उज्जैन। नगर निगम की पिछले दो वर्ष से सिटी बसें बंद पड़ी है, जिसके चलते करोड़ों रुपये खर्च कर उज्जैन की जनता की परिवहन सुविधा के लिए निगम द्वारा खरीदी गई सिटी बसें आज मक्सी रोड पर स्थित डिपो वर्कशॉप पर भंगार हो रही हैं। 23 करोड़ में पिछले 10 सालों में 89 बसें खरीदी गईं जो आज निगम डिपो में भंगार के रूप में पड़ी हंै और इसकी जवाबदारी लेने को कोई तैयार नहीं। अभी भी घटे दरों में मिलीभगत कर टेंडर देने की तैयारी की जा रही है।
सिटी बस सेवा के सीईओ राजेंद्र प्रसाद मिश्रा ने बताया कि निगम के पास अभी 89 सिटी बसें हैं जिनमें से 39 बसें सीएनजी हैं जो कि चलने की स्थिति में नहीं हैं। सीएनजी किड का सामान नहीं मिलने के कारण यह बसें अब खराब हो चुकी हैं इसके अलावा 50 बसें डीजल वाली हैं जिसमें से 25 बसों को चलाने के लिए टेंडर प्रक्रिया चल रही है। विजय गोयल उपयंत्री वर्कशॉप ने बताया कि 50 में से 25 डीजल बसों के लिए कई बार टेंडर प्रक्रिया हुई है और इसमें जो रेट आए हैं वह निगम बोर्ड में भेज दिए हैं। 2500 प्रति माह प्रति बस के हिसाब से रेट भेजा है। बसें वर्कशॉप में काफी समय से खड़ी हुई हैं। गाडिय़ों का ऑफ द रोड होने के कारण मेंटेनेंस नहीं हुआ है। टेंडर फाइनल होने के बाद गाडिय़ों का मेंटेनेंस किया जाएगा। जबकि विश्वस्त सूत्रों के अनुसार टेंडर में 380 रुपए प्रतिदिन से अधिक का रेट प्राइवेट ट्रांसपोर्ट कंपनियां द्वारा दिए गए थे लेकिन 380 प्रतिदिन से अधिक के रेट को दरकिनार करते हुए 85 रुपए प्रतिदिन के रेट को बोर्ड में निगम अधिकारियों द्वारा क्यों भेजा गया है जो एक जांच का विषय है। 22 से 25 लाख रुपए की बस को 2500 प्रति माह हिसाब से करीब 80 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से सिटी बसें प्राइवेट ट्रांसपोर्टरों को परिवहन के लिए दी जाएगी। इस हिसाब से लाखों रुपए की बसों से मुनाफा तो दूर की बात है, बस की मूल कीमत को वसूल करना भी संभव नहीं होगा। ऐसे में मौजूदा हालत में निगम की तीन अरब रुपए लगभग की कीमत की बसें भंगार हो रही हैं। निगम के अधिकारी इस मामले में अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ते हुए नजर आ रहे हैं। मामले की जानकारी के लिए निगम कमिश्नर से संपर्क किया लेकिन संपर्क नहीं हो पाया। बाहर हाल गौर करने वाली बात यह है कि जब सिटी बस का परिवहन प्राइवेट एजेंसियों के द्वारा ही कराना है तो ऐसे में उज्जैन नगर निगम ने करोड़ों रुपयों की बसों को क्यों खरीद कर भंगार करने के लिए छोड़ दिया। ऐसे में सवाल यह उठता है कि उज्जैन नगर निगम द्वारा सरकार का करोड़ों रुपए के नुकसान का आखिर जिम्मेदार कौन है। वहीं इस गैर जिम्मेदाराना कार्यप्रणाली वाले निगम अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है, जबकि मध्य प्रदेश में इंदौर सहित अन्य कई शहरों में नगर निगम सिटी बस को शहर में चलाने की परमिट रॉयल्टी राशि प्राइवेट बस संचालकों से लेती है इसमें बसें प्राइवेट संचालकों की ही होती है। उज्जैन नगर निगम द्वारा सिटी बस के संचालन की शुरुआत की गई एवं उसी वक्त ड्राइवर क्लीनर आदि भी बस का संचालन के लिए नियुक्त किए गए लेकिन बाद में प्राइवेट ठेकेदारों को यह जिम्मेदारी सौंप दी गई। प्राइवेट कंपनी अर्थ कनेक्टिविटी को बहुत समय के लिए सिटी बस के संचालन की जिम्मेदारी दी गई थी। सिटी बसों के ड्राइवर क्लीनर आदि की महीनों की तनखा उन्हें नहीं दी गई जिसका वाद न्यायालय में चल रहा है। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार सीएनजी बसों में लगने वाली सीएनजी किट के पार्ट्स के सप्लायर के भी करोड़ों रुपए बकाया है जिसके कारण से कंपनी ने सप्लाई बंद कर दी है, नतीजतन 39 सीएनजी बसें भंगार हो चुकी है।
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