नई दिल्ली। भारतीय वायु सेना ने अमेरिका को अपने परिवहन बेड़े के सी-130 जे-30 एस सुपर हरक्यूलिस विमानों के बेड़े के लिए अमेरिका से 90 मिलियन डॉलर के स्पेयर पार्ट्स खरीदने का अनुरोध किया था, जिसे अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन ने मंजूरी दे दी है। मौजूदा समय में वायुसेना के पास 11 सुपर हरक्यूलिस हैं। भारत उन 17 देशों में से एक है, जिन्हें अमेरिका ने अपना सी-130 जे सुपर हरक्यूलिस विमान बेचा है।
भारतीय वायुसेना ने अपने परिवहन बेड़े के लिए अमेरिका से 2008 की शुरुआत में छह सी-130जे सुपर हरक्यूलिस खरीदे थे। इसमें से एक विमान प्रशिक्षण मिशन के दौरान 28 मार्च, 2014 को ग्वालियर में दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें सभी 5 सवार मारे गए थे। अक्टूबर 2011 में भारत ने सिक्किम भूकंप राहत कार्यों में इन परिवहन विमानों का इस्तेमाल किया। अनुकूल प्रदर्शन के बाद छह अतिरिक्त विमान दिसम्बर, 2013 में खरीदे। यानी इस समय वायुसेना के परिवहन बेड़े में ग्यारह सी-130जे-30 सुपर हरक्यूलिस हैं। भारतीय वायुसेना ने अप्रैल 2013 में डीबीओ में 16,614 फीट ऊंचाई पर मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट सी-130जे सुपर हरक्यूलिस की लैंडिंग कराकर दुनिया की सबसे ऊंची हवाई पट्टी पर परिवहन विमान उतारने का खिताब हासिल किया था।
भारत ने अपने बेड़े के सी-130 जे सुपर हरक्यूलिस विमान में लगने वाले कई पुर्जों की मरम्मत या वापसी के लिए अमेरिका से अनुरोध किया था। इन पुर्जों में कार्ट्रिज एक्टिवेटेड डिवाइसेज/प्रोपेलेंट एक्टिवेटेड डिवाइसेज, फायर एक्सटिंग्विशर कारतूस, फ्लेयर कार्ट्रिज, बीबीयू-35/बी कारतूस इम्पल्स स्किब शामिल हैं। भारत ने एक अतिरिक्त एएन/एएलआर-56 एम एडवांस्ड रडार वार्निंग रिसीवर शिपसेट के लिए भी ऑर्डर दिया है। इसके अलावा स्पेयर एएन/एएलई-47 काउंटरमेशर्स डिस्पेंसर सिस्टम शिपसेट, दस लाइटवेट नाइट विजन दूरबीन (एफ-5032), दस एएन/एवीएस-9 नाइट विजन गॉगल (एनवीजी) (एफ 4949), जीपीएस और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर का भी ऑर्डर दिया गया है। भारत ने इन उपकरणों के साथ संयुक्त मिशन योजना प्रणाली, क्रिप्टोग्राफिक डिवाइस पुर्जों और लोडर, सॉफ्टवेयर और सॉफ्टवेयर का समर्थन, प्रकाशन और तकनीकी दस्तावेज, कर्मियों को प्रशिक्षण और इससे सम्बंधित उपकरण, ठेकेदार इंजीनियरिंग, तकनीक और अन्य संबंधित प्रयोगशाला उपकरणों की भी मांग की है।
रक्षा सुरक्षा सहयोग एजेंसी ने कहा कि प्रस्तावित बिक्री अमेरिका-भारत के रणनीतिक संबंधों को मजबूत करने में मदद करने के साथ ही अमेरिका की विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा का समर्थन करेगी। अमेरिका चाहता है कि प्रशांत और दक्षिण एशिया क्षेत्र में भारत राजनीतिक स्थिरता, शांति और आर्थिक प्रगति के लिए एक महत्वपूर्ण शक्ति बने। अमेरिकी कांग्रेस की अधिसूचना के अनुसार प्रस्तावित बिक्री से पहले यह सुनिश्चित किया जाना जरूरी है कि पहले से खरीदे गए विमान भारतीय वायु सेना, सेना और नौसेना की परिवहन आवश्यकताओं, स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय मानवीय सहायता और क्षेत्रीय आपदा राहत की जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रभावी ढंग से संचालित होते हैं या नहीं।
अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि इस सौदे से भारतीय वायु सेना अपने उच्च मिशन के लिए जहाजों के बेड़े को बनाए रखने में सक्षम होगी। अमेरिकी नियमों के अनुसार आर्म्स एक्सपोर्ट कंट्रोल एक्ट के तहत ऐसे बड़े सौदों से पहले अधिसूचना जारी करना अनिवार्य है। इस प्रस्तावित बिक्री की समीक्षा करने के लिए सांसदों के पास 30 दिन हैं। इस सौदे को रक्षा प्रमुख लॉकहीड-मार्टिन द्वारा निष्पादित किया जाएगा। बिक्री से पहले अमेरिका यह भी सुनिश्चित करना चाहता है कि इस प्रस्तावित बिक्री से क्षेत्र में बुनियादी सैन्य संतुलन में बदलाव नहीं होगा।
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