संयुक्त राष्ट्र । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में भारत जैसे विशाल लोकतांत्रिक देश की भूमिका को महत्वपूर्ण करार देते हुए कहा है कि संयुक्त राष्ट्र के स्वरूप में बदलाव समय की जरूरत है और इसे देखते हुए भारत को विश्व संस्था में निर्णायक भूमिका मिलनी चाहिए। पीएम मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र को वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से संबोधित करते हुये वैश्विक शांति में भारत की भूमिका को रेखांकित किया और सवाल किया कि संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक देशों में से एक होने के बावजूद वैश्विक संस्था की निर्णय प्रक्रिया से उसे कब तक अलग रखा जायेगा।
उन्होंने कहा , “ संयुक्त राष्ट्र की प्रतिक्रियाओं में बदलाव, व्यवस्थाओं में बदलाव, स्वरूप में बदलाव आज समय की माँग है। भारत में संयुक्त राष्ट्र का जो सम्मान है वह बहुत कम देशों में है। यह भी सच्चाई है कि भारत के लोग संयुक्त राष्ट्र की सुधार प्रक्रियाओं के पूरा होने का लंबे समय से इंतजार कर रहे हैं। आखिर कब तक भारत को संयुक्त राष्ट्र की निर्णय प्रक्रिया से से अलग रखा जायेगा।”
उन्होंने कहा कि आज पूरे विश्व समुदाय के सामने एक बहुत बड़ा सवाल है कि जिस संस्था का गठन आज से 75 साल पहले उस समय की परिस्थितियों में हुआ था, उसका स्वरूप क्या आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने कहा “जिस देश ने वर्षों तक वैश्विक अर्थव्यवस्था का नेतृत्व करने और वर्षों की गुलामी, दोनों को जिया है, जिस देश में हो रहे परिवर्तनों का प्रभाव दुनिया के बहुत बड़े हिस्से पर पड़ता है, उस देश को आखिर कब तक इंतजार करना पड़ेगा? भारतवासी संयुक्त राष्ट्र में अपने योगदान को देखते हुये अपनी भूमिका को देख रहे हैं।”
प्रधानमंत्री ने कहा , “ संयुक्त राष्ट्र जिन आदर्शों के साथ स्थापित हुआ था और भारत की मूल दार्शनिक सोच बहुत मिलती जुलती है, अलग नहीं है। संयुक्त राष्ट्र के इसी हॉल में ये शब्द अनेकों बार गूंजा है- वसुधैव कुटुम्बकम। हम पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं। यह हमारी संस्कृति, संस्कार और सोच का हिस्सा है। संयुक्त राष्ट्र में भी भारत ने हमेशा विश्व कल्याण को ही प्राथमिकता दी है। ”
उन्होंने कहा , “ भारत वो देश है जिसने शांति की स्थापना के लिए लगभग 50 शांति स्थापना मिशनों में अपने जांबाज सैनिक भेजे। भारत वो देश है जिसने शांति की स्थापना में सबसे ज्यादा अपने वीर सैनिकों को खोया है। आज प्रत्येक भारतवासी, संयुक्त राष्ट्र में अपने योगदान को देखते हुए, संयुक्त राष्ट्र में अपनी व्यापक भूमिका भी देख रहा है। भारत के लोग चिंतित हैं कि क्या ये प्रक्रिया कभी तार्किक परिणाम तक पहुंच पायेगी। एक ऐसा देश, जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, एक ऐसा देश, जहां विश्व की 18 प्रतिशत से ज्यादा जनसंख्या रहती है । एक ऐसा देश, जहां सैकड़ों भाषाएं हैं, सैकड़ों बोलियां हैं, अनेकों पंथ हैं, अनेकों विचारधाराएं हैं । जब हम मजबूत थे तो दुनिया को कभी सताया नहीं, जब हम मजबूर थे तो दुनिया पर कभी बोझ नहीं बने। जिस देश में हो रहे परिवर्तनों का प्रभाव दुनिया के बहुत बड़े हिस्से पर पड़ता है, उस देश को आखिर कब तक इंतजार करना पड़ेगा?
श्री मोदी ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के समय की दुनिया निश्चित तौर पर आज से बहुत अलग थी। पूरा वैश्विक माहौल, साधन-संसाधन, समस्याएं-समाधान सब कुछ भिन्न थे। ऐसे में विश्व कल्याण की भावना के साथ जिस संस्था का गठन हुआ, जिस स्वरूप में गठन हुआ वो भी उस समय के हिसाब से ही था। लेकिन आज दुनिया बिल्कुल अलग दौर में हैं। इक्कसवीं सदी में हमारी मौजूदा और भविष्य की आवश्यकताएं और चुनौतियां बदल गयी हैं इसलिए आज यह सवाल प्रासंगिक है कि क्या विश्व संस्था का स्वरूप क्या आज भी प्रासंगिक है?
उन्होंने कहा , “ सदी बदल जाये और हम न बदलें तो बदलाव लाने की ताकत भी कमजोर हो जाती है | अगर हम बीते 75 वर्षों में संयुक्त राष्ट्र की उपलब्धियों का मूल्यांकन करें, तो अनेक उपलब्धियां दिखाई देती हैं। लेकिन इसके साथ ही अनेक ऐसे उदाहरण भी हैं, जो संयुक्त राष्ट्र के सामने गंभीर आत्ममंथन की आवश्यकता खड़ी करते हैं। ये बात सही है कि कहने को तो तीसरा विश्व युद्ध नहीं हुआ, लेकिन इस बात को नकार नहीं सकते कि अनेकों युद्ध हुए, अनेकों गृहयुद्ध भी हुए। कितने ही आतंकी हमलों ने पूरी दुनिया को थर्रा कर रख दिया, खून की नदियां बहती रहीं। इन युद्धों में, इन हमलों में, जो मारे गए, वो हमारी-आपकी तरह इंसान ही थे। वो लाखों मासूम बच्चे जिन्हें दुनिया पर छा जाना था, वो दुनिया छोड़कर चले गए। कितने ही लोगों को अपने जीवन भर की पूंजी गंवानी पड़ी, अपने सपनों का घर छोड़ना पड़ा। उस समय और आज भी, संयुक्त राष्ट्र के प्रयास क्या पर्याप्त थे? पिछले 8-9 महीने से पूरा विश्व कोरोना वैश्विक महामारी से संघर्ष कर रहा है। इस वैश्विक महामारी से निपटने के प्रयासों में संयुक्त राष्ट्र कहां है, एक प्रभावशाली रेस्पांस कहां है? ”
प्रधानमंत्री ने चीन और पाकिस्तान का बिना नाम लिए कहा कि यह बात सही है कि तीसरा विश्व युद्ध नहीं हुआ है लेकिन इस बात से इनकार भी नहीं किया जा सकता है कि अनेकों युद्ध हुए, अनेकों गृहयुद्ध भी हुए। कितने ही आतंकी हमलों में खून की नदियां बहती रहीं। लाखों मासूम बच्चे जिन्हें दुनिया पर छा जाना था। इन हमलों और युद्धों के चलते दुनिया छोड़कर चले गए। कितने ही लोगों को अपने जीवन भर की पूंजी गंवानी पड़ी… अपने सपनों का घर छोड़ना पड़ा। प्रधानमंत्री ने सवाल किया कि उस समय और मौजूदा वक्त में क्या संयुक्त राष्ट्र के प्रयास पर्याप्त हैं?
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की प्रतिक्रियाओं, व्यवस्थाओं और उसके स्वरूप में बदलाव आज की मांग है। भारत के लोग संयुक्त राष्ट्र में सुधार की प्रक्रिया के पूरा होने का लंबे समय से इंतजार कर रहे हैं। भारत के लोग चिंतित हैं कि क्या यह प्रक्रिया कभी अपने अंजाम तक पहुंचेगी। आखिर कब तक भारत को संयुक्त राष्ट्र के निर्णय लेने वाले ढांचे से अलग रखा जाएगा। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। भारत ऐसा देश है जहां दुनिया की 18 फीसद से ज्यादा आबादी रहती है। एक ऐसा देश जहां सैकड़ों भाषाएं, सैकड़ों बोलियां, अनेकों पंथ, अनेकों विचारधाराएं हैं। जिस देश में हो रहे परिवर्तनों का प्रभाव दुनिया के बहुत बड़े हिस्से पर पड़ता है आखिर उसको कब तक इंतजार करना पड़ेगा?
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हम पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं। यह हमारी संस्कृति, संस्कार और सोच का हिस्सा है। संयुक्त राष्ट्र में भी भारत ने हमेशा विश्व कल्याण को ही प्राथमिकता दी है। भारत जब किसी से दोस्ती का हाथ बढ़ाता है तो वो किसी तीसरे देश के खिलाफ नहीं होती। भारत जब विकास की साझेदारी मजबूत करता है, तो उसके पीछे किसी साथी देश को मजबूर करने की सोच नहीं होती। हम अपनी विकास यात्रा से मिले अनुभव साझा करने में कभी पीछे नहीं रहते। महामारी के इस मुश्किल समय में भी भारत के दवा उद्योग ने 150 से अधिक देशों को जरूरी दवाइयां भेजीं हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि महामारी के बाद बनी परिस्थितियों के बाद हम आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ रहे हैं। आत्मनिर्भर भारत अभियान, ग्लोबल इकॉनमी को भी ताकत देगा। भारत में ये सुनिश्चित किया जा रहा है कि सभी योजनाओं का लाभ, बिना किसी भेदभाव, प्रत्येक नागरिक तक पहुंचे। महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए भारत में बड़े स्तर पर प्रयास चल रहे हैं। आज दुनिया की सबसे बड़ी माइक्रो फाइनेंसिंग स्कीम का सबसे ज्यादा लाभ भारत की महिलाएं ही उठा रही हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत उन देशों में से एक है जहां महिलाओं को 26 हफ्ते का पेड मातृत्व अवकाश दिया जा रहा है। आज भारत डिजिटल लेनदेन के मामले में दुनिया के अग्रणी देशों में है। आज भारत अपने करोड़ों नागरिकों को डिजिटल एक्सेस देकर इंपॉवरमेंट और पारदर्शिता सुनिश्चित कर रहा है। आज भारत अपने गांवों के 150 मिलियन घरों में पाइप से पीने का पानी पहुंचाने का अभियान चला रहा है। कुछ दिन पहले ही भारत ने अपने छह लाख गांवों को ब्रॉडबैंड ऑप्टिकल फाइबर से कनेक्ट करने की बहुत बड़ी योजना की शुरुआत की है।
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