की सम्पत्तियों के लिए बनाए गए खासगी ट्रस्ट की डीड में संशोधन भी भारत सरकार के नुमाइंदे की हैसियत से पीएस बापना और तत्कालीन संभागायुक्त टीएल अग्रवाल के साथ ही एक अन्य ट्रस्टी पीडब्ल्यूडी के सुप्रिंटेंडेंडेंट इंजीनियर पीएस श्रीवास्तव ने भी हस्ताक्षर किए थे।

देशभर के विभाजन के बाद मध्यप्रदेश शासन को इंदौर के होलकर स्टेट की देशभर में फैली मंदिरों और उनकी संपत्तियों के रखरखाव के लिए शासन द्वारा एक खासगी ट्रस्ट बनाकर उसे प्रतिवर्ष 2 लाख 91 हजार 952 रुपए दिए जाने का फैसला लिया गया। इस ट्रस्ट में शासन की ओर से संभागायुक्त एवं लोक निर्माण विभाग के अधिकारी के रूप में दो ट्रस्टी तथा केन्द्र सरकार की ओर से एक ट्रस्टी की नियुक्ति की गई, जबकि निजी ट्रस्ट के रूप में इंदौर की पूर्व महारानी उषाराजे होलकर मल्होत्रा एवं उनके पति को ट्रस्टी बनाया गया। इस ट्रस्ट की डीड 22 जून 1962 को पंजीकृत कराई गई। उक्त ट्रस्ट डीड मेें स्पष्ट उल्लेख है कि यह ट्रस्ट मध्यप्रदेश शासन की सम्पत्तियों की देखरेख के लिए बनाया गया है। उक्त ट्रस्ट के पंजीयन के समय 23-09-1969 को ट्रस्ट के ही सचिव जगदाले द्वारा लिखा गया कि उक्त ट्रस्ट की संपत्तियां मध्यप्रदेश शासन की हैं और ट्रस्ट केवल रखरखाव के लिए बनाया गया है, इसलिए रजिस्ट्र्रार आफ पब्लिक ट्रस्ट द्वारा 10 अगस्त 1971 को पारित एक आदेश द्वारा उक्त ट्रस्ट को शासनाधीन मानते हुए मध्यप्रदेश लोक न्यास अधिनियम 1951 की धारा 36-1 ए के अंतर्गत पंजीकरण से छूट दे दी गई। इस आदेश के 9 माह बाद ही उक्त ट्रस्ट ने आश्चर्यजनक रूप से दिनांक 17-03-1972 को ट्रस्ट डीड का संशोधित विलेख रजिस्टर्ड करा लिया, जिसमें ट्रस्ट की संपत्तियों का विक्रय करने का अधिकार दे दिया गया। इस संशोधित ट्रस्ट डीड पर उषाराजे होलकर के साथ ही उनके पति एससी मल्होत्रा के अलावा भारत सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर पीएस बाफना, इंदौर के तत्कालीन संभागायुक्त पीएल अग्रवाल और लोक निर्माण विभाग के अधिकारी के. श्रीवास्तव के हस्ताक्षर हैं। उक्त ट्रस्ट डीड के संशोधन के बाद रखरखाव के खर्च में शासन द्वारा दिए जा रहे पैसों को कम बताते हुए उसकी पूर्ति के लिए सम्पत्तियों को बेचने का खेल शुरू हुआ और कई संपत्तियां खासगी ट्रस्ट द्वारा औने-पौने भाव में दे दी गईं।

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हैरत की बात तो यह रही कि उक्त ट्रस्ट ने शासन की सम्पत्तियों पर ही दावा करते हुए उन्हें ट्रस्ट के अधीन करने की अदालती कार्रवाई तक शुरू कर दी। इसी योजना के तहत 26 मार्च 2010 को उक्त शासन नियंत्रित ट्रस्ट द्वारा शासन के स्वामित्व की 5310 हेक्टेयर, यानी करीब 12 हजार एकड़ जमीन पर स्वामित्व के लिए वाद लगा डाला। इस दावे में ट्रस्ट के ट्रस्टियों के साथ ही संभागायुक्त वीबी सिंह और पीडब्ल्यूूडी के अधिकारी एसके जैन के हस्ताक्षर भी शामिल रहे। हैरत की बात यह रही कि शासन के अधिकारी भी इस तथ्य को झुठलाते रहे कि उक्त ट्रस्ट मात्र रखरखाव के लिए बनाया गया है, न कि सम्पत्तियों के स्वामित्व का ट्रस्ट है। इस मामले ने तब तूल पकड़ा, जब ट्रस्ट ने औने-पौने दाम में उत्तराखंड के देहरादून स्थित कुशावर्त घाट का ही सौदा कर डाला गया। इस घटना के बाद हरिद्वार के निवासियों के विरोध के बाद उत्तराखंड सरकार द्वारा एक पत्र राज्य शासन के मुख्य सचिव को लिखा गया और संपत्ति बेचे जाने की परिस्थितियां बताई गईं। उक्त मामले में निवासियों द्वारा उच्च न्यायालय में इस संदर्भ में याचिका दाखिल कर घाट को बेचे जाने का विरोध किया गया। उक्त घाट को बेचे जाने के लिए जो प्रस्ताव बनाया गया था उस पर भी इंदौर के तत्कालीन संभागायुक्त बसंतप्रतापसिंह और लोक निर्माण विभाग के अधिकारी के साथ ही ट्रस्ट के ट्रस्टी एससी मल्होत्रा के हस्ताक्षर रहे। उक्त प्रस्ताव के बाद ट्रस्ट के अध्यक्ष मल्होत्रा ने ट्रस्ट के सचिव केएस राठौर को पावर आफ अटार्नी देकर संपत्ति के स्वामित्व और हस्तांतरण के लिए अधिकार दिए। इसके बाद सचिव राठौर ने उक्त पावर आफ अटार्नी के आधार पर ही एक और अन्य पावर आफ अटार्नी विक्रेता के पक्ष में कर डाली, जबकि पावर आफ अटार्नी के आधार पर किसकी को पावर नहीं दिया जा सकता और इसी आधार पर घाट की रजिस्ट्री हो गई।

मुख्यमंत्री ने स्वयं संज्ञान लेकर मनोज श्रीवास्तव को सौंपी थी जांच
उक्त मामले में अग्निबाण द्वारा वर्ष 2012 में लगातार समाचारों का प्रकाशन कर इस बात को उजागर किया गया कि खासगी ट्रस्ट को संपत्तियां बेचने का कोई अधिकार नहीं है। उक्त ट्रस्ट मात्र मध्यप्रदेश शासन की संपत्तियों के रखरखाव के लिए बनाया गया, लेकिन इसके बावजूद ट्रस्ट द्वारा संपत्तियों का विक्रय किया जा रहा है। उक्त ट्रस्ट में शासन के मानद अधिकारियों की मौजूदगी के बावजूद शासन की संपत्तियां औने-पौने दामों में बिकती रहीं और ट्रस्ट कई बहुमूल्य संपत्तियों को कब्जे के आधार पर बेचता रहा। दरअसल जो भी अधिकारी संभागायुक्त के पद पर आए वे लीज डीड के संशोधन के विलेख को आधार मानकर संपत्ति के विक्रय के अधिकार ट्रस्ट में समाहित होना मानते रहे और ट्रस्ट की बैठक में अपनी मौन स्वीकृति ट्रस्टियों को देते रहे। क्योंकि ट्रस्ट में ट्रस्ट की अध्यक्ष महारानी उषादेवी थीं और उनकी ईमानदारी पर शक करने का कोई कारण नहीं बनता, इसलिए शासन के अधिकारी इसे महज एक औपचारिकता मानकर उनके प्रस्तावों को अनदेखा करते रहे। जब अग्निबाण ने इस मामले का लगातार प्रकाशन कर समस्त तथ्यों को उजागर किया और जब यह मामला मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाया गया तो उन्होंने राजस्व मामलों के तगड़े जानकार इंदौर के पूर्व कलेक्टर और उस समय उनके सहयोगी रहे मनोज श्रीवास्तव को जिम्मा सौंपा। श्रीवास्तव ने अपनी रिपोर्ट में अग्निबाण के तमाम तथ्यों को प्रामाणिक मानते हुए जिला प्रशासन को इस मामले में अदालत में जाने के निर्देश दिए।

रामेश्वरम् की 14 एकड़ जमीन भी लगा दी ठिकाने
हरिद्वार की तरह रामेश्वरम् में भी खासगी ट्रस्ट की 14 एकड़ जमीन को ठिकाने लगा दिया गया। वर्षों पूर्व अलग-अलग तीन जगह पर मौजूद इन जमीनों को मात्र 1 करोड़ रुपए में बेचना बताया गया। इसकी शिकायत मिलने पर पूर्व कलेक्टर पी. नरहरि ने रामेश्वरम् जाकर इसकी जांच भी की, जिसमें रामेश्वरम् के ज्योतिर्लिंग से मात्र 25 मीटर दूर स्थित ट्रस्ट की अन्न छत्रबाग नाम की 12 हजार स्क्वेयर फीट की व्यवसाकि जमीन, मंदिर से लगभग 2 किमी दूर हनुमान मंदिर की 3 एकड़ जमीन और 8 किमी दूर पर्वत बाग की 11 एकड़ जमीन2003-04 में बेच दी गई। इसकी भी विस्तृत रिपोर्ट बनाकर कलेक्टर ने संभागायुक्त को सौंपी थी।

नीमच के दल ने पुष्कर की सम्पत्तियों की की थी जांच
हरिद्वार, रामेश्वरम् की तरह पुष्कर में भी खासगी ट्रस्ट की सम्पत्तियों को बिकने की शिकायत आने पर संभागायुक्त ने नीमच कलेक्टर को जांच करने के निर्देश दिए, जिसके चलते 5 सदस्यीय दल पुष्कर गया था, जिसमें डिप्टी कलेक्टर के साथ नायब तहसीलदार के साथ पटवारी की टीम पहुंची और वराह घाट चौक और माली मंदिर के पास स्थित ट्रस्ट की सम्पत्तियों का रिकॉर्ड और भौतिक सत्यापन किया गया। देशभर में स्थित सम्पत्तियों की खरीद-फरोख्त की शिकायत मिलने पर यह जांच शुरू की गई थी और पुष्कर की इन सम्पत्तियों के संरक्षण के लिए नीमच के डिप्टी कलेक्टर को उपसंरक्षक भी नियुक्त किया गया था। यहां की तीनों सम्पत्तियों को स्थानीय लोगों को बेच दिया गया।

कुशावर्त घाट का सौदा दो बार हो गया
हरिद्वार स्थित कुशावर्त घाट का सौदा तो दो-दो बार किया गया। पहली बार 2008 में अनिरुद्ध कुमार सिखोला ने अपने पक्ष में इसका सौदा करवाया और दूसरी बार 2009 में उनके भाई राघवेन्द्र सिखोला ने अपने पक्ष में रजिस्ट्री करवाई। 5 जून 2008 को ट्रस्ट ने प्रस्ताव पारित कर 50 लाख के इस सौदे पर मोहर लगाते हुए 15 लाख वसूल किए और दूसरी बार 2009 में ट्रस्ट सचिव ने राघवेन्द्र के पक्ष में पॉवर ऑफ अटार्नी जारी कर दी, जिसके आधार पर राघवेन्द्र ने अनिरुद्ध और उसकी पत्नी निकिता के पक्ष में घाट और बाड़े का सौदा किया और दोनों ही बार सौदे में एक ही परिवार को चुना गया। बस चेहरे बदल गए। कुशावर्त घाट की भी जांच पूर्व कलेक्टर आकाश त्रिपाठी ने जाकर की थी।

संपत्तियों पर कब्जे होते रहे और ट्रस्ट सोता रहा… बाद में कब्जा करने वालों ने ही औने-पौने दामों में खरीदने के प्रस्ताव देकर कबाड़ ली संपत्तियां
ट्रस्ट की संपत्तियां इंदौर से लेकर पूरे देश में फैली हुई हैं। बनारस में ट्रस्ट की करीब 15 बहुमूल्य संपत्तियां हैं तो वहीं अयोध्या में भी धर्मशालाएं और मंदिर के साथ ही भूमि भी मौजूद है। इसके अलावा इलाहाबाद, हरिद्वार, पुष्कर, पंढरपुर मेें जहां कई संपत्तियां हैं, वहीं रामेश्वरम् तीर्थ में भी एक मंदिर और दो बड़ी भूमियां मौजूद हैं। वंृृदावन में धर्मशाला के अलावा अमरकंटक में दो बड़े मंदिर और धर्मशालाओं के साथ ही कई जमीनें शामिल हैं, वहीं नासिक में गोदावरी नदी का एक हिस्सा और उस पर बने मंदिर-धर्मशालाएं भी ट्रस्ट के हैं। ट्रस्ट की संपत्तियों में पंढरपुर में जहां विशाल जागीर है, वहीं इंदौर के महेश्वर में कई मंदिर, घाट, धर्मशालाएं और भूमियां ट्रस्ट की संपत्तियों में शामिल हैं। इसके अलावा धार, मांडव से लेकर प्रदेश के कई हिस्सों में ये सम्पत्तियां फैली हुई हैं। ट्रस्ट में इंदौर के सरकारी मंदिर और धर्मशालाओं के साथ ही आसपास के देपालपुर, गौतमपुरा में भी ट्रस्ट की संपत्तियां हैं। प्रदेश के छोटे-छोटे गांव, कस्बों और शहरों में खासगी संपत्तियां विद्यमान हैं, जिनका रखरखाव ट्रस्ट को सौंपा गया था। ट्रस्ट को उक्त रखरखाव के बदले 2 लाख रुपए भी नहीं मिलते थे और इतनी रकम में इतनी विशाल संपत्तियों का रखरखाव संभव नहीं था, इसलिए संपत्तियों पर कब्जे होते रहे और जो लोग कब्जा करते थे वे ही उसे औने-पौने दामों में खरीदने का प्रस्ताव ट्रस्ट को देते थे और ट्रस्ट के ट्रस्टी भी कब्जे के आधार पर उक्त संपत्तियों को बेचने का प्रस्ताव शासन के प्रतिनिधियों से पारित करवाकर संपत्तियों को औने-पौने दामों में बेचते रहे।

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