उज्जैन। संजा पर्व के तहत पर राजस्थान के लोक द्वादशी जीवन में बुजूर्ग महिलाएं लड़कियों को एक कथा सुनाती है, जिसे बगड़ावत कथा कहा जाता है। यह कथा उस समय के लोकोत्सव पर प्रकाश डालती है। कहीं न कहीं सामाजिक जीवन का आयना भी दिखाती है।
कथा इसप्रकार है-
लीला सेवड़ी नामक ब्राम्हणी रोजाना पुष्कर (अजमेर के समीप) तीर्थ में स्नान करने जाती थी। एक दिन वह मुंह अंधेरे जब स्नान करके लौट रही थी तो रस्ते में उसे अजमेर के राजा बसिलदेव के भाई मांडल जी के पुत्र हरि जी दिखे। हरि जी के एक हाथ में बाघ का कटा शीश था और दूसरे हाथ में वे घोड़े की लगाम थामे हुए थे। हरि जी के इस रूप को देखत ही लीला सेवड़ी को गर्भ ठहर गया। उसने एक विचित्र बच्चे को जन्म दिया। बच्चे का शीश बाघ का था और शेष शरीर मनुष्य का। इसीलिए उसका नाम बाघ जी रखा गया।
राजप्रासाद में बाघ जी की परवरिश कालूराम नामक खोडिय़े ब्राम्हण के जिम्मे थी। कालूराम लंगड़ा था। एक दिन कालूराम को शहर से लोटने में विलम्ब हो गया। इधर भूख से तडफ़ रहे बाघ जी गुस्से आगबबूला हो रहे थे। कालूराम ने जब बाघ जी को देखा तो वह कांप गया। उसने बाघ जी को बताया कि शहर में विवाह हो रहे हैं। लग्न निकालने के काम में बहुत व्यस्त था, इसलिए देरी हो गई। बाघ जी ने कालूराम से कहाकि उसके भी लग्न निकालो। इस पर कालूराम ने मन ही मन सोचा कि इसे कोन लड़की देगा? बाहर के मन से बोला-मैं कोई तरकीब सोचता हूं।
इधर सावन का महिना आया। बाग में लड़कियां झूला झूलने पहुंची। कालूराम ने लड़कियों के समक्ष शर्त रखी कि झूला झूलने से पूर्व हर एक लड़की को बाघ जी का एक फेरा लेना होगा। जो समझदार थी, वे दौड़ लगा गई। जो अबोध थी, वे इस चक्कर में आ गई और फेरा लगा लिया। बाघ जी के फेरे लगानेवाली लड़कियों के लग्न नहीं निकले तो उनके माता-पिता चिंतित हुए। बात राजा तक पहुंची। राजा ने सारा मामल दिखवाया तो कालूराम की शैतानी पता चली। उन्होने बाघ जी से बात की। बाघ जी ने कहाकि उसकी बांहों में जितनी लड़कियां आएगी, वह उससे विवाह करेगा। शेष के लग्न निकालकर अन्यत्र विवाह कर देना।
बाघजी की बाहों में 13 लड़कियां आई। इनमें एक थी संझ्या। वह बहुत रूपवान थी। चूंकि वह निची जाती की थी, इसलिए बाघजी ने उससे विवाह नहीं किया ओर कालूराम खोड्या ब्राम्हण से उसका विवाह करवा दिया। ये सभी गरूडिय़े ब्राम्हण कहलाए। इधर बाघजी के 24 लड़के हुए, जो बगड़ावत कहलाए। कालूराम ब्राम्हण से विवाह बाद संझ्या दु:खी रहने लगी। अल्पायु में उसका निधन हो गया।
कथा सुनने के बाद कुंवारी कन्या संजा की आरती करती है और संजा गीत गाती है।
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