उज्जैन। यदि प्राचीन ग्रंथों का उदाहरण लें तो ऋग्वेद 10-85-6, मैत्रायणी संहिता 3-7-3, गृह्य सूत्र 1-7, शथपथ ब्राम्हण/एतरेय ब्राम्हण में तथा रामायण में श्रीराम जन्म के समय एवं श्रीमद् भागवत में श्रीकृष्ण जन्म के स्त्रियों के द्वारा सामुहिक रूप से लोक गीत गाने का वर्णन मिलता है।
संस्कृत चरित्र महाकाव्य 2-85 में हर्ष ने स्त्रियों द्वारा गाये जानेवाले गीतों का वर्णन किया है। तुलसीदास ने सीता विवाह के समय स्त्रियों द्वारा गाये गीत – चली संग ले सखी सयानी, गावत-गीत मनोहर बाणी को लिपिबद्ध किया है। ये प्राचीन ग्रंथों के उदाहरण भी बताते हैं कि लोक गीत हमारी संस्कृति के अमिट अंग थे, हैं और रहेंगे। संजा के गीतों को अपभ्रंश के रूप में भी देखें तो इतना अधिक अंतर नहीं आया। तात्कालिक समय की परिस्थितियों का वर्णन अन्य ग्रंथों में भी मिलता है।
यदि इतिहास में थोड़ा पीछे जाएं तो ज्ञात होगा कि भारतीय लोक गीत वैदिक मंत्रों के उत्तराधिकारी बने। चूंकि लोक गीतों में भाव और शब्द दोनों होते हैं जोकि वैदिक मंत्रों आधार है। वैदिक ग्रंथों में उल्लेख है कि किस पर्व, उत्सव, पारिवारिक उल्लास में क्या किया जाता है। संजा के माण्डने और गीत न केवल मालवा की लोक संस्कृति के प्रतिक है वरन् भारतीय जीवन शैली की प्राचीनता को भी इंगित करते हैं। एक पुष्ट और सुसंस्कृत शैली, जिसमें माता-पिता के घर में बचपन की उन्मुक्त उड़ान है वहीं मां और भाभी का लाड़। जिसमें सास-ससुर-ननद के स्वभाव को लेकर पूर्व कल्पनाएं है वहीं ससुराल में बहू अपने आप को किस तरह से ढाले, यह मार्गदर्शन भी है। संजा के गीत विभिन्नता लिए हुए है। इनमें देश एवं काल समाहित है। गीतों में क्षेत्रों का भी उल्लेख मिलता है, जो बताता है कि संजा का पर्व देश के अनेक क्षेत्रों में मनाया जाता था, जो आज राज्यों में विभाजित हैं।
आज बनेगा आठ पंखुड़ी का फूल
अष्टमी को संजा की सखियां संजा के माण्डने में आठ पंखुडिय़ों का फूल बनाएगी। संजा के माण्डने में बननेवाला फूल का माण्डना आठों दिशाओं का प्रतिक है। चार दिशाएं मुख्य है वहीं इनके बीच के मध्य भाग में भी एक-एक संयुक्त दिशा आती है। ये आठों दिशाएं दर्शाती है कि हमें अपने और परिवार के प्रति न केवल चौकन्ना रहना चाहिए, बल्कि कर्तव्य के हर पथ पर सतत खरे उतरना चाहिए। बुजूर्ग महिलाओं के अनुसार-धर्म, कर्तव्य, निष्ठा,आदर,प्यार,मर्यादा,संस्कार और पंरपराओं का पालन करना एक गृह लक्ष्मी का पहला काम रहता है। पीहर में संजा के माण्डने के माध्यम से इन सभी का अर्थ समझाया जाता है। ताकि कुंवारी कन्या विवाह पश्चात ससुराल में इनका पालन कर सके।
आज का गीत
संजा तू बड़ा बाप की बेटी
तू खाये खाजा रोटी
तू पेरे माणक मोती
पठाणी चाल चाले
गुजराती बोली बोले
संजा एवड़ो हो, माथे बेवड़ो हो
थारा डाबा हाथ करेल हो
थारा जिमणा हाथ मोती हो
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