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कब होगा भिक्षावृत्ति का खात्मा

September 09, 2020

– रमेश सर्राफ धमोरा

देश में बेरोजगारी की हालत ऐसी है कि बहुत पढ़े-लिखे लोग भी भीख मांग रहे हैं। राजस्थान सरकार ने हाल ही में भिखारी उन्मूलन एवं पुनर्वास कानून बनाया। जिसके तहत जयपुर में भिखारियों का सर्वे शुरू किया गया है। इस सर्वे में पता चला है कि जयपुर शहर में कुछ भिखारी एमए और एमकॉम तक पढ़े हुए हैं तो कुछ बीए और बीकॉम किए हुए हैं। इन भिखारियों का कहना है कि अगर उन्हें कोई काम मिलता है तो वे भीख मांगना छोड़ काम करने के लिए तैयार हैं।

राजस्थान के ही गोविंदगढ़ के रहने वाले 34 साल का पवन एमकॉम तक पढ़ने के बाद अजमेर रोड पर भीख मांग रहा है। वह एक फैक्ट्री में मजदूरी करता था लेकिन काम बंद होने की वजह से खाने के लिए चैराहे पर बैठना शुरू कर दिया। शादीशुदा नहीं होने की वजह से कहीं कोई काम के लिए ले जाता है तो चले जाते हैं वरना भीख मांग कर पेट भर लेते हैं।

झुंझुनू जिले के डूंडलोद का रहने वाले 38 साल के अविवाहित मुकेश ने एमए तक पढ़ाई की। जयपुर शहर में भीख मांगकर जिंदगी गुजर-बसर करता है और फुटपाथ पर सोता है। एमकॉम तक पढ़ाई करने वाले जगदीश गुप्ता, ग्रेजुएशन करने वाले रमेश और शैलेश जयपुर में भीख मांगकर गुजारा करते हैं। राजस्थान सरकार ने हाल ही में विधानसभा में भिखारी उन्मूलन एवं पुनर्वास बिल पास कर दिया है। राज्य सरकार द्वारा सामाजिक संगठनों के जरिए भिखारियों के लिए पुनर्वास केंद्र बनाए जा रहे हैं।

हमारे घरों में, सार्वजनिक स्थलों, रेल, बसों व धार्मिक स्थलों पर ईश्वर-अल्लाह के नाम पर भीख मांगते बच्चे-बूढ़े, युवा आसानी से देखे जा सकते हैं जो सरकारों की कल्याणकारी योजनाओं पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं। भीख मांगना आज एक प्रकार का धंधा बन गया है। भिक्षावृत्ति किसी भी सभ्य देश के लिए कलंक है। यह एक सामाजिक बुराई है। अब यह लाइलाज गंभीर रोग बनता जा रहा है। जहां असहाय, दीन-हीन लोग मजबूरी वश भीख मांगते हैं, वहीं शारीरिक दृष्टि से सक्षम कई लोग भी भीख मांगकर गुजारा करते हैं, क्योंकि उन्होंने शारीरिक श्रम के बजाय भीख मांगकर आसानी से गुजारा करने का रास्ता चुन लिया है।

21वीं सदी में जा रहा हमारा देश एक तरफ कम्प्यूटर, इंटरनेट की दिशा में प्रगतिशील है व विकास के बड़े-बड़े दावे कर रहा है, वहीं देश में एक तबका भीख मांगकर पेट भरता हो तो यह हम सभी के लिये गंभीर चिंतन का विषय है। भारत में कुछ जनजातीय समुदाय भी आजीविका के लिये परम्परा के तौर पर भिक्षावृत्ति को अपनाते हैं। लेकिन भीख मांगने वाले सभी लोग इसे ऐच्छिक रूप से नहीं अपनाते। दरअसल गरीबी, भुखमरी तथा आय की असमानताओं के चलते देश में एक वर्ग ऐसा भी है, जिसे भोजन, कपड़ा और आवास जैसी आधारभूत सुविधाएँ भी प्राप्त नहीं हो पातीं। यह वर्ग कई बार मजबूर होकर भीख मांगने का विकल्प अपना लेता है।

भिक्षावृत्ति भारत के माथे पर ऐसा कलंक है जो हमारी आर्थिक तरक्की के दावों को खोखला बनाता है। भीख मांगना कोई सम्मानजनक पेशा नहीं वरन अनैतिक कार्य और सामाजिक अपराध है। सरकार ने इसे कानूनन अपराध घोषित कर रखा हैं। फिर भी यह लाइलाज रोग दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। हमारे देश में भिखारियों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। भारत में कोई भूखा न रहे और भूख के कारण अपराध न करे इसीलिए खाद्य सुरक्षा अधिनियम का प्रस्ताव लाया गया था। भीख मांगना सभ्य समाज का लक्षण नहीं है मगर आत्मसम्मान तथा स्वाभिमान जागृत किए बिना इससे किसी को विमुख नहीं किया जा सकता। सरकार को शिक्षा के प्रसार पर बल देना चाहिए। शिक्षा ही व्यक्ति को संस्कारित कर उसे स्वाभिमानी बना सकती है।

भारत के संविधान में भीख मांगने को अपराध कहा गया है। फिर भी देश की सड़कों पर लाखों बच्चे आखिर कैसे भीख मांगते हैं? बच्चों का भीख मांगना अपराध ही नहीं है, देश की सामाजिक सुरक्षा के लिए खतरा भी है। हर साल कितने ही बच्चों को भीख मांगने के धंधे में जबरन धकेला जाता है। ऐसे बच्चों के आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होने की भी आशंका होती है। पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार देश में हर साल 48 हजार बच्चे गायब होते हैं। उनमें से आधे कभी नहीं मिलते हैं। उन बच्चों में से काफी बच्चे भीख मंगवाने वाले गिरोहों के हाथों में पड़ जाते हैं। हर साल हजारों गायब बच्चे भीख के धंधे में झोंक दिये जाते हैं।

भारत में ज्यादातर बाल भिखारी अपनी मर्जी से भीख नहीं मांगते। वे संगठित माफिया के हाथों की कठपुतली बन जाते हैं। इन बच्चों के हाथों में स्कूल की किताबों की जगह भीख का कटोरा आ जाता है। भारत में भीख माफिया बहुत बड़ा उद्योग है। इससे जुड़े लोगों पर कभी आंच नहीं आती। हमारे देश की सबसे बड़ी प्राथमिकता बाल भिखारियों पर रोक लगाना होनी चाहिए। इसके लिए सामाजिक भागीदारी की जरूरत है। सामाजिक भागीदारी की बदौलत ही केंद्र और राज्यों की सरकारों पर बाल भिखारियों को रोकने के लिए दबाव डाला जा सकेगा। इस दबाव के कारण सरकारें अपने-अपने स्तर पर कार्रवाई करें तो इस समस्या पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है।

भिखारियों को काम में लगाये जाने की आवश्यकता है। और कुछ नहीं तो रोजाना दो वक्त का मुफ्त खाना देकर इन सारे भिखारियों को विभिन्न प्रकार का प्रशिक्षण देकर सरकार के रोजगारपरक अभियानों से जोड़ा जाना चाहिए। सरकार द्वारा चलाये जा रहे कौशल विकास कार्यक्रम से भिखारियों को स्वरोजगार परक प्रशिक्षण दिलवाकर इनको रोजगार से जोड़े तो इससे भीख मांगने की प्रवृति पर रोक लग सकती है।

2018 में सामाजिक कल्याण मंत्री थावरचंद गहलोत ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था कि देश में कुल 4 लाख 13 हजार 760 भिखारी हैं। जिनमें 2 लाख 21 हजार 673 भिखारी पुरुष और बाकी महिलाएं हैं। भिखारियों की इस सूची में पश्चिम बंगाल पहले नंबर पर है। बंगाल में भिखारियों की संख्या सबसे अधिक है। उसके बाद दूसरे स्थान पर है उत्तर प्रदेश और तीसरे पर बिहार है। मगर हकीकत यह है कि देश में भिखारियों की संख्या इन आंकड़ों से कई गुणा अधिक है।

हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने भिक्षावृत्ति को अपराध घोषित करने वाले कानून बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट, 1959 की 25धाराओं को समाप्त कर दिया। साथ ही भिक्षावृत्ति के अपराधीकरण को असंवैधानिक करार दिया है। बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट, 1959 की कुछ धाराओं में फेरबदल कर दिल्ली हाईकोर्ट ने ऐसे गरीब लोगों के जीवन जीने के अधिकार की रक्षा का सार्थक प्रयास किया है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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