– डा. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
यह भले ही भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली में कुत्ता संभालने के लिए बीटेक, बीकाॅम, बीए डिग्रीधारी युवा की आवश्यकता के विज्ञापन जारी होने और इसपर सोशल मीडिया पर फजीहत के बाद वापस लेने का मामला हो पर इससे हमारी डिग्रीधारी युवाओं के प्रति मानसिकता उजागर होती है। आखिर आईआईटी जैैसे संस्थान में डाॅग हैण्डलर को 45 हजार रुपए प्रतिमाह पर रखने के विज्ञापन में इतनी बड़ी गफलत कैसे हो सकती है? हालांकि अब इसे मानवीय भूल व कम्प्यूटर कटपेस्ट का दोष बताते हुए सफाई दी जा रही है। यह विज्ञापन शिक्षा व्यवस्था और बेरोजगारी की हालत को उजागर करता है।
पिछले साल की ही बात है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से प्राप्त समाचार के अनुसार चपरासी के 62 पदों के लिए तकरीबन 93 हजार आवेदनों में चपरासी की आरंभिक योग्यताधारक यानी पांचवीं से 12 वीं तक के 7400 आवेदकों में साढ़े तीन हजार पीएचडी की उपाधि प्राप्त युवा थे। अब यह कोई नई बात नहीं रही। कुछ साल पहले राजस्थान में सचिवालय में चपरासी के पद के लिए भी कई हजार आवेदन प्राप्त हुए थे। उनका साक्षात्कार तक लेना मुसीबत का सबब बन गया था। इसी तरह नगरपालिकाओं और नगर निगमों में सफाई कर्मचारियों के पदों के लिए भी तकनीकी शिक्षा प्राप्त युवाओं के आवेदन आम हैं।
इंजीनियरिंग व प्रबंधन में डिग्रीधारी युवाओं का चपरासी या सफाई कर्मचारी की नौकरी के लिए आवेदन करना देश की शिक्षा व्यवस्था और सरकारी नौकरी की ललक की स्थिति, दोनों से ही रूबरू कराने के लिए काफी है। इससे पहले मुरादाबाद नगर निगम में सफाईकर्मियों के पदों की भर्ती के समय इन तकनीकी व विशेषज्ञताधारी युवाओं को साक्षात्कार के दौरान सफाई के लिए नाले में उतारने के समाचार सुर्खियों में आ चुके हैं। इन युवाओं को भर्ती की फिजिकल परीक्षा में फावड़ा-कुदाल आदि देकर सुरक्षा साधनों के बिना ही नाले की सफाई के लिए उतार दिया गया।
आज एक पद के हजारों दावेदार हैं। ऐसे में कम पदों के लिए भर्ती मुश्किल भरा काम हो गया है। चतुर्थ श्रेणी या लिपिक के पदों के लिए भी इंजीनियरिंग, एमबीए, पोस्ट ग्रेजुएट पास युवाओं के आवेदन आम हैं। डिग्रीधारी युवाओं का कहना है कि बेरोजगारी के चलते उनकी मजबूरी है। दूसरी तरफ कुशल व योग्य युवाओं के लिए नौकरी के एक ढूंढो हजार अवसर वाली स्थिति भी हमारे देश में उपलब्ध है। हालांकि आईआईटी दिल्ली का डाॅग हैंडलर का विज्ञापन इस मायने में अलग हो जाता है कि यहां योग्यता में ही बीटेक तक को डाल दिया गया। इस लिहाज से यह गंभीर चिंता का विषय है।
एक समय था जब लोग प्राइवेट नौकरी की ओर आकर्षित थे। अच्छा वेतन और सुविधाएं थी। पर कोरोना ने स्थितियां बदलकर रख दी। प्रतिष्ठित संस्थानों तक ने वर्क फ्रॉम होम के नाम पर तनख्वाह में जिस तरह कटौती की, उससे निजी क्षेत्र में काम करने वालों को अपना भविष्य और अंधकारमय लगने लगा। सरकारी नौकरी में बंदिशें कम और एक तारीख को पूरी पगार वाली स्थिति के साथ ही रिटायरमेंट के बाद का आकर्षण सरकारी नौकरी की तरफ नौजवानों का ध्यान खींचता है। यही कारण है कि सरकारी नौकरी के एक-एक पद के लिए इतने अधिक आवेदन आते हैं। इसमें न्यूनतम योग्यता अब मायने नहीं रखती। एक-से-एक उच्च योग्यताधारी आवेदकों में मिल जाते हैं।
हालांकि यह स्थितियां पिछले कई सालों से चली आ रही है लेकिन कोरोना ने कोढ़ में खाज का काम किया है। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि क्या बेरोजगारी की समस्या वाकई इतनी गंभीर है? या हमारी शिक्षा व्यवस्था में ही खोट है? या अन्य कोई कारण है? दरअसल इसके कई कारणों में से एक हमारी शिक्षा व्यवस्था, दूसरी हमारी शिक्षा का स्तर, तीसरी सरकारी नौकरी के प्रति आज भी युवाओं का आकर्षण है। पर विज्ञापन में बीटेक जैसी योग्यता का उल्लेख हिलाकर रख देने वाली बात है। देखा जाए तो पिछले दशकों में देश में शिक्षा का तेजी से विस्तार है। कुकुरमुत्तों की तरह शिक्षण संस्थाएं खुल गई। आज स्थिति यह है कि देश के इंजीनियरिंग काॅलेजों व प्रबंधन संस्थानों की सीटें पूरी नहीं भर पाती। युवाओं का एमबीए से धीरे-धीरे मोहभंग हुआ तो अब इंजीनियरिंग से भी मोहभंग हो रहा है। जिस इंजीनियरिंग में प्रवेश के लिए युवाओं को कड़ी मेहनत के बाद भी मुश्किल से प्रवेश मिलता था, आज प्रवेश परीक्षा में कम अंक लाने पर भी प्रवेश हो जाता है। यहां तक कि सीनियर सेकण्डरी के प्राप्तांकों के आधार पर भी प्रवेश होने लगा।
तस्वीर का एक पहलू यह भी है कि कई तकनीकी व प्रबंधन शिक्षण संस्थानों में स्तरीय संकाय सदस्यों का अभाव आम है। कुछ संस्थानों में संकाय सदस्यों को फर्जी तरीके से दिखाया जा रहा है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा दो साल पहले जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि करीब 80 हजार शिक्षक एक से अधिक संस्थानों में अपना प्लेसमेंट दिखाकर वेतन भत्ते प्राप्त कर रहे हैं। इन संस्थानों में पढ़ाई की क्या स्थिति होगी, बताने की जरूरत नहीं। इंजीनियरिंग में अच्छे योग्यताधारी युवाओं को लगभग सभी कंपनियों द्वारा आजकल सीधे संस्थानों में प्लेसमेंट के लिए साक्षात्कार आयोजित कर चयनित कर लिया जाता है।
सरकार बेशक इंजीनियरिंग, प्रबंधन, मेडिकल व इस तरह की अन्य शिक्षण संस्थाओं का जाल फैलाए, निजी क्षेत्र को अधिक से अधिक बढ़ावा दे, निजी विश्वविद्यालयों को मान्यता दे लेकिन यह साफ हो जाना चाहिए कि इन संस्थानों में शिक्षा के स्तर से किसी तरह का समझौता नहीं होना चाहिए। यदि हमारे शिक्षण संस्थान कुशल, योग्य और प्रतिभाशाली विशेषज्ञ तैयार करने में सक्षम नहीं है तो ऐसी शिक्षा का महत्व नहीं रह जाता है। सरकार को शिक्षण संस्थानों की शैक्षिक स्तर और गुणवत्ता पर किसी तरह की आंच नहीं आने देनी होगी। अन्यथा इसी तरह के दुर्भाग्यजनक व शर्मसार करने वाली स्थिति सामने आएगी। सरकारी नौकरी की चाहत में चपरासी जैसे पदों के लिए भी मारामारी और इसी तरह के विज्ञापन आम होने लगेंगे। हालांकि इसबार विज्ञापन वापस ले लिया गया है पर जिस तरह इन पदों के लिए उच्च शिक्षाधारी युवाओं के आवेदन आते हैं, अपने आप में गंभीर चिंता का विषय है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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