जयपुर। राजस्थान में सत्ता के संकट से जूझती गहलोत सरकार पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट समेत उनके समर्थकों की वापसी के बाद स्थिर तो हो गई, लेकिन मंत्रिमंडल विस्तार, राजनीतिक नियुक्तियों समेत अन्य नियुक्तियों को लेकर असमंजस की स्थिति में हैं। हालत यह है कि आम आदमी के अधिकारों की रक्षा और उन्हें आसानी से न्याय उपलब्ध करवाने के लिए राज्य में स्थापित 10 आयोगों में से 8 में अध्यक्ष का अभाव हैं, जबकि कई आयोगों में सदस्यों तक की संख्या पूरी नहीं है। इनमें से कई आयोग तो ऐसे हैं, जिनके पास खुद के भवन तक नहीं है।
राज्य सरकार प्रदेश में स्थापित विभिन्न आयोगों के प्रति की उपेक्षा का भाव बरत रही है। कई आयोगों के पास जहां अपने स्वतंत्र भवन तक नहीं हैं वहीं ज्यादातर आयोगों में अध्यक्षों और सदस्यों के पद खाली पड़े हैं। 10 में से 8 आयोग तो अभी बिना अध्यक्षों के संचालित हो रहे हैं। इन आयोगों में सदस्यों की नियुक्तियां भी नहीं हैं। 10 में से 7 आयोग ऐसे हैं जिनमें अभी व्यवस्थाएं प्रशासकों के भरोसे चल रही हैं। राज्य महिला आयोग में अध्यक्ष और सभी सदस्यों के पद खाली हैं। राज्य मानवाधिकार आयोग में कार्यवाहक अध्यक्ष हैं, जबकि 2 सदस्यों के पद खाली हैं। राज्य अल्पसंख्यक आयोग में अध्यक्ष का पद खाली है। यहां 4 सदस्यों के पद भी रिक्त हैं। राज्य अनुसूचित जाति आयोग में अध्यक्ष का पद रिक्त है तो एक सदस्य का पद भी रिक्त है। राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग में अध्यक्ष और एक सदस्य का पद रिक्त है। निशक्तजन आयोग में भी अध्यक्ष और एक सदस्य का पद रिक्त है। राज्य सफाई कर्मचारी आयोग में अध्यक्ष का पद रिक्त है। इसके साथ ही 6 सदस्यों के पद भी खाली हैं। राज्य किसान आयोग में अध्यक्ष पद के साथ ही 8 सदस्यों के पद भी रिक्त चल रहे हैं।
हालत ये हैं कि 10 में से 7 आयोगों के पास तो अपने स्वतंत्र भवन तक नहीं हैं। केवल राज्य महिला आयोग, राज्य सूचना आयोग और राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग ही अपने स्वतंत्र भवन में संचालित हो रहे हैं। जबकि, बाल संरक्षण आयोग, राज्य मानवाधिकार आयोग, राज्य अल्पसंख्यक आयोग, राज्य अनुसूचित जाति आयोग, निशक्तजन आयोग, राज्य सफाई कर्मचारी आयोग और किसान आयोग के पास अपने भवन तक नहीं हैं। ये सभी आयोग दूसरे सरकारी विभागों के दफ्तरों से संचालित हो रहे हैं। राज्य मानवाधिकार आयोग का कार्यालय शासन सचिवालय से संचालित हो रहा है। मानवाधिकार आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष जस्टिस प्रकाश टाटिया ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर आग्रह भी किया था कि आयोग कार्यालय को सचिवालय से बाहर निकाला जाए, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों के लोग सचिवालय में आने से ही कतराते हैं। आयोगों में नियुक्तियों को लेकर हाईकोर्ट भी कई बार राज्य सरकार से जवाब तलब कर चुका है। एजेंसी