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दुनिया में बढ़ते तापमान से टेंशन में हैं 91% भारतीय, नई स्टडी में खुलासा

नई दिल्ली: जलवायु परिवर्तन और दुनिया में बढ़ता तापमान ये ऐसी हकीकतें हैं जिन्हें चाह कर भी झुठलाया नहीं जा सकता. आंकड़े भी इसकी तस्दीक करते हैं. गर्मी खुद इस साल नए रिकॉर्ड बना रही है. विश्व बैंक ने तो भारत को सबसे अधिक जलवायु जोखिम वाली आबादी वाले देश के रूप में पहचाना है. भारत में इस समय लोग चिलचिलाती गर्मी के बीच लोकसभा चुनाव के लिए वोट भी डालने जा रहे हैं. लेकिन बावजूद इसके जलवायु परिवर्तन चुनावी एजेंडे पर हावी नहीं हुई है. अगर हावी होती तो भाषणों में इस मुद्दे पर नेता बोल रहे होते जैसे वो बाकी कई दूसरे मुद्दों पर बोलते हुए दिखते हैं.

लेकिन एक नेशनल लेवल पर की गई स्टडी के मुताबिक आम भारतीय भी इस बात को मानते हैं कि जलवायु में आते बदलाव लोगों के जीवन को प्रभावित कर रहे हैं. देश में लोग बढ़ते तापमान को लेकर चिंतित है. करीब 91 फीसदी लोगों का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग अब वर्तमान हो चुका है और ये चिंता का विषय है. सितंबर-अक्टूबर 2023 के दौरान ये स्टडी की गई है. रिपोर्ट, क्लाइमेट चेंज इन द इंडियन माइंड, 2023, येल प्रोग्राम ऑन क्लाइमेट चेंज कम्युनिकेशन और भारतीय अंतरराष्ट्रीय मतदान एजेंसी सेंटर फॉर वोटिंग ओपिनियन एंड ट्रेंड्स इन इलेक्शन रिसर्च, जिसे C Voter भी कहा जाता है ने मिलकर की है.


रिपोर्ट का मकसद ये जानना था कि जलवायु परिवर्तन को लेकर लोगों के बीच कितनी जागरूकता है, कितने लोगों इस पर नीति का समर्थन करते हैं. सर्वे में शामिल 59 प्रतिशत लोगों ने इस मुद्दे को “बहुत चिंतित” कैटेगरी में डाला है. यह गर्म होती धरती की वजह से समस्याएं झेल रहे लोगों के बीच तत्काल कदम उठाने की भावना की तरफ इशारा करता है. भारत में बहुत से लोग (52 प्रतिशत) इससे इत्तेफाक रखते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने की मुख्य वजह मानवीय गतिविधियां ही हैं. जबकि 38 प्रतिशत का मानना ​​है कि यह मुख्य रूप से प्राकृतिक पर्यावरणीय परिवर्तनों के कारण होता है. 1 फीसदी ही लोगों ने माना कि इसका कोई और कारण हो सकता है और 2 प्रतिशत को पता नहीं था.

लगभग 53 प्रतिशत भारतीयों का मानना ​​है कि वे पहले से ही ग्लोबल वार्मिंग से प्रभावित हो रहे हैं. लगभग एक-तिहाई भारतीयों (34 प्रतिशत) को मौसम संबंधी आपदाओं जैसे अत्यधिक गर्मी, सूखा, समुद्र-स्तर में बढोतरी, बाढ़ की वजह से पहले ही विस्थापित हो चुके हैं या ऐसा करने पर विचार कर रहे हैं. 60 प्रतिशत लोगों का मानना है कि इससे कई और गंभीर हीटवेव चलेंगी, 57 फीसदी का कहना है कि पौधों और जानवरों की प्रजातियों के विलुप्त होने का भी खतरा भी बढ़ेगा. सूखा और पानी की कमी होगी. गंभीर चक्रवात, अकाल और भोजन की कमी भी बड़े स्तर पर होगी.

उनके यह भी मत है कि कहीं न कहीं यह बदलाव उनके रोजगार और जेब पर चोट कर रहे हैं. यही वजह है कि 74 फीसदी लोग इस बात से सहमत दिखे कि ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने से आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा. 78 प्रतिशत भारतीयों के अनुसार, भारत सरकार को ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए और अधिक प्रयास करना चाहिए. केवल 10 प्रतिशत का मानना ​​है कि सरकार ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए पर्याप्त प्रयास कर रही है, जबकि 9 प्रतिशत का मानना ​​है कि सरकार को इस मुद्दे के समाधान के लिए “कम” या “बहुत कम” प्रयास करना चाहिए.

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