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    राशन माफिया के निर्माण भी टूटेंगे, सभी कंट्रोल दुकानों की जांच भी

  • September 13, 2020

    • कोरोना जंग के बीच प्रशासन की बड़ी कार्रवाई से मचा हडक़म्प
    • शिवराज ने भी ट्वीट कर दी बधाई

    इंदौर। कोरोना जंग के बीच प्रशासन ने बड़े राशन माफिया का पर्दाफाश किया, जिसके तार इंदौर से लेकर नीमच, मंडला, बालाघाट सहित अन्य जिलों तक जुड़े बताए जाते हैं। इसके चलते 50 करोड़ रुपए का यह घोटाला जांच के बाद 100 करोड़ तक पहुंचेगा। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने ट्वीट कर इंदौर प्रशासन को इस कार्रवाई के लिए बधाई भी दी। कलेक्टर मनीषसिंह ने घोटालेबाजों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर रासुका में भी कार्रवाई शुरू करवाई है। वहीं महू-इंदौर व अन्य जगह स्थित इनके निर्माणों की भी जानकारी निकलवाई जा रही है और जिस तरह पहले माफियाओं के मकानों को ध्वस्त किया गया था, उसी तरह राशन माफिया के निर्माण भी टूटेंगे। सभी कंट्रोल दुकानों की भी जांच करवाई जा रही है। कल ही निगम सीमा की कंट्रोल दुकानों की जांच में 200 किलो से ज्यादा खाद्य सामग्री अपर कलेक्टर ने जब्त करवाई।
    कलेक्टर मनीषसिंह ने पिछले दिनों मिली शिकायत के आधार पर महू एसडीएम से इस पूरे मामले की जांच शुरू करवाई तो चौंकाने वाले परिणाम सामने आए। उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों ही मुख्यमंत्री ने गरीबों का राशन हड़पने वाले माफियाओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश जिला कलेक्टरों को दिए थे, लेकिन इंदौर कलेक्टर मनीषसिंह ने बाजी मारते हुए प्रदेश की पहली बड़ी कार्रवाई को अंजाम दिया और एक बड़े राशन माफिया का पर्दाफाश किया गया। महू में पकड़ाए इस राशन घोटाले के तार प्रदेश के कई जिलों तक फैले हैं और शुरुआती जांच में व्यापारी और पूर्व पार्षद व कांग्रेस नेता मोहनलाल अग्रवाल, उनके बेटों के साथ ही कई अन्य सहयोगियों के नाम तो सामने आए ही, वहीं नागरिक आपूर्ति निगम के कर्मचारी की भी लिप्तता सामने आई है। कलेक्टर मनीषसिंह ने एक जानकारी में बताया कि सभी घोटालेबाजों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा दी गई है। हालांकि अभी मुख्य आरोपी फरार हैं। सालों से नागरिक आपूर्ति निगम में परिवहन का काम मोहनलाल अग्रवाल और उसके पुत्र मोहित की फर्म हर्षिल ट्रेडर्स द्वारा किया जाता रहा। 600 से ज्यादा तो चावल के कट्टे ही उसके गोडाउन से मिले, जो कंट्रोल दुकानों पर बंटना थे। जो बिल प्रस्तुत किए गए वे भी फर्जी, यानी कूटरचित निकले। अन्य सहयोगी व्यापारी आयुष, लोकेश अग्रवाल सहित अन्य की भी लिप्तता इस घोटाले में सामने आई है। कंट्रोल दुकानों पर जो राशन भेजा जाता था उसके पूर्ण बिलों पर प्राप्ति के हस्ताक्षर करवा लिए जाते थे और राशन की दुकानों पर भेजे सामानों में से अधिकांश वापस ले लिया जाता था। कंट्रोल संचालक भी उपभोक्ताओं को कम सामान देकर उसकी पूर्ति करते थे। जांच में दुकानों पर पाया गया चावल शासन द्वारा आवंटित चावल से घटिया श्रेणी का मिला। फर्जी बिल तैयार कर मंडी से पर्ची अनुज्ञा के जरिए खराब माल को शासन से प्राप्त अच्छे माल से बदल दिया जाता था और फिर कच्चे माल को बेचकर मुनाफाखोरी की जाती थी। केरोसीन की हेराफेरी भी इसी तरह की जाती रही है। जांच में नीमच, मंडला सहित अन्य क्षेत्रों के व्यापारियों के साथ किए गए व्यवहार भी सामने आए हैं। मोहनलाल अग्रवाल द्वारा पिछले 20 सालों से केरोसीन वितरण और खाद्यान्न का काम किया जा रहा था। शुरुआत में ही यह घोटाला 50 करोड़ रुपए तक का सामने आया है और विस्तृत जांच के बाद घोटाले की राशि दोगुनी, यानी 100 करोड़ तक जाएगी। अभी मोहनलाल अग्रवाल, दोनों पुत्र मोहित, तरुण और सहयोगी आयुष, लोकेश अग्रवाल सहित 4 कंट्रोल दुकान संचालकों, सोसायटी के प्रबंधकों के खिलाफ थाना किशनगंज और बडग़ोंदा में एफआईआर दर्ज करवाई गई है। वहीं राशन माफियाओं के खिलाफ रासुका में भी कार्रवाई होगी और इनके निर्माणों को भी जमींदोज किया जाएगा। कलेक्टर सभी कंट्रोल दुकानों की भी जांच करवा रहे हैं। अपर कलेक्टर अभय बेड़ेकर से निगम सीमा में मौजूद 7 कंट्रोल दुकानों की जांच करवाई गई, उसी में गड़बडिय़ां मिलीं। धनिया पावडर, हल्दी, गरम मसाला, चायपत्ती, बेसन के भी नमूने लिए गए और 205 किलो खाद्यान्न सामग्री जब्त की गई। श्रीकृष्ण सहकारिता उपभोक्ता भंडार, श्रीगणेश महिला सहकारी, महाराणा प्रताप नगर लोकसेवा सहकारी, सरस्वती सहकारी उपभोक्ता भंडार विजय नगर, शासकीय मां काली महिला प्राथमिक सहकारी उपभोक्ता भंडार, बंगाली हैंडलूम सोसायटी वृंदावन कालोनी, शासकीय पिछड़ा वर्ग सहकारी उपभोक्ता भंडार कुम्हारखाड़ी में उक्त जांच-पड़ताल की गई।
    3 हजार रुपए प्रति दुकान बंटती है मासिक बंदी
    कलेक्टर मनीषसिंह का स्पष्ट कहना है कि राशन माफिया मोहनलाल अग्रवाल द्वारा अपने सहयोगियों के माध्यम से सालों से संगठित अपराध की तरह इस घोटाले को अंजाम दिया जा रहा था। यह सरकारी राशन की हेराफेरी इससे जुड़े सरकारी विभागों की मिलीभगत के बिना संभव नहीं है, जिसमें नागरिक आपूर्ति निगम, कृषि उपज मंडी, खाद्य विभाग व जिला स्तर के कर्मचारी शामिल रहे होंगे। सूत्रों का यह भी कहना है कि हर महीने 3 हजार रुपए की राशि प्रति कंट्रोल संचालक खाद्य विभाग द्वारा हासिल की जाती है।

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