नई दिल्ली । भारत और रूस ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की मास्को यात्रा के दौरान एके-203 राइफल के लिए एक सौदे को अंतिम रूप दे दिया है। भारतीय सेना को लगभग 7 लाख 70 हजार इन राइफलों की जरूरत है, जिनमें से एक लाख राइफल्स का रूस से आयात किया जाएगा और बाकी का निर्माण ’मेक इन इंडिया’ के तहत भारत में किया जायेगा।
भारतीय सेना के लिए ’मेक इन इंडिया’ के तहत रूसी तकनीक की मदद से 7.62×39 मिमी की एके-203 राइफल का निर्माण उत्तर प्रदेश के अमेठी स्थित कोरवा ऑर्डिनेंस फैक्टरी में किया जाना है। इसके लिए रूसी एजेंसी इंडो-रूस राइफल्स प्राइवेट लिमिटेड का गठन किया गया है, जिसमें भारतीय आयुध निर्माणी बोर्ड (ओएफबी), कलाश्निकोव कंसर्न और रोसोबोरोनेक्सपोर्ट भागीदार हैं। इस संयुक्त उद्यम में ओएफबी की 50.5 प्रतिशत, कलाश्निकोव की 42 प्रतिशत और रोसोबोरोनएक्सपोर्ट की 7.5 प्रतिशत हिस्सेदारी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 3 मार्च, 2019 को रूसी तकनीक की मदद से 6.71 लाख एके-203 राइफलों का निर्माण किये जाने की योजना का औपचारिक उद्घाटन अमेठी स्थित कोरवा ऑर्डिनेंस फैक्टरी में जाकर किया था। पीएम मोदी ने जोर देकर कहा है कि एके -203 राइफलें देश के सुरक्षा बलों को आतंकवाद विरोधी अभियानों में आतंकवादियों से लड़ने में मदद करेंगी।
इन राइफल्स की खासियत के बारे में बताया गया है कि 300 मीटर तक मार करने वाली एके-203 का मैकेनिज्म एके-47 राइफल की तरह ही है लेकिन नई राइफल एके-47 की तुलना में ज्यादा सटीक मार करेगी। एके-203 राइफल में एके-47 की तरह ऑटोमैटिक और सेमी ऑटोमैटिक दोनों सिस्टम होंगे। एक बार ट्रिगर दबाकर रखने से गोलियां चलती रहेंगी। अब तक यह सौदा फाइनल न हो पाने की वजह से भारत को इसी साल फरवरी में अमेरिका से 72 हजार 400 असॉल्ट राइफलें खरीदनी पड़ी। इससे 15 लाख की क्षमता वाले भारतीय सशस्त्र बलों की जरूरतें पूरी न होने की वजह से दूसरी खेप में फिर से 72 हजार असॉल्ट राइफलें खरीदने का प्रस्ताव डीएसी के पास भेजा गया था।
अमेरिकी असॉल्ट राइफलों का इस्तेमाल आतंकवाद निरोधी अभियानों और नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर अग्रिम पंक्ति के सैनिकों द्वारा किया जाएगा जबकि शेष सेनाओं को एके-203 राइफलें दिए जाने की योजना है। यह नई अमेरिकी नई असॉल्ट राइफल्स सेना के पास इस समय मौजूद इंसास राइफलों का स्थान लेंगी। इन इंसास राइफलों का निर्माण भारत में ही आयुध कारखाना बोर्ड ने किया था।
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