रामेश्वर धाकड़
भोपाल। प्रदेश के बालाघाट, मंडला और डिंडौरी जिले के नक्सल प्रभावित विकासखंडों के पढ़े-लिखे 500 आदिवासी नौजवान पुलिस के सहायक बनेंगे। पुलिस सहायक के रूप में इन्हें हर महीने 25 हजार रुपए का मानदेय भी मिलेगा। इतना ही नहीं यदि आदिवासी नौजवानों का पुलिस सहायक के रूप में सीआर सही रहती है तो पांच साल बाद वे सीधे पुलिस आरक्षक बनेंगे। पुलिस सहायकों की नियुक्ति संबंधित जिलों के एसपी कर सकेंगे। राज्य शासन ने इसकी मंजूरी दे दी है। पीएचक्यू सूत्रों के अनुसार आदिवासी क्षेत्रों में यह दुष्प्रचार किया जाता है कि पुलिस आदिवासियों पर बर्बरता करती है। कुछ संगठन इन क्षेत्रों में सक्रिय हैं।
आदिवासियों के मन से पुलिस का खौफ दूर करने और आदिवासी जिलों में अवैध गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए पुलिस अब आदिवासी बच्चों को ही अपना मददगार बनाने जा रही है। पुलिस मुख्यालय ने इससे जुड़ा प्रस्ताव राज्य शासन को भेजा था। जिसे अब मंजूरी मिल गई है। मंत्रालय सूत्रों ने बताया कि पुलिस सिर्फ तीन जिले बालाघाट, मंडला और डिंडौरी के नक्सल प्रभावित विकासखंडों के आदिवासी युवाओं को ही अपना मददगार बनाएगी। खास बात यह है कि संबंधित जिलों के एसपी पुलिस मददगारों के नाम सार्वजनिक नहीं करेंगे।
आदिवासियों को जोडऩे की कवायद
प्रदेश की शिवराज सरकार आदिवासियों के हित में कई बड़े फैसले कर रही है। यहां तक बैकलॉग पदों पर भर्तियों भी हो रही हैं। सूत्रों ने बताया कि आदिवासियों के और अधिक नजदीक पहुंचने के लिए सरकार उनके बच्चों को जोड़ रही है। हालांकि पुलिस सहायक किसी तरह की स्थाई नौकरी नहीं है। जिन 500 युवाओं को पुलिस सहायक बनाया जाएगा। शिकायत आने पर एसपी कभी भी हटा भी सकेंगे।
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