नई दिल्ली। चाहे जीवन बीमा हो या फिर स्वास्थ्य बीमा (health insurance) या फिर आपके वाहन, घरों या जूलरी का बीमा हो। यह एक ऐसा उपाय है, जिससे आपातकाल (emergency) में आप एक बहुत बड़े कर्ज से या फिर अपनी बचत को एक झटके में गंवाने से बच सकते हैं। आप कोई भी बीमा ले रहे हैं तो पहले इसके बारे में जांच-पड़ताल जरूर करें। ऐसा इसलिए क्योंकि, 2021-22 में बीमा लोकपालों ने ग्राहकों की कुल 40,527 शिकायतों का समाधान किया। उसके पहले 2020-21 में 30,596 शिकायतें सुलझाई गई थीं। जाहिर तौर पर, किसी भी उत्पाद या कंपनी के खिलाफ शिकायतें तभी मिलती हैं, जब उनमें खामियां हों या ग्राहक उनसे संतुष्ट नहीं हो। इससे पता चलता है कि शिकायतों की संख्या और ज्यादा होगी।
81 फीसदी शिकायतें निजी कंपनियों के खिलाफ
आंकड़े बताते हैं कि 2021-22 में 81 फीसदी शिकायतें निजी बीमा कंपनियों (private insurance companies) के खिलाफ थीं। बाकी एलआईसी और अन्य सरकारी जनरल बीमा कंपनियों के खिलाफ थीं। मुंबई लोकपाल के अनुसार, 2021-22 में पॉलिसीधारकों की स्वास्थ्य बीमा शिकायतों में लगभग 34 फीसदी की वृद्धि हुई है। मुंबई केंद्र ने 2019-20 में 2,298 और 2020-21 में 2,448 स्वास्थ्य बीमा शिकायतों को हैंडल किया था। लेकिन 2021-22 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, यह आंकड़ा बढ़कर 3,276 हो गया।
2021-22 में मुंबई को मिली 4,890 शिकायतों में से 67 फीसदी (3,276) शिकायतें स्वास्थ्य बीमा से संबंधित थीं। शिकायतों का सबसे बड़ा कारण पहले से मौजूद बीमारियों के आधार पर दावा खारिज करना था।
बीमा लोकपाल में कराएं शिकायत
आपके दावों को खारिज करने वाली बीमा कंपनी ही अंतिम निर्णायक संस्थान नहीं है। आप अपनी शिकायत बीमा लोकपाल कार्यालयों (Ombudsman Offices) में दर्ज करा सकते हैं। हालांकि, आपको पहले बीमा कंपनी को शिकायत करना चाहिए। मामले को आगे बढ़ाने से पहले 30 दिनों तक प्रतीक्षा करनी चाहिए।
अगर 30 दिनों तक आपकी शिकायत का जवाब बीमा कंपनी से नहीं मिला, तो आप लोकपाल से संपर्क कर सकते हैं। लोकपाल को शिकायत मिलने से 90 दिनों के भीतर उसका निपटान करना होता है।
ज्यादा कैशलेस नेटवर्क वाली कंपनियों का लें बीमा
जिन कंपनियों का कैशलेस ज्यादा अस्पताल में हो, उन्हीं का स्वास्थ््य बीमा लें। ऐसा नही करते हैं तो आपातकाल में मुश्किल हो सकती है। मुंबई के धर्मेंद्र प्रताप सिंह बताते हैं कि तीन साल पहले आईसीआईसीआई लोंबार्ड से उन्होंने 5 लाख बेस और 10 लाख टॉपअप वाली पॉलिसी में तीन जनों (खुद, पत्नी और मेरी बेटी) का बीमा लिया। सालाना प्रीमियम 32 हजार रुपए है। नवीनीकरण के समय उनसे 40 हजार और मांगा गया क्योंकि उनकी उम्र एक साल बढ़ गई। फिर 9,500 रुपये और मांगा गया। लेकिन जब सवाल जबाव किया गया तो यह रुपये नहीं लिए गए। वे बताते हैं कि 15 दिनों पहले मुझे अपनी पत्नी का इलाज करवाने के लिए उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। अस्पताल में आईसीआईसीआई लोंबार्ड का कैशलेस नहीं लिया गया। जिससे उनको इलाज के लिए दूसरे से कर्ज लेना पड़ा। बाद में उन्होंने इसके रीइंबर्समेंट के लिए आवेदन किया, पर पांच दिन बाद भी इसका कोई हल नहीं निकला। वे कहते हैं कि ऐसी कंपनियों का बीमा तो किसी को नहीं लेना चाहिए।
उपभोक्ता अदालतों में भी जा सकते हैं
बीमा लोकपाल दोनों पक्षों के तर्कों की जांच करने के बाद आदेश पारित करेगा। आप फैसले से संतुष्ट नहीं हैं, तो उपभोक्ता अदालतों का दरवाजा खटखटाने के लिए स्वतंत्र हैं। पॉलिसीधारकों के संरक्षण विनियम, 2017 के अनुसार, बीमाकर्ताओं को ब्याज (मौजूदा बैंक दर से 2 फीसदी अधिक) चुकाना पड़ता है।
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