भोपाल। माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने केन्द्र सरकार द्वारा संसद में पारित कृषि संबंधी कानूनों को लेकर कहा है कि एमएसपी घोषित करना ही पर्याप्त नहीं है। किसानों को उनकी फसलों का एमएसपी मिलना भी चाहिए। पार्टी के राज्य सचिव जसविंदर सिंह ने बुधवार को मीडिया को जारी अपने बयान में कहा है कि केन्द्र की भाजपा सरकार जब कह रही है कि वह न तो मंडी व्यवस्था खत्म करना चाहती है और न ही एमएसपी खत्म करने का उसका कोई इरादा है तो फिर वह धक्के शाही से बिना मतविभाजन के इन किसान विरोधी बिलों को क्यों पास करवा रही है?
माकपा राज्य सचिव ने कहा कि सरकार की धोखाधड़ी का सबूत यही है कि वह इन कानूनों को तो संसद में तानाशाही तरीके से पारित करवा रही है, मगर मंडी व्यवस्था और एमएसपी के लिए सिर्फ जुबानी आश्चासन दे रही है। सरकार द्वारा हाल में रबी की फसलों के लिए एमएसपी की घोषणा के बारे में उन्होंने कहा कि सिर्फ एमएसपी घोषित कर देना पर्याप्त नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी जरूरी है कि किसानों को उनकी फसल की घोषित एमएसपी मिलना चाहिए। किसानों की लूट की एक वजह यह भी है कि एमएसपी घोषित होने के बाद भी किसानों की फसल उससे कम दाम पर मंडियों में खरीदी जा रही है। सरकार किसानों की नहीं, बल्कि कारपोरेट घरानों के मुनाफे सुनिश्चित करने की जल्दबाजी में है।
जसविंदर सिंह ने कहा कि जिस गेहूं का सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य 1975 रुपये प्रति क्विंटल घोषित किया है, वह किसानों को 1500 रुपये तक बेचना पड़ रहा है। इसी प्रकार पिछले साल जो धान 2400 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा था, इस बार किसानों को 1300 रुपये में बेचना पड़ रहा है। बाजरे का समर्थन मूल्य भले ही 2150 रुपये हो, मगर किसान 1100-1200 रुपये में अपना बाजरा बेचने को मजबूर हैं।
उन्होंने कहा कि हाल ही में रबी की फसलों के लिए घोषित एमएसपी किसी भी सूरत में पर्याप्त नहीं है। सरकार जब दावा कर रही है कि उसने स्वामीनाथन आयोग के आधार पर फसल पर 50 प्रतिशत अतिरिक्त जोडक़र मूल्य निर्धारित किया है तो वह झूठ बोल रही है। गेहूं की लागत 1467 रुपये प्रति क्विंटल आंकी गई है, इसके अनुसार समर्थन मूल्य 2200 रुपये होना चाहिये जबकि 1975 रुपये प्रति क्विंटल घोषित किया गया है। इसमें किसानों को 275 रुपये प्रति क्विंटल का नुकसान है। इसी प्रकार अन्य फसलों का हाल है।
माकपा ने कृषि संबंधी कानूनों के विरोध में देशभर में हो रहे किसान आंदोलन का समर्थन किया है, साथ ही मोदी सरकार से इन कानूनों को वापस लेने की मांग की है।