नई दिल्ली (New Delhi) । विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) और यूनिसेफ की संयुक्त रिपोर्ट सामने आने के बाद अब मेडिकल जर्नल लैंसेट ने भी समय पूर्व बच्चों के जन्म को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है। इसके अनुसार, दुनिया के 63 फीसदी गर्भावस्था की कम अवधि वाले मामले दक्षिण एशिया (South Asia) में है। भारत (India) और उसके आसपास के देशों में ऐसे मामले सबसे अधिक हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में 36 से 37वें सप्ताह के दौरान शिशुओं (babies) के जन्म लेने के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। भारत में जहां इन बच्चों की संख्या पूरी दुनिया में ज्यादा है, वहीं बांग्लादेश में सबसे ज्यादा अपरिपक्व शिशु दर है। दुनिया के करीब दो तिहाई छोटे गर्भकालीन आयु (एसजीए) के मामले दक्षिण एशिया में है। इस क्षेत्र में वैश्विक औसत और एसजीए की बहुत उच्च दरों की तुलना में अपरिपक्व जन्म की दर ज्यादा है।
केपटाउन में बीते मंगलवार से जारी ‘अंतर्राष्ट्रीय मातृ नवजात स्वास्थ्य सम्मेलन’ (आईएमएनएचसी 2023) में लॉन्च इस रिपोर्ट में बताया कि साल 2020 में 10 जीवित जन्मे शिशुओं में से एक अपरिपक्व थे और पांच में से एक छोटी गर्भकालीन आयु से जुड़े थे। दक्षिण एशिया में आधे से अधिक नवजात शिशु छोटे गर्भकालीन आयु से प्रभावित हैं। ब
निम्न और मध्यम वर्गीय देशों में गंभीर संकट
लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन कॉलेज के प्रो. एरिक ओ हुमा ने कहा, अगर बीते वर्ष या दशक की आपस में तुलना करें तो दुनिया में छोटे गर्भकालीन आयु के मामलों में सुधार देखने को मिल रहा है लेकिन भौगोलिक स्थिति पर देखें तो दक्षिण एशिया के देशों में यह गंभीर स्थिति बनी हुई है। निम्न और मध्यम वर्गीय देशों में यह एक गंभीर संकट है। यहां गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं की सेहत पर और अधिक काम करने की आवश्यकता है।
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