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    500 बेड के बीमा अस्पताल का रास्ता साफ… स्टे हटा

  • July 29, 2020

    – 14 एकड़ पर होने वाले अस्पताल के विस्तार को अब और नहीं रोक सकते : कोर्ट
    – सिविल कोर्ट ने माना कब्जा अवैध, कुष्ठ सेवा संस्था ने तथ्यों को छुपाया
    इंदौर, बजरंग कचोलिया । कर्मचारी राज्य बीमा चिकित्सालय की जमीन पर 500 बेड वाले अस्पताल के विस्तार का रास्ता साफ हो गया है। सिविल कोर्ट ने कुष्ठ सेवा संस्था को तथ्य छिपाने के कारण स्टे देने से साफ इनकार कर दिया है और कहा है कि अस्पताल के निर्माण को अब और नहीं रोक सकते, पहले ही काफी विलंब हो चुका है।
    सूत्रों के अनुसार कुष्ठ सेवा संस्था को कर्मचारी राज्य बीमा निगम से ग्राम भमोरी में 14.733 एकड़ जमीन एक साल के लिए लीज पर मिली थी, जहां संस्था द्वारा झुग्गियां तानकर तबेला संचालित किया जा रहा था और दूध विक्रय किया जा रहा है। कराबीनि के अधिकारियों की पहल पर संपदा अधिकारी ने संस्था को 29 जून को बेदखली का नोटिस जारी कर 14 जुलाई तक जगह खाली करने के आदेश दिए थे।
    इस आदेश के खिलाफ संस्था की ओर से अध्यक्ष श्रीनिवास सोनी ने सिविल कोर्ट में अपील करके उक्त आदेश पर स्टे देने की मांग की थी। उनका कहना था कि विवादित जगह पर खेती होती है और अभी सोयाबीन की फसल खड़ी है। मौजूदा माहौल में उन्हें बेदखल किया गया तो कुष्ठ रोगियों को काफी नुकसान होगा। जबकि कराबीनि की ओर से अदालत को बताया गया था कि संस्था को वर्ष 1983 में माचल में इस जमीन की जगह 50 एकड़ जमीन दी जा चुकी है, जिसका उसने कब्जा भी ले लिया है। उसने इसकी जानकारी कोर्ट से छुपाई है। विवादित जगह का पट्टा खत्म हो चुका है व संस्था का अवैध कब्जा है और उस जगह 300 बेड की जगह विस्तार करके 500 बेड का अस्पताल बनाया जाना है। इस मामले में हाईकोर्ट ने पहले ही गत 22 जून को संस्था की याचिका खारिज कर दी थी और अस्पताल का निर्माण समयसीमा में करने के निर्देश देते हुए सक्षम अधिकारी को हर तीन माह में प्रोगे्रस रिपोर्ट पेश करने को कहा हुआ है। ऐसे में संस्था को स्टे दिया ही नहीं जा सकता है।
    तीसरे अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश संजीवकुमार जैन ने संबंधित पक्षों को सुनने के बाद पाया कि संपदा अधिकारी ने संबंधित पक्षों को सुनकर उचित आदेश जारी किया है। संस्था ने माचल में जगह मिलने की जानकारी छुपाकर अपील लगाई है, जबकि उसे पहले ही दूसरी जगह जमीन मिली हुई है। साथ ही विवादित जगह उसे इस शर्त पर मिली थी कि जब अस्पताल के विकास के लिए जरूरत होगी, वह उसे खाली कर देगी। ऐसे में संस्था पहले ही अस्पताल के कार्य में व्यवधान डाल चुकी है और जगह खाली होने पर उसे कोई असीमित नुकसान नहीं होने वाला है। हाईकोर्ट ने भी संस्था को कोई स्टे नहीं दिया है।
    इन परिस्थितियों का हवाला देकर कोर्ट ने उसे स्टे देने से साफ इनकार करते हुए स्टे अर्जी खारिज कर दी और कहा कि संस्था को स्वच्छ हाथों से अदालत के समक्ष आना चाहिए था। अब और निर्माण को नहीं रोक सकते हैं।

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