भोपाल। देश में महिलाओं की निजता, गरिमा, सम्मान, सुरक्षा, सशक्तीकरण और अधिकारों के मुद्दे पर केन्द्र से लेकर राज्यों की सरकारें तक बड़ी-बड़ी बातें और नारे तो खूब देती हैं, लेकिन यह वास्तव में महिला मुद्दों, उनकी बुनियादी जरूरतों को लेकर कितनी संजीदा हैं, इसकी हकीकत बीते गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश ने सामने लाकर रख दी है। दरअसल हाईकोर्ट ने यूपी की सरकार से यह सवाल पूछ लिया है कि वह 15 फरवरी तक यह बताए कि राज्य के कितने पुलिस थानों में महिला शौचालय हैं। गौरतलब है कि यूपी पुलिस थानों मे महिलाओं के लिए शौचालय या खराब स्थिति के मामले में देश में चौथे स्थान पर है। यूपी ही क्यों मप्र और बिहार जैसे राज्यों के भी बुरे हाल हैं। मप्र में तो 60 फीसदी से ज्यादा पुलिस थानों में महिला टायलेट्स की व्यवस्था नहीं है। टायलेट की सुविधा न मिलने के कारण महिला पुलिसकर्मी कम पानी पीती हैं और शरीर में पानी की कमी के कारण कई बीमारियों का शिकार हो जाती हैं।
बदहाली के मामले में यूपी चौथे नंबर पर
स्टेटस आफ पुलिसिंग इन इंडिया रिपोर्ट 2019 शीर्षक वाली रिपोर्ट दिसंबर 2019 में जारी की गई थी। उसके अनुसार 20 फीसदी पुलिसकर्मियों ने पुलिस स्टेशनों में महिला शौचालयों की कमी की शिकायत की थी। इस सर्वेक्षण में 21 राज्यों में 12000 पुलिसवालों को शामिल किया गया था। इस रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश को महिला शौचालयों की कमी या खराब स्थिति के मामले में चौथे स्थान पर बताया गया था।
पूरे प्रदेश में एक जैसे हाल
महिला पुलिस कर्मियों के लिए अलग से टायलेट न होना अकेले भोपाल की नहीं, पूरे प्रदेश की समस्या है। चाहे देश में स्वच्छता के मामले में देशभर में नंबर वन रहा इंदौर हो या फिर आगर-मालवा, ग्वालियर, जबलपुर हो, सब जगह एक जैसे हाल हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 2015 में राज्य के थानों में महिलाओं के लिए रेस्ट रूम समेत शौचालय बनाने की घोषणा की थी, 40 करोड़ का बजट भी बना, लेकिन तब वित्त विभाग के रोड़े से काम अटक गया। विधानसभा या सड़क पर तमाम मुद्दे तो उठाता है, लेकिन महिलाओं, बच्चों से जुड़े मुद्दों पर आवाज बिरले ही सुनाई देती है।
महिला कर्मी हो रहीं बीमार
अलग टायलेट्स की व्यवस्था न होने से महिला पुलिस कम पानी पीती हैं, ताकि बिना किसी व्यवधान के ज्यादा समय तक ड्यूटी करने की हालत में रह सकें, इससे वह कई तरह की बीमारियों की शिकार हो रही हैं। ऐसा नहीं है कि महिला पुलिसकर्मियों की इन दिक्कतों से आला अधिकारी अनजान हों, लेकिन इन व्यवस्थाओं को करने की दिशा में किसी का ध्यान नहीं जाता। न ही यह पता किया जाता है कि कितने थानों में सुविधा है, कितनों में यह सुविधा करानी है। 2017 में प्रदेश भर के पुलिस कर्मियों की एक कार्यशाला में थानों में महिला शौचालयों का मुद्दा उठा था, अफसरों ने भी थानों में व्यवस्थाओं में कमी की बात मानी थी, लेकिन इस दिशा में तबसे आज तक हुआ कुछ नहीं।
मप्र के हाल बेहाल
बदहाली की ये स्थिति केवल यूपी की ही नहीं है, बल्कि एमपी के भी ऐसे ही हाल हैं। मप्र के भी 60 फीसदी से ज्यादा थानों में महिला पुलिसकर्मियों के लिए अलग से टायलेट्स नहीं है। ड्यूटी पर आने के बाद उनके सामने एक सबसे बड़ी चुनौती और मुश्किल यह होती है कि वह टायलेट् कहां जाएं। ऐसी स्थिति में उन्हें बार-बार घर जाने के लिए अफसर से पूछना पड़ता है, जिसके लिए उन्हें कई बार डांट भी पड़ जाती है और शर्मिंदगी भी झेलना पड़ती है।
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