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उज्जैन में शिप्रा के जल से उगाए 50 हजार बांस, सिंहस्थ में होंगे इस्तेमाल

  • April 21, 2025

    उज्जैन: उज्जैन में सिंहस्थ 2028 (Simhastha in Ujjain 2028) में इस बार बहुत कुछ अलग देखने को मिलेगा. इस बार धर्मध्वजाओं को लहराने के लिए पूरे उज्जैन में 50 हजार से ज्यादा बांस उगाए गए हैं, शिप्रा नदी के किनारे 10.72 हेक्टेयर में पूरा जंगल उगाया गया है, यहां शिप्रा नदी के पानी से बांस उगाए हैं, जहां 30 फीट ऊंचे बांस लगाए गए हैं, यह बांस उज्जैन वन मंडल की तरफ से निशुल्क उपलब्ध कराए जा रहे हैं. इन बांसों से सिंहस्थ में आने वाले सभी अखाड़े और साधु संतों को धर्मध्वजा लहराने के लिए दिया जाएगा. इन बांसों की बारीकी से वन विभाग की तरफ से देखरेख भी की जा रही है.

    बताया जा रहा है कि उज्जैन में शिप्रा नदीं के किनारे यह बांस 7 साल पहले ही लगा दिए गए थे. जिन्हें 30 फीट की ऊंचाई तक जाने देना है, हालांकि अभी इनकी ऊंचाई 20 से 25 फीट ही हुई है. अभी अगले दो साल और यह बांस लगे रहेंगे, जिससे इनकी लंबाई 30 फीट से ज्यादा हो जाएगी.


    वन विभाग की तरफ से मिली जानकारी के मुताबिक सिंहस्थ महाकुंभ शुरू होने से तीन महीने पहले ही इन बांसों की कटाई शुरू हो जाएगी और उन्हें व्यवस्थित कर वन विभाग की देखरेख में रखा जाएगा, जबकि बाद में कलेक्टर और मेला अधिकारी को यह बांस सौंप दिए जाएंगे, जहां सिंहस्थ मेला में 13 अखाड़ों समेत जितने भी साधु-संत आएंगे उन्हें यह बांस धर्म ध्वजा लहराने और अपने-अपने शिविरों में झंडा लगाने के लिए दिए जाएंगे. वन विभाग ने भैरवगढ़ मार्ग पर शिप्रा नदी के पास फिलहाल इन बांसों की पूरी देखरेख की जा रही है.

    बता दें कि बांस का अपना अलग धार्मिक महत्व होता है, हिंदू धर्म में बांस पर ही ध्वजा लगाई जाती है. ऐसे में सिंहस्थ के दौरान धर्मध्वजाएं इन्हीं बांसों पर लगेगी, क्योंकि यह आस्था का भाव माना जाता है. 10.72 हेक्टेयर में बांस का यह पूरा जंगल फैला है, बताया जा रहा है कि यह बांस बेंबोसा बाल्कोअ प्रजाति, जिसका बीज 2018 में रीवा की फ्लोरीकल्चर लेब से लाया गया था, जहां उज्जैन में कुल 5600 बांस के पौधों का प्लाटेंशन किया गया था, बताया जा रहा है कि यहां वन मंडल की तरफ से धार्मिक महत्व का भी पूरा ध्यान रखा जा रहा है और बांस के सभी झुंडों का पूरा ध्यान रखा जा रहा है.

    क्योंकि एक बांस के पेड़ से 20 से 25 बांस निकलते हैं, लेकिन यह सब बिना कटे फटे होने चाहिए, इसलिए यहां पूरी देखरेख की जा रही है. क्योंकि 50 हजार से ज्यादा बांसों में केवल शिप्रा नदीं का ही जल सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया गया है.

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