नई दिल्ली । कारगिल में 18 हजार फीट ऊंची बर्फ की चोटियों से पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ने का अनुभव रखने वाली भारतीय सेना के लिए लद्दाख की खून जमा देने वाली बर्फीली पहाड़ियां कोई मायने नहीं रखतीं। चीन से तनातनी फिलहाल आने वाले ठंड के दिनों तक खत्म होती नहीं दिखती, इसलिए सेना ने ठंड के दिनोंं में भी चीनियों से मोर्चा संभालने के इरादे से खुद को तैयार कर लिया है। लद्दाख के उच्च ऊंचाई वाले युद्ध क्षेत्र में विशेषज्ञता वाले भारतीय बल तैनात हैं।
लद्दाख की बर्फीले पहाड़ियों पर उन्हीं भारतीय सैनिकों को तैनात किया गया है जिन्हें दुनिया के सबसे ऊंचे और सबसे ठंडे युद्ध क्षेत्र सियाचिन में ग्लेशियर पर (-) 50 डिग्री सेंटीग्रेड में रहने का वास्तविक अनुभव है। इसके विपरीत किसी भी चीनी सैनिक को अंटार्कटिक तरह की स्थिति में (-) 50 डिग्री सेंटीग्रेड में रहने का वास्तविक प्रशिक्षण नहीं है। यह इसलिए संभव हो पाया है क्योंकि भारतीय सेना ने अपनी रणनीति बनाने में इसका ध्यान रखा है। दरअसल भारतीय सैनिक पिछले 3 दशकों से कश्मीर की घाटी में हर रोज आतंकवाद रोधी अभियानों में लगे हुए हैं। एलएसी पर लंबी तैनाती के लिए तैयारी के लिहाज से रक्षा मंत्रालय ने भी सैनिकों के लिए खाद्य सामग्री, आवास, ईंधन, विशेष कपड़े, जूते के साथ ही अतिरिक्त सैनिकों और वाहनों की गणना करके इंतजाम शुरू कर दिए हैं।
उच्च ऊंचाई वाले युद्ध के मामले में विशेषज्ञों का मानना है कि भारत चीन पर बढ़त बनाए हुए है। हॉवर्ड केनेडी स्कूल की बेलफर सेंटर फॉर साइंस एंड इंटरनेशनल अफेयर्स की एक रिपोर्ट बताती है कि हिमालयी रेंज में भारतीय सशस्त्र बल चीन की सेना को हरा सकते हैं और विशेषज्ञों को गलत साबित कर सकते हैं कि भारत सैन्य ताकत में चीन से पीछे है। कागज पर भले चीन भारत से अधिक मजबूत दिखाई दे सकता है लेकिन वास्तव में भारतीय सैनिकों को अत्यधिक ठंडी जलवायु में लड़ने के लिए बेहतर सुसज्जित और प्रशिक्षित किया जाता है। चीन के पास भारत की तुलना में बड़ा रक्षा बजट है लेकिन युद्ध पैसे से ज्यादा लड़ाकू जवानों के हौसले और जज्बे से लड़ा जाता है। चीन के पास अधिक हथियार हो सकते हैं, लेकिन ठंड में युद्ध लड़ने के अनुभव में भारत आगे है। भारत के पास लगभग 3.4 मिलियन सैनिक हैं जबकि चीन के पास 2.7 मिलियन हैं।
हार्वर्ड केनेडी स्कूल में बेलफर सेंटर फॉर साइंस एंड इंटरनेशनल अफेयर्स भी कहता है कि भारत की वायु सेना बेहतर परिचालन क्षमताओं के कारण चीन की तुलना में बेहतर है। मिराज-2000 और सुखोई-30 ने भारतीय वायु सेना को चीन के जे-10, जे-11 और सुखोई-27 फाइटर जेट से बढ़त दिलाई है। भारत के पास सभी मौसम में इस्तेमाल होने वाले मल्टीरोल विमान भी हैं, जबकि चीन में केवल जे-10 में ही यह क्षमता है। अब तो भारत के पास राफेल जैसा ताकतवर लड़ाकू फाइटर जेट है जो बर्फीली पहाड़ियों वाली लद्दाख सीमा के हिसाब से फिट बैठता है। राफेल वह मल्टी रोल लड़ाकू विमान है जो पहाड़ों पर कम जगह में भी उतर सकता है।राफेल की ऊंचाई पर जाने की क्षमता 300 मीटर प्रति सेकंड है, जो चीन-पाकिस्तान के विमानों को भी मात देता है।
भारत के पास चीन के मुकाबले युद्ध लड़ने का ज्यादा अनुभव है क्योंकि पाकिस्तान के साथ तीन युद्ध लड़कर जीते भी हैं। दूसरी ओर चीन ने वियतनाम के खिलाफ 1979 में आखिरी युद्ध लड़ा था। जब उच्च ऊंचाई के युद्ध की बात आती है तो भारतीय सेना चीन से बेहतर दिखाई देती है। भारत के पास कई विमान हैं जो उच्च ऊंचाई पर उड़ान भरने में सक्षम हैं, जबकि चीनी पायलटों को सीमित आपूर्ति और ईंधन के साथ तिब्बत में अपने एयरबेस में कठिन मौसम की स्थिति के कारण उड़ान भरना पड़ता है। दूसरी ओर मौसम की अनुकूल परिस्थितियों के साथ भारतीय आपूर्ति ठिकाने एलएसी के पास हैं। दूसरी ओर चीन इस समय कई देशों के साथ एक ही समय में मोर्चे खोलकर बुरी तरह उलझ गया है।
मेजर जनरल जगतबीर सिंह (सेवानिवृत्त) बताते हैं कि लद्दाख की बर्फीली पहाड़ियों पर तैनात सैनिकों की जिम्मेदारी कई गुना अधिक चुनौतीपूर्ण है। इन तापमानों और ऊंचाई पर न केवल दुश्मन के मुद्दे हैं, बल्कि मौसम और स्वास्थ्य भी हैं। इनके लिए भोजन की व्यवस्था करना तब और कठिन हो जाता है जब बर्फ़बारी के कारण सारे सड़क मार्ग बंद हो जाते हैं। ऐसे में सिर्फ परिवहन जहाज का ही सहारा होता है, इसलिए वायुसेना की एक पोस्ट हवा में बना दी जाती है जिससे विमान या हेलीकाप्टरों द्वारा खाद्य आपूर्ति गिरा दी जाती है। उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में गर्म भोजन दिया जाता है। कुछ ऐसे सैनिक भी होते हैं जो टिनडेड भोजन पर जीवित रहते हैं। कठोर सर्दियों में अग्रिम चौकियों पर तैनात सैनिकों को गर्म रखने के लिए पर्याप्त कपड़े या खाने की जिम्मेदारी सेना, कमान, कोर, एरिया, डिवीजन और ब्रिगेड के विभिन्न मुख्यालयों की बढ़ जाती है। इसमें स्लीपिंग बैग, कोट, जूते और ऊनी पतलून और निश्चित रूप से काले चश्मे और दस्ताने शामिल हैं।
मेजर जनरल बताते हैं कि बर्फीली चोटियों पर तैनात सैनिकों के लिए सबसे जरूरी चीजों में से एक है उसके रहने का स्थान। रात के समय तापमान शून्य से 40 डिग्री नीचे गिरने पर सैनिक खुले में नहीं रह सकते। अधिक ऊंचाई पर तैनात सैनिकों के लिए बर्फ या आर्कटिक टेंट की भी व्यवस्था किया जाना बहुत जरूरी होता है। अदला-बदली के लिए अतिरिक्त सैनिकों की व्यवस्था पहले से करनी पड़ती है क्योंकि अग्रिम चौकी को खाली नहीं छोड़ा जा सकता। ठंड की वजह से कभी-कभी हथियार भी जवाब दे जाते हैं तो उनकी मरम्मत के लिए अलग पोस्ट और कार्यशालाओं की स्थापना करनी पड़ती है। इसके अलावा आवश्यकताओं में प्रमुख चिकित्सा सुविधा भी है, जिसके लिए मेडिकल एड पोस्ट, एडवांस्ड ड्रेसिंग स्टेशन बनानी पड़ती है ताकि सैनिकों को तत्काल इलाज मिल सके। भारतीय सेना समय-समय पर इन सब प्रक्रियाओं और प्रणालियों का परीक्षण करती रहती है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि अग्रिम पंक्ति के सैनिकों को किसी भी प्रकार की दिक्कत न हो सके। एजेंसी/(हि.स.)
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