इंदौर। निगम के फर्जी बिल महाघोटाले में ऑडिट विभाग के जिन वरिष्ठ अफसरों को पुलिस ने गिरफ्तार किया उन्हें कोर्ट से कल जमानत नहीं मिल सकी और जेल जाना पड़ा। जब कोर्ट को यह बताया गया कि इन ऑडिटरों ने एक ही दिन में 5-5 किलोमीटर लम्बी ड्रैनेज लाइनें डालने और 500 चैम्बर बना देने के फर्जी बिल लगाए, जो कि व्यवहारिक रूप से संभव ही नहीं है। वहीं कई बिल तो ऐसे भी मंजूर कर दिए जिनका ऑडिट बाद में हुआ और उसके पहले मंजूर कर लेखा शाखा में पेमेंट के लिए भिजवा दिए गए। एक तरफ निगम की बिगड़ी व्यवस्था को पटरी पर लाने वाले काबिल अफसरों को बदनाम करने का षड्यंत्र शुरू हुआ, दूसरी तरफ अफसरों का कहना है कि ऐसी परिस्थितियों में अब कौन काम कर पा$एगा? दूसरी तरफ निगम का फर्जी बिल कांड, जो कि 125 करोड़ पार कर चुका है, उसमें कोर्ट के समक्ष जो प्रमाण आ रहे हैं उसके चलते जमानत भी नहीं मिल सकी।
शासन की ओर से अतिरिक्त शासकीय अधिवक्ता श्याम दांगी ने बताया कि कल बहस के दौरान कोर्ट को यह अवगत कराया कि एक दिन में ना तो 5 किलोमीटर लम्बी ड्रैनेज लाइन डल सकती है और ना 500 चैम्बर निर्मित करना संभव है। ऑडिट विभाग का काम इन तमाम तथ्यों को जांचने का ही है। मगर इनकी मिलीभगत साफ जाहिर होती है, क्योंकि बिल पेश होने से पहले ही पे ऑर्डर मंजूर कर दिए। कोर्ट ने केशियर राजकुमार सालवी के साथ-साथ डिप्टी डायरेक्टर ऑडिट अनिल गर्ग, डिप्टी डायरेक्टर समरजीत सिंह को जमानत देने से इनकार करते हुए जेल भेज दिया। दूसरी तरफ पुलिस पिछले दिनों जो नया मामला सामने आया उसमें लिप्त आरोपियों का पुन: रिमांड लेकर उनसे पूछताछ करेगी। वहीं डीसीपी झोन-3, पंकज पांडे के मुताबिक 1 करोड़ रुपए से अधिक इन ठेकेदार फर्मों के खातों में जमा राशि भी बैंक मैनेजरों को पत्र लिखकर फ्रीज करवा दी है। पिछले दिनों सालवी से जुड़ी फर्मों के खातों में भी 37 लाख रुपए जमा मिले थे। इस तरह कुल 1 करोड़ 13 लाख से अधिक की राशि फ्रीज हो चुकी है।
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