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न डॉक्टर न परिजन -बिना नम्बर की एम्बुलेंस से दो लोग लाश लेकर आए, जलाया और चले गए

September 24, 2020


– शव रेसकोर्स रोड के मेडिकेयर हास्पिटल का, अंतिम संस्कार के लिए पहुंचे तिलक नगर
इंदौर। कोरोना काल में न शवों का पोस्टमार्टम होता है और न ही मरने वालों की शिनाख्त। अजीब-सी परिस्थितियों में शवों को जलाया जा रहा है। ऐसा ही एक वाकया तिलक नगर मुक्तिधाम पर हुआ, जहां अव्यवस्थित-सी पीपीई किट पहनकर दो लोग एक बिना नम्बर की एम्बुलेंस से पहुंचे और शव को लगभग घसीटते हुए बाहर निकाला और बड़ी मशक्कत के बाद चिता पर चंद लकडिय़ों पर लेटाकर उसे जला डाला। जब वहां मौजूद मुक्तिधाम के कर्मचारियों ने उनसे शव के बारे में जानकारी मांगी तो उन्होंने शव को मेडिकेयर अस्पताल से लाना बताया। कर्मचारियों द्वारा रेसकोर्स रोड स्थित अस्पताल से शव को तिलक नगर मुक्तिधाम लाए जाने का कारण पूछे जाने पर शव लाने वाले लोग कोई संतुष्टिपूर्ण जवाब नहीं दे पाए, लेकिन कर्मचारियों का कहना है कि कई लोग रात-बिरात शवों को लाकर जला जाते हैं और कोरोना शव होने के कारण हम न तो उन तक जा पाते हैं और न ही ज्यादा पूछताछ कर पाते हैं।
तिलक नगर मुक्तिधाम में लाए गए इस शव को लाने वाली बिना नम्बर की एम्बुलेंस पर नगर निगम इन्दौर शव वाहन लिखा हुआ था। इस एम्बुलेंस के साथ एक चालक था, जिसने किट नहीं पहनी थी, लेकिन वो शव लाने वाले कर्मचारियों के लगातार सम्पर्क में रह रहा था। शव लाने वाले कर्मचारियों के चेहरे से भी किट उस समय हट गई थी, जब वो शव को वाहन से निकालने और लगभग घसीटते हुए चिता स्थल तक ले जाने की मशक्कत कर रहे थे। शव के साथ आए इन दोनों कर्मचारियों और ड्राइवर के अलावा मृतक का वहां न तो कोई परिचित था न ही कोई शासकीय कर्मचारी, जो इस शव के कोरोना मरीज होने की पुष्टि करता। आश्चर्य तो इस बात का था कि शव लाने वाले लोगों के पास भी ऐसे कोई दस्तावेज नहीं थे, जो शव के कोरोना मरीज होने की पुष्टि करें या उस शव को मेडिकेयर अस्पताल द्वारा भिजवाए जाने की तस्दीक करें। शहर के विभिन्न मुक्तिधामों पर हर दिन कोई न कोई ऐसा शव पहुंचता है, जिसे लाने वाले लोग ही जलाकर जले जाते हैं। विडंबना यह है कि इसे अंतिम संस्कार भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इस शवदाह में न तो कोई क्रिया-कर्म होता है और न धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन।

इस तरह तो किसी वारदात को भी अंजाम देना आसान
कोरोना शव को इसी तरह बिना किसी परिजन की मौजूदगी में जलाया जाना बेहद संदेहास्पद है। शहर के किसी मुक्तिधाम में यदि दो लोग आकर शव जलाकर चले जाते हैं तो इसी तरह किसी गंभीर अपराध को भी अंजाम दिया जा सकता है। किसी भी व्यक्ति की हत्या के बाद उसकी लाश ठिकाने लगाना बड़ी चुनौती होती है, लेकिन पीपीई किट पहनकर यदि किसी शव को मुक्तिधाम में ले जाकर जलाए जाने और बिना दस्तावेजों के उन्हें जलाने की इजाजत दिए जाने से यह काम भी बड़ा आसान हो जाता है। हालांकि मुक्तिधाम में पहुंचने वाले शवों की जानकारी रजिस्टर में दर्ज की जाती है, लेकिन यह वही जानकारी होती है, जो शव लाने वाले लोगों द्वारा दी जाती है और उसकी तस्दीक होना मुश्किल होता है। कोरोना काल से पहले मृतकों का आधार कार्ड आवश्यक होता था, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में उसकी आवश्यकता भी नगण्य कर दी गई, क्योंकि मुक्तिधाम कर्मचारी शवों का चेहरा नहीं देख सकते और कोरोना शव पूरी तरह ढंके होते हैं। यहां तक कि उनके परिजनों तक को भी देखने की मनाही है।

मुक्तिधाम कर्मचारी से बातचीत

शवदाह करने वाला कर्मचारी

ऐसी लापरवाही –
यह है शवदाह करने वाला कर्मचारी जिसका शव उतारने के दौरान न केवल किट का ऊपरी हिस्सा खुल गया बल्कि मास्क भी ऐसा पहना कि नाक का हिस्सा खुला रह गया।
कहां से लाए हो शव?
मेडिकेयर हास्पिटल से।
यह बॉडी जिस क्षेत्र की है उस क्षेत्र में ले जाना चाहिए ना।
मृतक के परिजनों से बातचीत होने के बाद शव को यहां लाया गया। शव रेसकोर्स रोड का है।
मतलब अस्पताल वालों ने भेजा है?
हम तो नौकरी करते हैं, जहां ले जाने का बोला वहां ले आए। बोलो तो वापस ले जाएं।

परिजन को लेकर आया चालक


किट नदारद – यह है उस रिक्शे का चालक जो मृतक के परिजनों को लेकर आया। उक्त चालक लगातार शव के साथ ही शवदाह करने वाले कर्मचारियों के संपर्क में रहकर खतरे को न्यौता देता रहा।
तुमने किट नहीं पहनी?
नहीं, मैं तो रिक्शा में परिवार वालों को लेकर आया हूं। मुझे किट कहां से मिलती।
पर तुम तो शव के साथ आए कर्मचारियों के संपर्क में लगातार हो?
अब उन्हें किसी चीज की जरूरत पड़े तो देना तो पड़ता है।
पर तुम खतरे से खेल रहे हो?
नहीं, मास्क पहन रखा है ना। यह सुरक्षा के लिए काफी है।

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