1200 करोड़ की सरकारी पट्टे की जमीनें बिक गईं बिल्डरों को
इंदौर, राजेश ज्वेल। बायपास से लगे मोरोद मांचला में 7 साल पहले प्रशासन ने भूमिहीन किसानों और हरिजनों को पट्टे पर दी सरकारी जमीनों की अफरा-तफरी का बड़ा घोटाला उजागर किया था, जिसमें लगभग 600 एकड़ सरकारी पट्टे की जमीनें अधिकांश बिल्डरों के हत्थे चढ़ गई, जिसमें से 200 एकड़ से ज्यादा जमीनें फिर से सरकारी घोषित भी की गई, लेकिन बाद में राजस्व बोर्ड और फिर हाईकोर्ट में प्रशासन हार गया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से स्टे हासिल किया गया। अब सभी 600 एकड़ जमीन, जिसका बाजार मूल्य वर्तमान में 1200 करोड़ खुद प्रशासन ने आंका है, उसे वापस हासिल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में कई एसएलपी दायर की गई है, जिसमें से अभी कुछ की सुनवाई 28 अगस्त को हुई और अब 25 सितम्बर को फिर से सुनवाई होगी। इन 600 एकड़ में से लगभग 106 एकड़ पर तो ओमैक्स हिल्स ही काबिज है।
अग्निबाण ने 2013 में उजागर हुए इस घोटाले को मय प्रमाण प्रकाशित भी किया था और प्रशासन ने भूमाफियाओं के हाथों बिकी इन जमीनों को फिर से सरकारी घोषित करने की प्रक्रिया भी शुरू की। तत्समय ही इन जमीनों का मूल्य 700 करोड़ रुपए से अधिक आंका गया था। अब 2020 में ये जमीनें और बेशकीमती हो गई, जिसके चलते अब 1200 करोड़ रुपए की इन जमीनों को वापस हासिल करने के गंभीर प्रयास कलेक्टर मनीष सिंह ने भी शुरू किए हैं। उन्होंने एक-एक सर्वे नम्बर की इन जमीनों की जांच करवाने और सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करवाने के साथ ही जाने-माने सुप्रीम कोर्ट के अभिभाषक और सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता को शासन की ओर से इस महत्वपूर्ण केस को लडऩे की जिम्मेदारी देने का निर्णय लिया है, ताकि मजबूती से शासन-प्रशासन का पक्ष सुप्रीम कोर्ट में रखा जा सके, क्योंकि पूर्व में प्रशासन के आदेश को पहले राजस्व बोर्ड और उसके बाद हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था, जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करना पड़ी, जिस पर स्टे भी हासिल हो गया। मांचला की तहसील राऊ के अंतर्गत आने वाली सर्वे नम्बर 155, 156, 157, 244, 245/6, 247/1 की कुल रकबा 106 एकड़ जमीन को तत्कालीन कलेक्टर आकाश त्रिपाठी ने 24.07.2013 के अपने आदेश से सरकारी घोषित कर दिया था। इन्हीं जमीनों पर ओमैक्स हिल विकसित की गई है। ये जमीनें अलग-अलग बिल्डर-फर्मों के नाम हो गई और फिर उस पर ओमैक्स हिल विकसित की गई। इनमें चैतन इन्फा सहित अन्य कम्पनियों की जमीनें शामिल रही। हाईकोर्ट आदेश के खिलाफ शासन-प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी क्रमांक 10418/2020 दायर की गई और उस पर यथास्थिति के आदेश दिए गए। इस जमीन का ही मूल्य 200 करोड़ रुपए से अधिक आंका गया है। कलेक्टर मनीष सिंह ने इस पूरे मामले की जांच और सुप्रीम कोर्ट में चल रहे केसों की जिम्मेदारी अपर कलेक्टर पवन जैन को सौंपी है। इस प्रकरण के अलावा अन्य सभी जमीनों के लिए भी एसएलपी दायर की जाएगी, क्योंकि मोरोद मांचला में लगभग 600 एकड़ जमीनें इसी तरह से बिल्डर-कालोनाइजरों और अन्य रसूखदारों को बिक गई है। इन जमीनों का मौजूदा बाजार मूल्य लगभग 1200 करोड़ रुपए आंका गया है और यह सभी जमीनें सरकारी पट्टे की है। ये जमीनें 1973-74 में ग्राम राजस्व समिति, मालवा सहकारी सामुहिक कृषि समिति, भूमिहीन कृषि सहकारी समिति और हरिजन सामुहिक कृषि सहकारी संस्था गाडराखेड़ी को आबंटित की गई थी। सरकारी पट्टेदारों को कृषि कार्य के लिए ही ये जमीनें दी गई, ताकि उससे वे अपना जीवन यापन कर सकें। मगर उसके बाद जब इन जमीनों की कीमतें बढऩे लगी और बिल्डरों-कालोनाइजरों की निगाह में आई, उसके बाद धीरे-धीरे पट्टे की ये जमीनें बिकती गई और अहस्तांतरित शासकीय पट्टे की इन जमीनों पर कई टाउनशिप, बहुमंजिला इमारतें, बंगले और कालोनियों का निर्माण हो गया। मौके पर अभी काफी जमीनें खाली भी पड़ी है। विधानसभा में भी 2012 में यह मामला गूंजा था। इसके बाद पट्टे की शर्तों के उल्लंघन पर भू-राजस्व संहिता की धाराओं के तहत इसे सरकारी घोषित करने की प्रक्रिया प्रशासन ने शुरू की और सभी पट्टेदारों और जिन बिल्डरों-फर्मों ने जमीनें खरीदी उन्हें धारा 165 (7-बी) के तहत नोटिस जारी किए गए। बायपास पर इंजीनियरिंग कॉलेज के पीछे से शुरू होकर ये जमीन खंडवा रोड के पास उमरीखेड़ी तक मौजूद है। इन जमीनों के खसरा पांचसाला रिकॉर्ड में बकायदा लाल स्याही से अहस्तांरणीय अंकित है। 1949-50 के खसरा नम्बर में मांचला की भूमि ब्रीड मद में दर्ज रही, फिर 58-59 में ये जमीनें मालवा सहकारी सामुहिक समिति को आबंटित, तत्पश्चात हरिजन भूमि सोसायटी और ग्राम स्वराज सहकारी संस्था को दी गई। 1941 में ग्राम स्वराज भूमिहीन संस्था बंद हो गई और दोनों संस्थाओं का एकीकरण किया गया और 118 सदस्यों को खेती के लिए ये जमीनें दी गई, जो बाद में एक-एक कर बिल्डरों को बिक गई। यह इंदौर ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश का एक बड़ा जमीन घोटाला है, जिसमें अगर प्रशासन को जीत मिली, तो 1200 करोड़ की जमीनें हासिल हो जाएगी। बिल्डरों के साथ-साथ कुछ समय पूर्व सीबीआई जांच में धराए मोहन यादव और उनकी पत्नी के नाम पर भी 30 एकड़ जमीन मिली। आदिवासी परिवारों को रोजी-रोटी के लिए दी गई इन जमीनों को पूर्व के राजस्व अमले ने ही बिकवाने से लेकर नामांतरण और अन्य कार्यों में भरपूर मदद भी की। अब प्रशासन सुप्रीम कोर्ट में सशक्त तरीके से अपना पक्ष रखने जा रहा है। अभी 106 एकड़ की सुनवाई तो होना है। वहीं इसके साथ ही अन्य जमीनों के लिए भी एसएलपी दायर की जा रही है।
इन बिल्डरों और फर्मों को बिकी ये जमीनें
मोरोद मांचला की सरकारी पट्टे की जमीनें ज्यादातर बिल्डर-कालोनाइजरों ने खरीदी, जिनमें स्नेहल बिल्डकॉन नई दिल्ली के अलावा चिराग बिल्डकॉम, सेंटिनेट प्रॉपर्टी प्रा.लि., योगेश पिता मंगतराम, बाली बिल्ड टेक, अभय टेक्नोलिन, गोरांग बिल्ड टेक, अर्जित बिल्डर, तुषार लैंडकॉन, चैतन इन्फ्राबिल्ड, वैभव टेक्नो बिल्ड, गिरीश बिल्डवेल, बंधु बिल्ड टेक, उमंग बिल्डकॉम नई दिल्ली, सत्यम रियल मार्ट, लक्ष्मी कंस्ट्रक्शन, शशांक बिल्डकॉम, सत्यम इन्फ्रास्ट्रक्चर, सेंट स्टीफन मॉडर्न सोसायटी, स्नेहा मल्टीकॉम, हीना एक्नोबिल्ड से लेकर अनिल मेहता, मनीष बंसल, दिनेश सोनी से लेकर कुछ समय पहले गोलीकांड के एक आरोपी ने भी ये जमीनें खरीदी। ये सारी खरीद-फरोख्त बिना कलेक्टर की अनुमति के हो गई और फिर बड़े-बड़े चंक बनाकर टाउनशिपों और अन्य प्रोजेक्ट लाए गए।
400 से ज्यादा नामांतरण भी हो गए
एक तरफ ये जमीनें बिकती गई, दूसरी तरफ बिल्डरों-रसूखदारों ने राजस्व अमले के साथ ही मिलकर नामांतरण-डायवर्शन से लेकर अनुमतियां भी हासिल कर ली। प्रशासन ने अपनी जांच में 400 से ज्यादा इन जमीनों पर हुए नामांतरणों को भी पकड़ा, जिनमें से सर्वाधिक नामांतरण तत्कालीन नायब तहसीलदार आलोक पारे और अपर तहसलीदार अजीत श्रीवास्तव द्वारा करना पाए गए। 431 से अधिक पट्टों की जांच में तत्कालीन तहसीलदारों व अन्य अधिकारियों की मिलीभगत भी सामने आई। शिकायत होने पर नामांतरण करने वाले ही कुछ तहसीलदारों ने स्वमोटो में धारा 32 में कुछ प्रकरणों को निरस्त करने की प्रक्रिया भी शुरू की। ज्यादातर नामांतरण 2007-08 और उसके बाद ही किए गए और फिर यह मुद्दा विधानसभा के बाद जिला योजना समिति की स्थानीय बैठक में भी जोर-शोर से उठा, जिसके चलते तत्कालीन कलेक्टर ने दोनों तहसीलदारों पारे और श्रीवास्तव को निलंबित भी कर दिया। इन दोनों ने ही 600 से अधिक पट्टों में से 400 से ज्यादा का नामांतरण किया और बताया जाता है कि पौने 200 से ज्यादा पट्टों के रिकॉर्ड भी गायब हो गए।
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