– ख्यात गीतकार अंजान की बरसी आज
इंदौर। हिंदी सिनेमा के गीतों को भोजपुरी और पूर्वांचली भाषा की खुशबू से महकाने वाले गीतकार अंजान सही मायनो में इंसानी एहसासों के खास जानकार थे। गीतों में उनके अल्फाज़ की जादूगरी ऐसी थी कि लोगों के दिल में वो हुकूमत कायम कर लेते। बनारस के रहने वाले लाल जी पांडे यानी अंजान मुंबई में रहकर अपने बनारस को याद करते थे मौक़ा मिला तो खई के पान बनारस वाला गीत लिख दिया ।
24 अक्टूबर 1929 को बनारस में पैदा हुए अंजान ने बीएचयू से बी.कॉम की पढ़ाई की। यहां आकर उन्होंने मुकेश से मुलाकात की। जिसके बाद मुकेश ने उन्हें निर्देशक प्रेमनाथ से मिलवाया और प्रिजनर ऑफ गोलकोंडा के लिए गाने लिखे। लेकिन गाने मकबूल नहीं हुए। सफलता की सारी ऊंचाईयों पर उन्हें फिल्म डॉन ने पहुंचाया था। अंजान ने वैसे तो अपने समय के सभी दिग्गज संगीतकारों के साथ काम किया, लेकिन कल्याणजी-आनंदजी के साथ उनकी जोड़ी कमाल की रही। अंजान का अमिताभ बच्चन से एक ख़ास रिश्ता बन गया था। उन्होंने अमिताभ की कई फिल्मों के लिए गाने लिखे। जिनमें डॉन, मुकद्दर का सिकंदर, याराना, नमक हलाल और शराबी उनके करियर में मिल का पत्थर रहीं। कलम के फन से सितारों की जगमगाती दुनिया में अंजान ने अपना एक ऐसा मुकाम बनाया, जिसकी ताजगी आज भी महसूस की जा सकती है। अंजान के लिखे यादगार गीतों में, ओ खाइके पान बनारस वाला, खुल जाए बंद अकल का ताला…, इंतहा हो गई इंतज़ार की, आई ना कुछ खबऱ, मेरे यार की…, गोरी हैं कलाईयां तू ला दे मुझे हरी हरी चूडिय़ां…, मुझे नौ लखा मंगा दे रे ओ सैया दीवाने, तेरे जैसा यार कहां, कहां ऐसा याराना…, छू कर, मेरे मन को किया तूने, क्या इशारा…, मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है…, जैसे बेहतरीन गीत हैं। कई सदाबहार नगमे लिखने के बावजूद उन्हें फिल्म फेयर का अवॉर्ड नहीं दिया गया। सिनेमा को क्षेत्रिय बोलियों की महक से रुबरु कराने वाले अजीम फनकार अंजान आखिर इस दुनिया से 13 सितंबर 1997 को कूच कर गए। गीतों के रूप में उनका बेशकीमती खजाना आज भी लोगों की जबान पर है।
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