आज है मशहूर गीतकार शैलेन्द्र की जयंती
इन्दौर। गीतकार शैलेन्द्र एक सादगी भरी शख्शियत के लिए याद किए जाते हैं वे ऐसे गीतकार थे जो सुबह जुहू बीच पर सुबह टहलने के दौरान ही अपने अधिकांश गीतों की रचना कर देते थे … राजकपूर को अपने गीतों के जरिए शैलेन्द्र ने ही ऊंचाईयों पर पहुंचाया था ।
बॉलीवुड जगत के पिछले दो दशक से लगभग 170 फिल्मों में 500 से अधिक गीतों के जरिए लोगों को जिंदगी का हर फलसफा समझाना और जिंदगी के हर रंग को दिखाने में माहिर गीतकार शैलेन्द्र की आज 30 अगस्त को जयंती है। शैलेन्द्र ने वो हर गीत लिखे जिसमें इंसान अपनी जिंदगी के हर पहलू को जोड़ सकता है। मुंबई के जुहू बीच पर सुबह की सैर के दौरान गीत लिखने वाला ये गीतकार जीवन की हर छोटी से छोटी बात अपने गीतों के जरिए समझाता था।पश्चिमी पंजाब का रावलपिंडी शहर हुआ करता था जो आज के पाकिस्तान में बसा है वहां 30 अगस्त 1923 को शंकरदास केसरीलाल उर्फ शैलेन्द्र का जन्म हुआ , साल 1947 शैलेन्द्र में करियर और काम की तलाश में मुंबई आए और रेलवे में नौकरी करने लगे लेकिन मन उनका कविताओं में ही रहता। वो ऑफिस के समय काम कम और कविताएं लिखा करते थे। उनके इस रवैये के कारण उनके कई अधिकारी उनसे नाराज चलते थे गीतकार के रूप में शैलेन्द्र ने अपना पहला गाना राजकपूर की साल 1949 में आई फिल्म ‘बरसात’ के लिए ‘बरसात में तुमसे मिले हम सजन’ लिखा। यह गाना लोगों को काफी पसंद आया औऱ इस गाने के बाद शैलेन्द्र और राजकपूर की मानो जोड़ी बन गई। दोनों ने इसके बाद ‘आवारा’, ‘आग’, ‘श्री 420’, ‘चोरी चोरी’ ‘अनाड़ी’, ‘जिस देश में गंगा बहती है’, ‘संगम’, ‘तीसरी कसम’, ‘एराउंड द वल्र्ड’, ‘दीवाना’, ‘सपनों का सौदागर’ और ‘मेरा नाम जोकर’ जैसी फिल्मों में काम किया।
आखिरी समय एक वादा अधूरा रह गया
शैलेन्द्र ने फिल्मों में भी हाथ आजमाया और साल 1966 में ‘तीसरी कसम’ फिल्म बनाई जो बॉक्स ऑफिस पर बड़ी असफल साबित हुई जिसके बाद उन्हें गहरा सदमा लगा और उन्हें दिल का दौरा पड़ गया। 13 दिसंबर 1966 को अस्पताल जाने से पहले वो राजकपूर से मिले और उनकी आने वाली फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ का गीत ‘जीना यहां मरना यहां’ पूरा लिखने का वादा किया लेकिन ये वादा सिर्फ एक वादा ही रह गया। अगले दिन 14 दिसंबर 1966 को उनका निधन हो गया।
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