नई दिल्ली (New Delhi) । साल 1995.. जगह भारत का पंजाब (Punjab) प्रदेश… कुछ साल पहले यहां खालिस्तानियों (Khalistanis) के आतंक का खौफ था. 1995 का साल आते-आते सुरक्षा बलों ने लगभग यहां से आतंकवादियों (terrorists) को या तो खत्म कर दिया था. या फिर देश छोड़ने पर मजबूर. इस बीच रोजाना कई गिरफ्तारियां होती थीं. लोगों को अपने घरों से उठा लिया जाता था और काफी दिनों तक उन्हें इंटेरोगेशन सेंटर्स में रखा जाता था. इसी साल पुलिस ने दो भाइयों प्रदीप और विजय सैनी (Pradeep And Vijay Saini) को भी इस मामले में एक संदिग्ध के रूप में देखा.
पुलिस का ये आरोप था कि पेशे से कार मैकेनिक दोनों भाई छुपकर खालिस्तानियों की मदद कर रहे हैं. प्रदीप उस समय 22 साल का, जबकि विजय 18 साल का था. उन्होंने पुलिस के सामने कई बार कहा कि उनका खालिस्तानियों के साथ कोई संबंध नहीं है. लेकिन पुलिस कहां चुप बैठने वाली थी. उन्होंने लगातार उनसे पूछताछ जारी रखी. उन्हें बार-बार इंटेरोगेशन सेंटर लाया जाता. इससे दोनों भाई काफी परेशान हो गए. ऐसे में दोनों भाइयों ने देश छोड़ देने का फैसला कर लिया.
लंदन जाने के लिए तस्कर से संपर्क किया
उनके कई जान पहचान के लोग उस समय लंदन में रहते थे. इसलिए उन्होंने तय किया कि वे दोनों लंदन ही चले जाएंगे. लेकिन समस्या यहां ये थी कि दोनों भाइयों के पास न तो पासपोर्ट था और न ही इतने रुपये कि वे लंदन जा सकें. ऐसे में दोनों भाइयों ने एक तस्कर से संपर्क किया जो गैरकानूनी तरीके से लोगों को विदेश भेजता था. उस तस्कर को दोनों ने 150 पाउंड की रकम दी. उसने दोनों भाइयों को बताया कि वह प्लेन के लगेज सेक्शन (luggage section) में छुपाकर लंदन भेज देगा.
दोनों भाइयों के साथ हुई थी ठगी
तब तक 1996 का साल आ चुका था. पुलिस ने दोनों भाइयों को परेशान करना जारी रखा. वहीं, कुछ समय बाद वह तस्कर भी न जाने कहां चला गया. दोनों भाई उससे संपर्क करने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन वह उन्हें कहीं नहीं मिला. उन्हें तब अहसास हुआ कि उनके साथ ठगी हुई है. अब दोनों को लगने लगा कि चाहे जो कुछ भी हो जाए. अब उनके पास पैसे बिल्कुल भी नहीं बचे हैं. इसलिए उन्हें खुद ही कुछ न कुछ करके लंदन पहुंचना होगा.
10 दिन तक किया एयरपोर्ट का निरीक्षण
फिर दोनों भाई सितंबर 1996 में पंजाब से दिल्ली आ पहुंचे. फिर दोनों दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट (Indira Gandhi International Airport) का निरीक्षण करना शुरू कर दिया. उस वक्त एयरपोर्ट में सिक्योरिटी भी कम ही होती थी. इसलिए दोनों प्लेन के अंदर घुसने के रास्ते तलाशते रहे. अगले 10 दिनों तक दोनों ने एयरपोर्ट का निरीक्षण किया. फिर अक्टूबर 1996 की एक रात को वे दोनों ब्रिटिश एयरवेज के प्लेन तक पहुंचने में कामयाब रहे. उन्होंने प्लेन के अंदर लगेज और पैसेंजर्स के घुसने का इंतजार किया.
10 घंटे का लंबा सफर करना था तय
The Sun की रिपोर्ट के मुताबिक, फिर जब प्लेन टेकऑफ के लिए तैयार था. दोनों भाई उसके लैंडिंग गियर में जा घुसे. उस तस्कर के साथ कुछ समय रहने के दौरान दोनों प्लेन के बारे में काफी कुछ जान चुके थे. वे जानते थे कि लैंडिंग गियर में एक व्यक्ति के बैठने लायक जगह होती है. दोनों अलग-अलग लैंडिंग गियर में घुसे थे. क्योंकि एक लैंडिंग गियर में दोनों एक साथ नहीं बैठ सकते थे. दिल्ली से लंदन की 4000 मील (6,693 किलोमीटर) की ये उड़ान 10 घंटे की थी. और दोनों को तब तक ऐसे ही प्लेन के लैंडिंग गियर में बैठना था.
कान के पर्दे फटने लगे
दोनों ने उस समय नॉर्मल कपड़े पहने थे. उनके पास स्वैटर या जैकेट तक नहीं थी. ब्रिटिश एयरवेज का ये प्लेन 40 हजार फीट की ऊंचाई पर तेज गति से चल रहा था. जिससे ऑक्सीजन की कमी लगातार बनी हुई थी. दोनों एक दूसरे से बात तक नहीं कर सकते थे. क्योंकि इंजन का शोर काफी ज्यादा था. इससे दोनों के कान के पर्दे फटने लगे. दोनों काफी डरने लगे. उन्हें लगा कि अब उनकी मौत पक्का है. जब प्लेन हैथरो एयरपोर्ट (Heathrow Airport) में उतरा. तब सबसे पहले लगेज स्टाफ सामान उतारने पहुंचा. वहां उन्हें एक शख्स के कराहने की आवाज सुनाई दी.
अधमरी हालत में मिला प्रदीप
प्लेन के पास पहुंचते ही उन्होंने बड़े भाई प्रदीप को अधमरी हालत में पाया. आनन फानन में वे लोग उसे अस्पताल लेकर पहुंचे. जब 4 दिन बाद उसे होश आया तो उसने सबसे पहले अपने भाई विजय के बारे में पूछा. लेकिन इसके बारे में किसी को भी कोई जानकारी नहीं थी. प्रदीप को बताया गया कि प्लेन में उसके अलावा कोई और शख्स उन्हें नहीं मिला. न जिंदा न मुर्दा. उधर डॉक्टर्स हैरान थे कि प्रदीप 40 हजार फीट की ऊंचाई पर माइनस 60 डिग्री के तापमान को कैसे झेल गया.
विजय की हो गई थी मौत
वहीं पुलिस ने प्रदीप के भाई विजय को ढूंढना शुरू कर दिया. अगले दिन पुलिस को रिचमोंड इलाके से फोन आया, जिसमें एक लाश मिलने का जिक्र था. जब लाश की फोटो प्रदीप को दिखाई गई तो उसने फौरन उसे पहचान लिया. यह लाश विजय की थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सामने आया कि विजय की मौत तो प्लेन की उड़ान भरने के कुछ ही समय में हो गई थी.
हाइबरनेशन में चला गया था प्रदीप
उधर, प्रदीप कैसे इतने तापमान को सह गया, इस पर डॉक्टर्स ने अपनी थियोरी दी. उन्होंने बताया कि जब तापमान घटने लगा और हवाएं तेज हो गईं. तब ऑक्सीजन न मिलने की वजह से प्रदीप के शरीर ने अपने आस-पास हो रही घटनाओं पर रिएक्ट करना ही बंद कर दिया. वह हाइबरनेशन (Hibernation) जैसी स्थिति में पहुंच गया. अगर वह हाइबरनेशन में न जाता तो इंजन के शोर से ही उसके दिमाग की नसें फट जातीं और वह भी अपने भाई की तरह मारा जाता.
प्रदीप को मिली ब्रिटेन की नागरिकता
वहीं, इस हादसे के बाद प्रदीप की परेशानियां और बढ़ गईं. जहां एक तरफ अपने भाई को खोने का गम था. तो वहीं ब्रिटिश सरकार ने भी उसे भारत भेजने की तैयारी कर ली थी. गैरकानूनी तरीके से लंदन आने पर प्रदीप पर मुकदमा चलाया गया. लेकिन प्रदीप ने वहां की कोर्ट से यह दुहाई लगाई कि उसका भारत जाता सही नहीं है. क्योंकि वह भारत में पुलिस की प्रताड़ना से तंग होकर ही लंदन आया है. इसलिए उसे लंदन में शरण दी जाए. इस बात को लेकर कोर्ट में काफी बहस चली. तारीखें बदलीं. मुकदमा चलता रहा. फिर आया 2014 का समय. कोर्ट ने अपना अंतिम फैसला सुनाया. उन्होंने माना कि प्रदीप अगर इतना मजबूर न होता तो शायद वह अपनी जान जोखिम में डालकर लंदन आने की कोशिश न करता. इसके बाद उसे कोर्ट ने उसे लंदन में रहने की इजाजत दे दी. अब वह ब्रिटिश सिटिजन के रूप में अपनी जिंदगी जी रहा है. अब वह शादीशुदा है और उसके दो बच्चे भी हैं. जिस एयरपोर्ट पर वह उस समय लैंड हुआ था. आज वहीं की कैटरिंग कंपनी के लिए ड्राइविंग का काम भी कर रहा है.
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