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    ‘अटल टनल’ बनेगी लेह-लद्दाख की जीवनरेखा

  • October 04, 2020

    – योगेश कुमार गोयल

    रोहतांग में समुद्र तल से करीब 10 हजार फीट की ऊंचाई पर बनाई गई ‘अटल टनल’ आखिरकार 10 वर्षों के भीतर बनकर तैयार हो गई। गत वर्ष पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के पश्चात् उनके सम्मान में केन्द्र सरकार द्वारा दिसम्बर 2019 में सुरंग का नाम ‘अटल सुरंग’ रखे जाने का निर्णय लिया गया था। उत्कृष्ट इंजीनियरिंग का बेजोड़ नमूना मानी जा रही इस सुरंग को 3 अक्तूबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा देश को समर्पित कर दिया गया है।

    करीब छह महीने तक भारी हिमपात के कारण बंद रहने वाले रोहतांग दर्रे के नीचे इतनी विशाल सुरंग का निर्माण करना कभी एक सपने जैसा लगता है, जो इंजीनियरों के जज्बे ने पूरा कर दिखाया है। सुरंग के अंदर कटिंग एज टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है। हालांकि शुरुआत में अटल टनल के निर्माण पर करीब 1500 करोड़ रुपये खर्च का अनुमान था किन्तु विकट भौगोलिक परिस्थितियों के कारण इसकी लागत बढ़कर 3500 करोड़ रुपये आई। यह दुनिया की सबसे लंबी राजमार्ग सुरंग है, जो हिमालय की दुर्गम वादियों में पहाड़ों को काटकर बनाई गई है। इस सुरंग की ऐतिहासिक घोषणा 3 जून 2000 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा की गई थी। अटल सरकार द्वारा रोहतांग दर्रे के नीचे सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इस सुरंग का निर्माण कराने का निर्णय लिया गया था और सुरंग के दक्षिणी पोर्टल पर सम्पर्क मार्ग की आधारशिला 26 मई 2002 को रखी गई थी।

    मनाली को लाहौल स्पीति और लेह-लद्दाख से जोड़ने वाली कुल 9.02 किलोमीटर लंबी इस सुरंग के खुल जाने के बाद अब न केवल मनाली-लेह के बीच की दूरी 46 किलोमीटर तक घट जाएगी और दोनों शहरों के बीच लगने वाला समय 4-5 घंटे कम हो जाएगा बल्कि सर्दियों में बर्फबारी के कारण देश से कट जाने वाले हिमाचल प्रदेश के कई इलाके अब सालभर सम्पर्क में रहेंगे। अटल टनल का साउथ पोर्टल मनाली से 25 किलोमीटर की दूरी पर करीब 3060 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है जबकि इसका उत्तरी छोर लाहौल स्पीति के सीसू के तेलिंग गांव में 3071 मीटर की उंचाई पर स्थित है। रोहतांग पास के रास्ते मनाली से लेह जाने में अभीतक 474 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता था लेकिन इस सुरंग के जरिये अब यह दूरी घटकर 428 किलोमीटर रह गई है और करीब छह महीने तक बर्फ की चपेट में रहने वाले लाहौल स्पीति के लोगों की राह भी अब रोहतांग दर्रा नहीं रोक सकेगा। दरअसल पहले घाटी करीब छह महीने तक भारी बर्फबारी के कारण देश के बाकी हिस्सों से कटी रहती थी।

    पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर बनाई गई ‘अटल टनल’ घोड़े की नाल जैसे आकार वाली सिंगल ट्यूब डबल लेन वाली सुरंग है, जो 10.5 मीटर चौड़ी है और मुख्य टनल के भीतर 3.6 गुना 2.25 मीटर की फायरप्रूफ इमरजेंसी एग्जिट टनल बनाई गई है। यह देश की पहली ऐसी सुरंग है, जिसमें आपात स्थिति में एग्जिट टनल साथ में न होकर मुख्य सुरंग के नीचे बनाई गई है ताकि आपातकालीन परिस्थितियों में लोगों को आसानी से इससे बाहर निकाला जा सके। हर 25 मीटर पर एग्जिट तथा इवैकुएशन के साइन हैं और प्रत्येक 500 मीटर पर आपातकालीन निकास की सुविधा है।

    सुरंग के दोनों तरफ आकर्षक प्रवेश द्वार बनाए गए हैं। मनाली की ओर कुल्लवी शैली में जबकि लाहुल की ओर बौद्ध शैली में आकर्षक द्वार हैं। सुरंग के दोनों ओर बनाए गए ये प्रवेश द्वार सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र भी बनेंगे। अटल टनल में दोनों ओर 1-1 मीटर के फुटपाथ हैं और आधा-आधा किलोमीटर की दूरी पर इमरजेंसी एग्जिट भी बनाए गए हैं। सुरंग में आठ किलोमीटर चौड़ी सड़क है और इसकी ऊंचाई 5.525 मीटर है। इसमें प्रत्येक 2.2 किलोमीटर की दूरी पर मोड़ हैं। हर 150 मीटर पर इमरजेंसी कम्युनिकेशन के लिए टेलीफोन कनेक्शन की सुविधा उपलब्ध कराई गई है। इस सुरंग को अधिकतम 80 किलोमीटर प्रति घंटे की गति के साथ प्रतिदिन 3000 कारों और 1500 ट्रकों के यातायात घनत्व के लिए डिजाइन किया गया है। सुरंग के दोनों सिरों पर एंट्री बैरियर्स लगाए गए हैं और सुरंग में शुरुआत और आखिरी के 400 मीटर के लिए गति सीमा 40 किलोमीटर प्रतिघंटा तय की गई है जबकि बीच के रास्ते में गाड़ी 80 किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से चलाई जा सकती है।

    सर्दियों के दौरान -23 डिग्री सेल्सियस जैसे अत्यधिक ठंडे बर्फीले मौसम में भी इंजीनियरों और मजदूरों ने सुरंग का निर्माण कार्य जारी रखा था। सुरंग के निर्माण के लिए ऑस्ट्रेलिया की स्मेक कम्पनी के अलावा ड्रिलिंग के क्षेत्र में महारत रखने वाली ऑस्ट्रिया की कम्पनियों एफकॉन तथा स्ट्रॉबेग के साथ अनुबंध किया गया था। सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के मार्गदर्शन में स्ट्रॉबेग तथा एफकॉन द्वारा निर्मित अटल टनल को सामरिक रूप से भी बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

    दरअसल पीर पंजाल पहाड़ियों पर बनी इस सुरंग के अस्तित्व में आने के बाद सेना लद्दाख और कारगिल तक आसानी से पहुंच सकेगी और बर्फबारी के दौरान अब सैन्य साजो-सामान भी आसानी से पहुंचाया जा सकेगा। सेना के लिए यह सुरंग रणनीतिक दृष्टिकोण से इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख सीमा तक पहुंचने के लिए प्रायः सेना द्वारा जम्मू-पठानकोट राजमार्ग का इस्तेमाल किया जाता रहा है लेकिन चूंकि यह मार्ग पाकिस्तान के करीब से गुजरता है, इसलिए रोहतांग के रास्ते वहां तक पहुंचना ज्यादा सुरक्षित है। पाकिस्तान के साथ कारगिल जंग में भी भारतीय सेना द्वारा इसी रोहतांग मार्ग का ही इस्तेमाल किया गया था। सुरंग के निर्माण से लेह-लद्दाख में सरहद तक पहुंचने के लिए 46 किलोमीटर सफर कम हो गया है और यह सुरंग निश्चित रूप से भारतीय सेना को सामरिक रूप से काफी मजबूती प्रदान करेगी।

    यह सुरंग एक से बढ़कर एक तकनीकी विशेषताओं से लैस है। इसमें प्रत्येक 250 मीटर पर सीसीटीवी कैमरे, प्रसारण प्रणाली, हादसों का स्वतः पता लगाने की प्रणाली स्थापित है और आग लगने की स्थिति में उस पर यथाशीघ्र नियंत्रण पाने के लिए हर 60 मीटर की दूरी पर फायर हाइड्रेंट मैकेनिज्म भी लगाया गया है। प्रत्येक किलोमीटर पर हवा की मॉनीटरिंग की व्यवस्था करने के साथ-साथ पार्किंग की व्यवस्था भी की गई है।

    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कहना है कि यह सुरंग लेह-लद्दाख की जीवनरेखा बनेगी और इस सुरंग के बनने से लेह-लद्दाख के किसानों तथा युवाओं के लिए अब देश की राजधानी दिल्ली सहित दूसरे बाजारों तक पहुंच भी आसान हो जाएगी। बहरहाल, अब एक तरफ बर्फ से लदी रोहतांग की चोटियां होंगी तो दूसरी ओर इन्हीं बर्फीले पहाड़ों के अंदर से गुजरती करीब नौ किलोमीटर लंबी सुरंग, ऐसे में अब अटल सुरंग के खुलने से पर्यटकों का रोमांच भी दोगुना हो जाएगा।

    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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