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इतिहास के सबसे बड़े चुनावी वर्ष 2024 में 40 देशों में 70 चुनाव होंगे

December 02, 2023


नई दिल्ली । इतिहास के सबसे बड़े चुनावी वर्ष (Biggest Election Year in History) 2024 में (In 2024) 40 देशों में (In 40 Countries) 70 चुनाव (70 Elections) होंगे (Will be Held) । दुनिया आगामी वर्ष में विभिन्न देशों में होने वाले चुनावों की मेजबानी के लिए तैयार हो रही है। आने वाले दशक का अनुमान लगाने के लिए दुनिया इन चुनावों के वैश्विक प्रभाव को जानने का प्रयास कर रही है।


यह इतिहास का सबसे बड़ा चुनावी वर्ष होगा। दुनिया की करीब आधी आबादी 2024 की चुनावी घटनाओं से प्रभावित होगी। यह इंगित करता है कि कुछ नीतिगत बदलावों की उम्मीद की जा सकती है, साथ ही इसका असर राष्ट्रों के बीच भू-राजनीतिक गतिशीलता पर भी पड़ेगा, जो विश्व व्यवस्था को आकार देगा। चुनाव में जाने वाले देशों में 15 अफ्रीकी, 9 अमेरिकी, 11 एशियाई, 22 यूरोपीय और ओसेनिया के 4 देश होंगे। इसके अलावा, यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के चुनाव भी होंगे। चार प्रमुख चुनावों का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पड़ने वाले प्रभाव पर सबसे अधिक उत्सुकता से नजर रखी जाएगी। ये दुनियां की चार सबसे बड़ी राजनीतिक संस्थाएं हैं, इनमें लगभग 2.3 बिलियन लोग रहते हैं और इनकी जीडीपी लगभग 42 ट्रिलियन डॉलर है।

रूस 2030 तक शासन करने वाले शासक का चयन करने के लिए मार्च में राष्ट्रपति चुनाव कराएगा। अप्रैल और मई के बीच, भारत में 2029 तक देश का नेतृत्व करने वाली सरकार के लिए आम चुनाव होंगे। जून और जुलाई में, यूरोपीय संघ गुट-बैठक आयोजित करेगा। यहां नए यूरोपीय आयोग के लिए चुनाव होगा। अमेरिका में नवंबर में द्विवार्षिक विधायी चुनाव और राष्ट्रपति चुनाव भी होंगे। इसके अतिरिक्त, जनवरी 2024 में होने वाले ताइवान के राष्ट्रपति चुनाव पर भी चीन-तााइवान के तनावपूर्ण संबंधों के मद्देनजर उत्सुकता से नजर रखी जा रही है। यहां यदि विपक्ष जीतता है, तो ताइवान और चीन के बीच अल्पावधि में तनाव कम हो सकता है। ताइवान जलडमरूमध्य में आर्थिक एकीकरण एक संभावना है। हालांकि, ताइवान के भविष्य के बारे में दीर्घकालिक चिंता अनसुलझी रहेगी।

यूरोप में, संसदीय चुनाव के बाद नए यूरोपीय संघ आयोग के चुनाव के अलावा, पूर्व सदस्य ब्रिटेन में भी चुनाव होंगे, जहां संकेत हैं कि 14 साल तक सरकार का नेतृत्व करने के बाद कंजर्वेटिवों के सत्ता खोने की आशंका है। यह उम्मीद की जाती है कि एक देश में चुनावी गतिशीलता का असर अन्य देशों पर भी पड़ेगा, इसके परिणामस्वरूप आर्थिक कठिनाइयां पैदा होंगी। इसके अलावा, जलवायु, तकनीकी विनियमन और ऊर्जा जैसे मुद्दों के बावजूद, संरक्षणवाद संभवतः जारी रहेगा। यूरोपीय संघ का बजट दबाव में होगा और कृषि, संरचनात्मक निधि व रक्षा पर खर्च नीतियों को प्रभावित करेगा। इसके अलावा यूक्रेन एक मुद्दा बना रहेगा।

भारत और दुनिया उत्सुकता से लोकसभा चुनाव का इंतजार कर रही है, जब लगभग एक अरब भारतीय अपना वोट डालेंगे। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार लगातार तीसरे कार्यकाल में सत्ता में वापसी करना चाहती है। उम्मीद है कि अगली मोदी सरकार अपने व्यापार-अनुकूल सुधारों को जारी रखेगी और रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे कुछ मुद्दों पर तटस्थ रहते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक प्रभाव डालेगी। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मोदी की छवि, उनकी बीजेपी के हिंदू राष्ट्रवाद से प्रभावित हो सकती है। अमेरिकी चुनाव पर पश्चिमी एकता पर प्रभाव और मध्य पूर्व तथा रूस पर उनकी नीति को लेकर नजर रखी जा रही है।

रूस में, राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री के रूप में 23 वर्षों तक सत्ता में रहने के बाद, राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपने पांचवें कार्यकाल के लिए इच्छुक हो सकते हैं। वहां मार्च में चुनाव होगा। इसी समय यूक्रेन में भी राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होना है। रूसी चुनावों में कोई आश्चर्य नहीं हो सकता है, क्योंकि पुतिन के लिए कोई भी विश्वसनीय विकल्प काफी हद तक अनुपस्थित है, लेकिन विरोध प्रदर्शन सहित चुनावी गतिशीलता, संघर्ष और प्रतिबंधों के बीच लोगों के मूड का संकेत मिलेगा।

लोकतंत्र की भावना का जश्न मनाते हुए, मेक्सिको को जून के चुनावों में अपनी पहली महिला राष्ट्रपति मिल सकती है, जो मेक्सिको के पुरुष-प्रधान राजनीतिक परिदृश्य में इतिहास रचेगी। मेक्सिको सिटी की पूर्व मेयर क्लाउडिया शीनबाम निवर्तमान राष्ट्रपति एंड्रेस मैनुअल लोपेज ओब्रेडोर की मोरेना पार्टी की ओर से चुनाव लड़ रही हैं।

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