उज्जैन। जिले में मुफ्त का राशन लेने वाले करीब 70 फीसदी परिवार हैं, दूसरी तरफ सरकार कहती है कि गरीबों का आंकड़ा लगातार कम हो रहा है। ज्यादातर अपात्र लोग इस योजना का लाभ ले रहे हैं। शासन को सघन सर्वे कर अपात्र लोगों को बीपीएल की सूची में से हटाना चाहिए।
उज्जैन जिले की सात विधानसभाओं की जनसंख्या करीब 15 लाख के आसपास है और यदि इसमें एक परिवार में औसत चार लोग मान लिए जाए तो करीब 3 लाख 75 हजार परिवार जिले में निवास करते हैं। खाद्य विभाग से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार इस समय जिले में 2 लाख 70 हजार बीपीएल कार्ड और राशन पर्ची बनी हुई है जो शासन से मुफ्त अनाज का लाभ ले रहे हैं, यदि जिले के परिवारों की संख्या में से बीपीएल कार्डधारी और राशनपर्ची धारी की संख्या का प्रतिशत निकाला जाए तो करीब 70 प्रतिशत परिवार मुफ्त का राशन ले रहे हैं। दरअसल सरकारी नियमों के मुताबिक गरीबी रेखा की सूची में उसका ही नाम दर्ज किया जाएगा जिसकी हर माह की आय 522 रुपए प्रति व्यक्ति से अधिक नहीं होगी। इस सूची में ऐसे परिवार हैं जिनके पास अपने खुद के चौपहिया एवं दो पहिया वाहन हैं, साथ ही घरों में ए.सी., फ्रीज और तमाम तरह की विलासिता की वस्तुएँ भी मौजूद हैं। उनकी आय भी मध्यमवर्गीय परिवार के बराबर है लेकिन सरकारी अमले के साथ मिलकर इस पूरी गड़बड़ी को अंजाम दिया जा रहा है और सरकार को आर्थिक चपत लगाई जा रही है। करोड़ों रुपए का मुफ्त राशन जिले में बाँटा जा रहा है। अगर वास्तविक सर्वे कराकर सूची बनाई जाए तो गरीबों की संख्या 10 फीसदी तक ही रह जाएगी। पूर्व में शासन द्वारा वार्ड बार सर्वे कराए गए थे। इसमें 8 से 10 हजार अपात्र लोगों के नाम बीपीएल सूची में आए थे जिन्हें काटने की बात की गई थी लेकिन उसके बाद नगर निगम और विधानसभा चुनाव आ गए तो नेताओं ने इस पत्र की सूची को ही दबा दिया और जिले में गरीबी रेखा का राशन लेने वालों की संख्या 2 लाख 70 हजार पर ही टिकी रही। सरकार को चाहिए कि गरीबी रेखा में शामिल लोगों के बिजली बिल बैंक खातों की डिटेल और परिवहन विभाग से अगर पंजीकृत वाहनों की जानकारी लेकर सूची में दर्ज नाम से मिला ली जाए तो वास्तविकता सामने आ जाएगी, इसमें मुख्य बात यह है कि इस सूची में शामिल लोगों के बिजली बिल बैंक खातों की डिटेल और परिवहन विभाग से अगर पंजीकृत वाहनों की जानकारी लेकर सूची में दर्ज नाम से मिला ली जाए तो वास्तविकता सामने आ जाएगी। इसमें ऐसे भी कई लोग हैं जो सालभर में लाखों रुपए अकेले सरकार से कई कामों के ऐवज में बैंक खातों में राशि का भुगतान लेते हैं, उसके बावजूद बीपीएल श्रेणी में बने हुए हैं।
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