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न हवा है न पानी, फिर भी चांद को लग रहा है जंग; पृथ्वी पर मिलने वाले खनिज हेमेटाइट की मौजूदगी से वैज्ञानिक हैरान

September 05, 2020

चांद पर हेमेटाइट के चिह्न ज्यादातर वहीं मिले हैं जहां पहले बर्फ के भंडार थे।

  • चांद की सतह पर ऑक्सीडाइज्ड आयरन (लोहे) के अंश हेमेटाइट नजर आए हैं
  • पृथ्वी पर ऑक्सीडाइज्ड आयरन प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला खनिज है

चांद को जंग लग रहा है। अंतरिक्ष में हमारे सबसे करीबी पड़ोसी की सतह पर जंग के दाग दिख रहे हैं। यानी चांद की सतह पर ऑक्सीडाइज्ड आयरन (लोहे) के अंश हेमेटाइट नजर आए हैं। पृथ्वी पर यह प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला खनिज है। लेकिन चांद की सतह पर इस खनिज के चिह्न चौंकाने वाले हैं।

लोहे के ऑक्सीडेशन यानी जंग लगने के लिए हवा और पानी यानी नमी दोनों का होना जरूरी है। जबकि चांद पर हवा न के बराबर है और तरल अवस्था में पानी भी नहीं है। चांद पर वैज्ञानिकों को वॉटर आइस यानी बर्फ की मौजूदगी तो मिली है, लेकिन सिर्फ इससे सतह पर हेमेटाइट का बनना संभव नहीं है।

आश्चर्यजनक है कि पृथ्वी का यह उपग्रह लगातार सूर्य की सोलर विंड्स के थपेड़े झेलता है

‘साइंस एडवांसेस’ में प्रकाशित यूनिवर्सिटी ऑफ हवाई के शोध के मुताबिक चांद की सतह पर हेमेटाइट का पता भारतीय चंद्रयान-1 के ऑर्बिटर की ली हुई तस्वीरों में चला है। यूनिवर्सिटी ऑफ हवाई में प्लेनेटरी साइंस की विशेषज्ञ शुआई ली का कहना है कि चांद की सतह पर हेमेटाइट बनना इसलिए भी आश्चर्यजनक है कि पृथ्वी का यह उपग्रह लगातार सूर्य की सोलर विंड्स के थपेड़े झेलता है।

पृथ्वी के नजदीक वाले हिस्से में हेमेटाइट की मौजूदगी

इन सोलर विंड्स के साथ आने वाले हाइड्रोजन के परमाणु सतह पर इलेक्ट्रॉन छोड़ते रहते हैं, जबकि आयरन ऑक्सीडेशन सिर्फ इलेक्ट्रॉन कम होने पर ही हो सकता है। चांद पर हेमेटाइट की मौजूदगी उसी हिस्से में ज्यादा है, जो पृथ्वी के नजदीक है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक बदलाव के ये कारण हो सकते हैं
चांद पर हेमेटाइट के चिह्न ज्यादातर वहीं मिले हैं जहां पहले बर्फ के भंडार थे। वैज्ञानिक मानते हैं कि उल्का टकराने से चांद की सतह के नीचे की बर्फ पिघली और सतह पर आ गई। सूक्ष्म पानी के कण वहां पैदा हुए।अध्ययन में यह साबित हो चुका है कि पृथ्वी के वायुमंडल की ऑक्सीजन, सोलर विंड्स के साथ चांद तक जाती है।

इससे चांद की सतह पर ऑक्सीजन के कण पहुंचने से ऑक्सीडेशन हो सकता है। जब पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के बीच में आती है तो चांद तक सोलर विंड्स नहीं पहुंच पाती। ऐसे में हाइड्रोजन की बमबारी से भी चांद बचा रहता है। इसी समय आयरन ऑक्सीडेशन हो सकता है।

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