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जनाधार विहीन नेता बने कांग्रेस पदाधिकारी

September 18, 2020

– रमेश सर्राफ धमोरा

कांग्रेस पार्टी के 23 वरिष्ठ नेताओं द्वारा पार्टी अध्यक्ष को पत्र लिखने की घटना के बाद कांग्रेस कार्यसमिति ने सोनिया गांधी को अगले एक साल के लिए फिर से कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया। उसके बाद उन्होंने कांग्रेस संगठन में कई बदलाव किए। जिनमें सबसे महत्वपूर्ण बदलाव कांग्रेस कार्यसमिति व कांग्रेस के महासचिव के पदों पर किया गया है। हालांकि असंतुष्ट गुट के 23 नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष से कांग्रेस कार्यसमिति के प्रत्यक्ष चुनाव कराने की मांग की थी। लेकिन उनकी इस मांग को नजरअंदाज कर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों का नामांकन कर दिया।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कांग्रेस की सबसे शक्तिशाली कांग्रेस कार्यसमिति में लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी, कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ महासचिव मोतीलाल वोरा, गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लुईस फ्लेरियो व छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू को सदस्यता हटा दिया है। उनके स्थान पर तारिक अनवर, पी चिदंबरम, रणदीप सुरजेवाला व जितेंद्र सिंह को नए सदस्य के तौर पर कांग्रेस कार्यसमिति में शामिल किया गया है। कांग्रेस अध्यक्ष को पत्र लिखने वाले 23 नेताओं में शामिल गुलाम नबी आजाद को पार्टी महासचिव पद से हटा दिया गया है मगर उन्हें कार्यसमिति में बनाए रखा है। इसके अलावा आनंद शर्मा व मुकुल वासनिक को भी फिर से कार्यसमिति में रखा गया है। कांग्रेस संगठन के फेरबदल में गुलाम नबी आजाद, अंबिका सोनी, मोतीलाल वोरा, मलिकार्जुन खड़गे, लुईस फ्लेरियो को महासचिव पद से हटा दिया गया है। हालांकि इनमें से गुलाम नबी आजाद, अंबिका सोनी, मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस कार्यसमिति में बनाए रखा गया है। इसी तरह अनुग्रह नारायण सिंह, आशा कुमारी, गौरव गोगोई व रामचंद्र खुंटिया को प्रदेश प्रभारी पद से हटाया गया है।

कांग्रेस संगठन में अभी मात्र 9 लोगों को महासचिव बनाया गया है जबकि पहले इनकी संख्या 11 थी। कांग्रेस महासचिवों में बिहार के तारिक अनवर, हरियाणा के रणदीप सिंह सुरजेवाला, राजस्थान के जितेंद्र सिंह, दिल्ली के अजय माकन, महाराष्ट्र के मुकुल वासनिक, उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, केरल के पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी, प्रियंका गांधी, केरल के केसी वेणुगोपाल के नाम शामिल है। कांग्रेस में किए गए हाल के फेरबदल में सबसे अधिक फायदे में तारिक अनवर, रणदीप सिंह सुरजेवाला, व जितेंद्र सिंह रहे। जिन्हें महासचिव बनाए जाने के कारण कांग्रेस कार्यसमिति की सदस्यता भी मिल गई। रणदीप सुरजेवाला तो अहमद पटेल की तरह कांग्रेस की सभी समितियों के सदस्य बनाए गए हैं। चर्चा है कि हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा द्वारा सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखने वाले 23 नेताओं में शामिल होने के कारण उनकी काट के रूप में हरियाणा के रणदीप सिंह सुरजेवाला को कांग्रेस संगठन में आगे बढ़ाया जा रहा है।

कांग्रेस संगठन में किए गए फेरबदल में लोकसभा चुनाव जीतने वाले 52 सांसदों में से सोनिया गांधी व राहुल गांधी के अलावा किसी को कहीं भी जगह नहीं दी गई है। सभी महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किए गए पदाधिकारियों में अधिकांश राज्यसभा सदस्य या पूर्व में मंत्री रहे नेता हैं। कांग्रेस कार्यसमिति के अध्यक्ष सहित बाईस सदस्यों में सोनिया गांधी व राहुल गांधी ही लोकसभा सदस्य हैं। 9 चहरे राज्यसभा के सदस्य हैं। जिनमें पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, एके एंथोनी, अहमद पटेल, अंबिका सोनी, गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, केसी वेणुगोपाल, मल्लिकार्जुन खड़गे व पी चिदंबरम के नाम शामिल हैं। कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य एके एंथोनी, गुलाम नबी आजाद, हरीश रावत, ओमन चांडी पूर्व में मुख्यमंत्री रह चुके हैं तथा गई खंगम उप मुख्यमंत्री रह चुके हैं। कार्यसमिति में सदस्य बने मलिकार्जुन खड़गे, हरीश रावत, अंबिका सोनी, अजय माकन, जितेंद्र सिंह, तारिक अनवर, रणदीप सुरजेवाला, रघुवीर मीणा पिछले चुनाव में पराजित हो चुके हैं।

कांग्रेस के राष्ट्रीय स्तर पर बनाए गए 9 महासचिव में एक भी लोकसभा या राज्यसभा का सदस्य नहीं है। तारिक अनवर शरद पवार के साथ सोनिया गांधी का विरोध करते हुए कांग्रेस छोड़ गए थे। लंबे समय के बाद पिछले वर्ष उनकी कांग्रेस में वापसी हुई। 2019 का लोकसभा चुनाव उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर लड़ा मगर हार गए। रणदीप सुरजेवाला हरियाणा में लगातार दो बार विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। एकबार तो उन्होंने विधायक रहते विधानसभा का उपचुनाव लड़ा और उसमें बुरी तरह हार गए। जितेंद्र सिंह राजस्थान में अलवर से लगातार दो बार लोकसभा चुनाव हार चुके हैं। अजय माकन नई दिल्ली सीट से लगातार दो बार लोकसभा चुनाव में करारी हार झेल चुके हैं।

मुकुल वासनिक 2014 में लोकसभा का चुनाव हार गए थे तथा 2019 में उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा। हरीश रावत मुख्यमंत्री रहते उत्तराखंड के 2 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़कर दोनों ही जगह हार गए थे। ओमान चांडी के केरल में मुख्यमंत्री रहते कांग्रेस की सरकार चली गई थी। प्रियंका गांधी ने अभीतक कोई चुनाव नहीं लड़ा है। उत्तर प्रदेश कांग्रेस प्रभारी महासचिव बनने के बाद उप्र में लोकसभा व विधानसभा की सीटों में खासी कमी हुई है। केसी वेणुगोपाल ने इसबार लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा था। केरल में उनकी सीट पर चुनाव लड़ने वाले कांग्रेसी प्रत्याशी को माकपा के हाथों हारना पड़ा था।

कांग्रेस संगठन में कुछ नए लोगों को प्रदेश प्रभारी की जिम्मेदारी दी गई है। जिनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन कुमार बंसल, राजीव शुक्ला, जितिन प्रसाद, कर्नाटक के दिनेश गुंडू राव, मनीकम टैगोर, राष्ट्रीय सचिव देवेंद्र यादव, विवेक बंसल, मनीष चौहान, कुलदीप सिंह नागरा के नाम शामिल हैं। कांग्रेस में संगठन चुनाव करवाने के लिए केंद्रीय चुनाव अथॉरिटी का गठन किया गया है। जिसका अध्यक्ष गांधी परिवार के वफादार मधुसूदन मिस्त्री को बनाया गया है। इसमें राजेश मिश्रा, कृष्णा बायरेगौड़ा, एस ज्योति मनी, अरविंदर सिंह लवली को सदस्य बनाया गया है। इस अभिकरण को बनाते समय कहा गया था कि निकट भविष्य में जल्दी ही कांग्रेस संगठन के चुनाव करवाए जाएंगे।

कांग्रेस अध्यक्ष को मदद व सलाह देने के लिए 6 सदस्यों की विशेष कमेटी का भी गठन किया गया है। जिसमें एके एंटोनी, अहमद पटेल, अंबिका सोनी, केसी वेणुगोपाल, मुकुल वासनिक व रणदीप सिंह सुरजेवाला को शामिल किया गया है। यह कमेटी अगले अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय अधिवेशन तक काम करती रहेगी।

कहने को तो कांग्रेस नेता कहते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष ने संगठन में बड़ा बदलाव कर दिया। जिससे अब कांग्रेस का संगठन आने वाले समय में अधिक सक्रिय व मजबूत होकर काम कर सकेगा। कांग्रेस अध्यक्ष ने पत्र लिखने वाले 23 असंतुष्ट नेताओं की मांग को भी पूरा कर दिया है। मगर यहां देखने वाली बात यह है कि कांग्रेस में किया गया बदलाव कांग्रेस को संजीवनी देने में कितना सफल होगा।

संगठन के बदलाव में पार्टी के लोकसभा सदस्यों को बिल्कुल तरजीह नहीं दी गई है। वहीं प्रदेशों में बड़े जनाधार वाले नेताओं को भी संगठन से दूर रखा गया है। संगठन में ऐसे लोगों को शामिल किया गया है जो लगातार चुनाव हार रहे हैं तथा जिनका जनता में जनाधार समाप्त हो गया है। संगठन में पदाधिकारी बनाए गए बहुत से नेताओं को तो चुनाव लड़े जमाना बीत गया है। उनमें से बहुत से चेहरे लम्बे समय से राज्यसभा के रास्ते संसद में आ रहे हैं।

कांग्रेस के लिए बेहतर होता यदि जनता पर पकड़ रखने वाले नेताओं को बड़े पदों पर आगे लाया जाता। लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी को कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य से हटाकर स्थाई आमंत्रित सदस्य बनाया गया है जो उनकी पदावनति है। लोकसभा में सदन के नेता को कार्यसमिति में जगह न देना उनके पद की गरिमा को भी कम करता है। कांग्रेस को चाहिए कि जनाधार वाले नेताओं को अग्रिम मोर्चे पर तैनात करे। ताकि वह अपनी संगठन क्षमता व जनाधार की बदौलत पार्टी को चुनावी राजनीति में जीत दिला सके।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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