नई दिल्ली । दिल्ली पुलिस ने उन मीडिया रिपोर्ट्स को ख़ारिज किया है, जिनमें बताया गया था कि सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी, स्वराज अभियान के नेता योगेंद्र यादव, अर्थशास्त्री जयती घोष, डीयू के प्रोफ़ेसर अपूर्वानंद और डॉक्युमेंट्री फ़िल्ममेकर राहुल रॉय के नाम दिल्ली दंगों की पूरक चार्जशीट में सह-साज़िशकर्ता के तौर पर हैं. दरअसल, बीबीसी ने अपनी रिपोर्ट में यह खुलासा किया है।
हालांकि शनिवार शाम समाचार एजेंसी पीटीआई के एक ट्वीट को लेकर तीखी राजनीतिक प्रतिक्रिया आने लगी थी, जिसमें बताया गया था कि इनके नाम सह-साज़िशकर्ता के तौर पर पूरक आरोपपत्र में हैं. क़रीब दो घंटे बाद पीटीआई ने एक और ट्वीट किया, जिसमें दिल्ली पुलिस का हवाला देते हुए बताया कि इन सबका नाम एक अभियुक्त के बयान में लिया गया है और इस बयान के आधार पर किसी के ख़िलाफ़ मुक़दमा नहीं चलाया जा सकता. यानी आरोपपत्र में इनका नाम किसी अभियुक्त के तौर पर नहीं है.
पीटीआई के पहले ट्वीट के बाद सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने चार्जशीट में सह-साज़िशकर्ता के तौर पर नामज़द होने का खंडन किया था.उन्होंने पीटीआई के ट्वीट को रीट्वीट करते हुए लिखा था, “यह रिपोर्ट तथ्यात्मक रूप से ग़लत है और उम्मीद है कि पीटीआई इसे वापस ले लेगा. पूरक चार्जशीट में मुझे सह-षड्यंत्रकारी या अभियुक्त के रूप में उल्लेख नहीं किया गया है. पुलिस की अपुष्ट बयान में एक अभियुक्त के बयान के आधार पर मेरे और येचुरी के बारे में उल्लेख किया गया है जो अदालत में स्वीकार्य नहीं होगा.”
बीबीसी से योगेंद्र यादव ने कहा, “मेरा नाम डिस्क्लोज़र बयान में है जिसमें बयान देने वाले का हस्ताक्षर भी नहीं है. सबसे पहले जो भी मैंने रैलियों में कहा है उसका वीडियो मेरे फ़ेसबुक पर उपलब्ध है. पुलिस मेरे बयान को क्यों नहीं लिख देती कि मैंने क्या कहा था. मैंने जो कहा वो गांधी और संविधान की बात ही की. रही बात सीलमपुर की तो जब हमें ये जानकारी मिली थी कि वहां ये सब कुछ हो रहा है तो हम लोग वहां गए थे और हमने लोगों को समझाया था कि वे रास्ता खाली कर दें. यहां तक कि मैंने मंच से लाउडस्पीकर पर भी ये बोला था कि रास्ता खाली करें, जो रहा है वो सही नहीं है. अपूर्वानंद ने भी यही कहा था कि लोगों को रास्ता खाली कर देना चाहिए.”
योगेंद्र यादव कहते हैं, “देखिए पुलिस बहुत कोशिश कर रही हैं लेकिन उसे कुछ मिल नहीं रहा है तो वो बस नामज़द ही करके रह जा रही है. गृहमंत्री जी ने तो पहले ही साज़िश की बात कह दी थी जब ये जांच शुरू हुई उससे पहले अब पुलिस उनके कहे को पूरा करने में लगी है.” पीटीआई के ट्वीट पर सीताराम येचुरी ने प्रतिक्रिया देते हुए ट्विटर पर लिखा था – ज़हरीले भाषणों का वीडियो है, उन पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है?
इसके साथ ही उन्होंने कई और ट्वीट भी किए और सरकार पर निशाना साधा. उन्होंने लिखा “हमारा संविधान हमें न सिर्फ़ सीएए जैसे हर प्रकार के भेदभाव वाले क़ानून के विरुद्ध शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने का अधिकार देता है बल्कि यह हमारी ज़िम्मेदारी भी है. हम विपक्ष का काम जारी रखेंगे. बीजेपी अपनी हरकतों से बाज़ आए.” उन्होंने लिखा,”दिल्ली पुलिस भाजपा की केंद्र सरकार और गृह मंत्रालय के नीचे काम करती है. उसकी ये अवैध और ग़ैर-क़ानूनी हरकतें भाजपा के शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व के चरित्र को दर्शाती हैं. वो विपक्ष के सवालों और शांतिपूर्ण प्रदर्शन से डरते हैं और सत्ता का दुरुपयोग कर हमें रोकना चाहते हैं.”
दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर अपूर्वानंद ने अपनी प्रतिक्रिया में बीबीसी से कहा, “ये काफ़ी तकलीफ़ की बात है कि दिल्ली पुलिस के संसाधनों का इस्तेमाल एक विचारात्मक उद्देश्य के लिए किया जा रहा है.” उन्होंने कहा, “दिल्ली पुलिस से ये उम्मीद थी कि वो फ़रवरी की हिंसा के पीछे की साज़िश की जांच करेगी और उसके सच का पता लगाएगी. ऐसा न करके उसने अपनी पूरी ताक़त सीएए के ख़िलाफ़ किए गए आंदोलन को बदनाम करने और उसका अपराधीकरण करने और उसमें शामिल और उसका समर्थन कर रहे लोगों का अपराधीकरण करने में लगा दिया है.”
”सरकार की किसी भी क़दम की चाहे वो क़ानून ही क्यों न हो, आलोचना करने और उसका विरोध करके उसे बदलवाने की कोशिश करने का संवैधानिक अधिकार नागरिकों के पास है और उसे किसी भी तरह देश विरोधी नहीं कहा जा सकता. हम अभी भी उम्मीद करेंगे कि दिल्ली पुलिस फ़रवरी की हिंसा के पीछे की असली साज़िश का पता करे जिससे मारे गए लोगों और जिनका नुकसान हुआ उन्हें और पूरी दिल्ली को इंसाफ़ मिल सके.”
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