नई दिल्ली। मार्केट रेगुलेटर SEBI ने मल्टीकैप म्यूचुअल फंड के लिए संपत्ति आवंटन नियमों में बदलाव किया है। नए नियमों के मुताबिक अब फंड्स का 75 परसेंट हिस्सा इक्विटी यानि शेयर बाजार में निवेश करना जरूरी होगा, जो कि अभी न्यूनतम 65 परसेंट है। नए नियमों के मुताबिक मल्टीकैप फंड्स में 25 परसेंट हिस्सा स्मॉलकैप, 25 परसेंट मिडकैप और 25 परसेंट हिस्सा लार्जकैप शेयरों का होना चाहिए, जिसे लेकर अब तक कोई सीमा निर्धारित नहीं थी। फंड मैनेजर्स अपनी मनमर्जी के हिसाब से आवंटन करते थे। लागू करने के लिए 31 जनवरी 2021 तक का वक्त दिया गया है। मल्टीकैप के लिए नियमों में बदलाव को लेकर सेबी का कहना है कि उसका मकसद है कि मल्टीकैप फंड्स सिर्फ नाम के मल्टीकैप न रहें। दरअसल अभी मल्टीकैप फंड्स में लार्जकैप शेयरों का ही बोलबाला रहता है।
1. सेबी के मुताबिक कुछ मल्टीकैप स्कीम में 80 परसेंट तक निवेश लार्ज कैप में था, ये किस तरह का मल्टीकैप हुआ।
2. कुछ स्कीम में स्मॉल कैप में निवेश शून्य या फिर बेहद कम था।
3. ऐसे में ये स्कीम मल्टी कैप स्कीम किसी लिहाज से सही नहीं कही जा सकती ।
4. बाजार में कुछ स्टॉक्स ही मिलकर बाजार को चला रहे हैं।
5. इस वजह से छोटी कंपनियों को बाजार से पूंजी जुटाने में दिक्कत होती है।
6. सेबी चाहती है कि छोटी कंपनियों को भी बड़ी कंपनियों की तरह मौके मिलें।
7. बड़ी कंपनियों और बड़ी और छोटी कंपनियां और छोटी न बनती जाएं।
8. बाजार की तेजी में ज्यादा से ज्यादा शेयरों का योगदान हो, इसमें छोटी कंपनियां का भागीदारी बढ़े।
9. रीटेल निवेशकों को पैसा बनाने का ज्यादा से ज्यादा मौका मिले।
10. मल्टीकैप स्कीम में बड़ी कंपनियों के पीछे भागम भाग कम हो।
नियमों पर सेबी की सफाई
मल्टीकैप नियमों को लेकर सेबी ने साफ किया कि मल्टी कैप स्कीम को छोटी कंपनियों में तय सीमा के आधार पर निवेश रखने के लिए जरूरी नहीं है कि वो छोटी कंपनियों में निवेश बढ़ाए या फिर बड़ी कंपनियों में निवेश घटाएं सेबी के मुताबिक उनके पास इसके अलावा अन्य विकल्प भी मौजूद हैं।
1. वो अपनी मल्टीकैप स्कीम को लार्ज कैप स्कीम के साथ मिला सकते हैं।
2. मल्टी कैप स्कीम को किसी और स्कीम में बदल सकते हैं ।
3. यूनिट होल्डर को भी स्कीम बदलने का मौका दिया जा सकता है ।
4. फंड हाउस ऐसे ही विकल्प का इस्तेमाल कर सकते हैं जिससे उनकी स्कीम और पोर्टफोलियो एक दूसरे के हिसाब से हो जाएं।
5. इस बारे में अगर कोई और सुझाव मिलता है, तो वो उस पर भी विचार करेंगे।
फंड्स मैनेजर्स की स्मॉलकैप, मिडकैप से दूरी क्यों ?
आखिर ऐसा क्यों है कि फंड मैनेजर्स मिडकैप और स्मॉलकैप शेयरों से दूरी बनाकर रखते हैं, क्योंकि इन शेयरों में पैसा लगाने में फंड मैनेजर्स की अपनी ही चुनौतियां हैं. इसे कुछ ऐसे समझिए ।
1. फंड मैनेजर्स छोटी कंपनियों की बैलेंस शीट पर ज्यादा भरोसा नहीं कर सकते, अक्सर उनकी बैलेंसशीट में खामियां मिलती हैं।
2. कॉर्पोरेट गवर्नेंस को लेकर छोटी कंपनियों में ज्यादा परेशानी होती, ये एकदम लाला जी की दुकान की तरह चलती हैं।
3. छोटी और मिडकैप कंपनियों के शेयर खरीदने में कॉस्ट ज्यादा है ।
4. इन कंपनियों में एंट्री तो मुश्किल होती है और एक्जिट तो नामुमकिन जैसा है, क्योंकि जब आप इन शेयरों को बेचने जाते हैं तो शेयर बिकता नहीं।
5. इन शेयरों को बेचना आपको तेजी में ही पड़ेगा, और खरीदना मंदी में ही पड़ेगा।
6. बड़ी कंपनियों के शेयर नहीं चलते तो फंड मैनेजर्स के फैसले पर सवाल खड़े हो जाते हैं।
7. यही वजह से है कि फंड मैनेजर्स छोटी कंपनियों में पैसा डालने से डरते हैं।
अब बात ये कि सेबी के इन नए नियमों का बाजार और म्युचुअल फंड्स पर असर क्या होगा।
SEBI के नए नियमों का असर
1. मल्टीकैप फंड्स के करीब 1.46 लाख करोड़ के कुल एसेट्स हैं।
2. नए नियमों के बाद लॉर्जकैप से 40,000 करोड़ रुपये स्मॉलकैप और मिडकैप में ट्रांसफर होने की उम्मीद है।
3. मिडकैप शेयरों में करीब 13,000 करोड़ रुपये खरीदारी का अनुमान है।
4. स्मॉलकैप शेयरों में करीब 27,000 करोड़ रुपये की खरीदारी की उम्मीद है।
5. यानि मिडकैप और स्मॉलकैप शेयरों में खरीदारी बढ़ेगी और ये महंगे भी हो सकते हैं।
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