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    2023 में 561 कैदियों को मिली मौत की सजा, 19 साल में सबसे अधिक रहा आंकड़ा; जानिए वजह

  • February 10, 2024

    नई दिल्ली: भारत (India) में 2023 में मृत्युदंड (death penalty) यानी मौत की सजा पाने वाले कैदियों (prisoners) की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है. एनसीआरबी (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक, 2023 में 561 लोगों को मौत की सजा सुनाई गई, जो 19 वर्षों में सबसे अधिक है. इससे पहले 2004 में 563 कैदियों को मौत की सजा सुनाई गई थी. इन आंकड़ों में बढ़ोतरी के पीछे कई कारण हो सकते हैं. इसमें सबसे अहम है अपीलीय अदालतों (appellate courts) में कम डिस्पोजल रेट और निचली अदालतों की ओर से अधिक मृत्युदंड देने का ट्रेंड.

    दिल्ली (Delhi) की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (National Law University) में प्रोजेक्ट 39ए की ओर से भारत में मौत की सजा पर पेश की गई वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, ट्रायल कोर्ट ने 2023 में 120 लोगों को मौत की सजा दी, जबकि बाकी पहले के मामले लंबित हैं. 2023 के अंत में 488 कैदियों से जुड़े 303 मामले उच्च न्यायालयों (high courts) में लंबित थे. यह 2016 के बाद से सबसे अधिक है.


    यौन अपराधों में सबसे ज्यादा मौत की सजा
    2019 से जारी एक ट्रेंड में यौन अपराधों से जुड़े अधिकतर केस में निचली अदालतों ने मौत की सजा सुनाई है. 2023 में रेप और हत्या सहित यौन अपराधों के लिए लगभग 64 लोगों (53%) को मौत की सजा सुनाई गई थी, जबकि 2016 में 27 कैदियों को ऐसे मामलों में मौत की सजा मिली थी. 12 वर्ष से कम उम्र की पीड़िता से रेप और हत्या से जुड़े 75% मामलों में अदालतों ने दोषी को मौत की सजा सुनाई है.

    हाईकोर्ट में ऐसा रह रहा डिस्पोजल रेट
    हाईकोर्ट की ओर से मौत की सजा वाले केस में आई याचिका पर कार्यवाही के मामले में पिछले साल भी 2020 के बाद से सबसे कम डिस्पोजल रेट रहा. खास बात यह है कि इस तरह के मामलों में 2023 में 2000 के बाद से अपीलीय अदालतों की ओर से दी गई मौत की सजा की पुष्टि की सबसे कम दर देखी गई. इसमें कर्नाटक हाईकोर्ट की ओर से केवल एक केस में मौत की सजा को करार दिया गया.

    घटिया जांच और कमजोर सबूत भी वजह
    रिपोर्ट में कहा गया है, “सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने केस की जांच की घटिया प्रकृति पर चिंता व्यक्त की है. इसके अलावा निचली अदालतों की तरफ से लोगों को दोषी ठहराने और मौत की सजा देने के लिए जिन सबूतों पर भरोसा किया जाता है, उनकी खराब गुणवत्ता पर भी सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने गंभीर चिंता जताई है.

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