मेडिकल कॉलेज ने की मरीजों की स्टडी… डायबिटीज के साथ होम आइसोलेशन में उपचाररत मरीज भी मिले बड़ी संख्या में
इंदौर। आज सुबह तक एमवाय, कैंसर हास्पिटल (cancer hospital) में 240 ब्लैक फंगस (Black fungus) के मरीज भर्ती हो गए। इनमें से 13 को हालांकि उपचार के बाद डिस्चार्ज भी कर दिया है। वहीं लगभग 100 मरीज निजी अस्पताल ( private hospital) में भी भर्ती हैं, लेकिन 40 फीसदी से अधिक बाहरी मरीज भर्ती हुए हैं। इंदौर मेडिकल कॉलेज ने ब्लैक फंगस (Black fungus) के सवा सौ मरीजों पर स्टडी की, जिससे यह तथ्य सामने आया कि 98 फीसदी से अधिक ब्लैक फंगस के मरीजों ने एंटीबायोटिक (Antibiotic) दवाइयों का सेवन किया। वहीं डायबिटीज पीडि़त मरीज भी ब्लैक फंगस का अधिक शिकार बने तो 36 प्रतिशत मरीज ऐसे मिले, जिनका होम आइसोलेशन में कोरोना का इलाज चल रहा था और बाद में ब्लैक फंगस की शिकायत होने पर भर्ती हुए।
ब्लैक फंगस (Black fungus) के कई मरीजों में इम्यूनिटी लेवल भी कम मिला तो ग्रामीण क्षेत्रों से भी 20 फीसदी से अधिक मरीज भर्ती हुए हैं। मेडिकल कालेज के डीन डॉ. संजय दीक्षित का कहना है कि अभी तक एमवाय, कैंसर हास्पिटल में 240 ब्लैक फंगस के मरीज भर्ती हो चुके हैं, जिनमें से 13 को डिस्चार्ज भी कर दिया। एक दर्जन मरीजों की सर्जरी की जा चुकी है और 27 की एंडोस्कोपी भी की गई। शासन से जो इंजेक्शन इन मरीजों को मिल रहे हैं वे दिए जा रहे हैं। वहीं निजी अस्पतालों को अब नई व्यवस्था के चलते सीधे स्टाकिस्टों द्वारा ही इंजेक्शन भिजवाए जा रहे हैं। अभी जिन लगभग सवा सौ ब्लैक फंगस के मरीजों की स्टडी यानी अध्ययन मेडिकल कालेज ने किया, उसमें यह पता चला कि एक दर्जन से ज्यादा ऐसे मरीज भी हैं, जिन्हें कोरोना हुआ ही नहीं। वहीं डायबिटीज यानी शुगर के मरीजों की संख्या भी अधिक देखी गई। इन मरीजों में महिलाओं की संख्या भी 40 फीसदी है, वहीं अधिक संख्या में पुरुष ब्लैक फंगस का शिकार मिले हैं और 41 से 60 साल की उम्र के जो पुरुष ब्लैक फंगस का शिकार मिले उनका 67 प्रतिशत है। इनमें से भी 93 फीसदी मरीज ऐसे हैं, जो डायबिटीज पीडि़त रहे हैं। वहीं इनमें 85 फीसदी मरीजों को कोरोना इलाज के दौरान जो स्टेरॉइड दिए गए वे 85 फीसदी हैं। वहीं एमवाय अस्पताल के चारों विभागों में भर्ती इन मरीजों की स्टडी से सबसे चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि 98 प्रतिशत से अधिक मरीजों ने पिछले दिनों अपने उपचार के दौरान एंटीबायोटिक दवाइयों का सेवन किया। वहीं 57 फीसदी से अधिक मरीजों का इलाज अस्पतालों या कोविड केयर सेंटर में हुआ तो लगभग 36 प्रतिशत मरीज होम आइसोलेशन में इलाज करवा रहे थे। पिछले दिनों यह भी समाचार सोशल मीडिया पर खूब प्रचारित हुआ कि ब्लैक फंगस का कारण दूषित ऑक्सीजन भी है। दरअसल पिछले दिनों जब बड़ी संख्या में कोरोना मरीज सामने आए तो अस्पतालों में बेड, इंजेक्शन, ऑक्सीजन की जबरदस्त कमी थी, जिसके चलते इंडस्ट्री यूज की ही ऑक्सीजन अधिक इस्तेमाल की गई और मेडिकल ऑक्सीजन कम मात्रा में ही मरीजों को मिली। लोगों ने घरों में ही ऑक्सीजन के सिलेंडर इधर-उधर से कबाडक़र अपने परिजनों को लगाए। वहीं यह भी कहा गया कि जो पानी का इस्तेमाल किया जाता है वह भी स्टील वाटर नहीं था, लेकिन स्टडी से पता चला कि 64 मरीज ऐसे मिले, जिन्हें ऑक्सीजन की ही जरूरत नहीं थी।
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