कुदरत का करिश्मा…आंखों में एक्स-रे, हाथ की उंगलियों में जादू
इंदौर। गांव (Village) से डेढ़ किलोमीटर दूर… खेत में… एक कबेलूदार कच्चा घर… सामने छप्पर…जहां कमर (waist), कंधे (shoulder) और घुटने ( knee) के दर्द (pain) से कराहते लोगों की कतार नजर आती है…सामने दरी पर एक पीडि़त उलटा लेटता है… कुर्सी पर बैठा एक व्यक्ति उसकी टांगों को झटके से खींचता है, पैर की कोई नस दबाता है…थोड़ी ही देर में पीडि़त पालती मारकर बैठ जाता है…दर्द की जगह उसके चेहरे पर ऐसी राहत नजर आती है जैसे उसे कोई दर्द था ही नहीं…उनके हाथों ठीक हो चुके हजारों इंदौरवासियों (Indore residents) का कहना है कि यकीनन कमल नागर (Kamal Nagar) की आंखों में एक्स-रे व हाथों में जादू है। उनके पास हर दुखती रग (नस) का इलाज है। लोग दर्द से कराहते हुए जाते हैं और राहत लेकर लौटते हैं।
नेमावर रोड (Nemavar Road) पर इंदौर से 50 किलोमीटर दूर करनावद ( Karnavad) के पास स्थित ग्राम बरखेड़ा सोमा ( Village Barkheda Soma) की यही कहानी है, जहां कच्ची सडक़ पर खेत में नागर परिवार का घर है। इस परिवार में तीन बेटे हैं। तीनों ही हुनरमंद हैं। कमल मंझले बेटे हैं। कमल नागर एमआरआई मशीनों की तरह पीडि़तों के शरीर में उन नसों को एक झटके में देख और समझ लेते हैं जो पीड़ा दे रही हैं। कहने को बरखेड़ा करनावद-हाटपीपल्या (Hatpipalya) के बीच एक छोटा गांव है, लेकिन इस गांव को बड़ी ऊंचाई दी है कमल नागर ने, जिनसे कमर, पीठ, कंधे, गर्दन, घुटने का इलाज कराने के लिए लोग इंदौर (Indore) और भोपाल (Bhopal) जैसे उन शहरों से भी बड़ी तादाद में जा रहे हैं जहां हर तरह की मेडिकल फैसिलिटी उपलब्ध है। नस दबाने से रोग दूर हुआ है यह नागर नहीं कहते। वो पीडि़त लोग कहते हैं जो तकलीफ से जूझ रहे थे और अब राहत महसूस कर रहे हैं। सातों दिन नि:शुल्क उपचार होता है। आवश्यकतानुसार मालिश के लिए तेल व कोई आयुर्वेदिक दवा भी वहीं से मिल जाती है। बस उपचार से पहले नि:शुल्क टोकन लेना होता है, जो कि एक गाड़ी में से जितने लोग पहुंचते हैं, उनके लिए होता है। टोकन सिर्फ आपका नंबर बताता है।
लोगों को आराम लगे, यही बड़ी पूंजी है
कमल नागर (Kamal Nagar) ने बताया 15 साल का था, जब बैलगाड़ी पलटने से घायल हो गया था। मुझे जिनके पास ले जाया गया, उन्होंने मिनटों में दर्द दूर कर दिया। तभी मैंने ठान लिया था कि विद्या सीखकर मैं भी मानव सेवा करूंगा। 30-35 साल हो चुके हैं। अब तो प्राकृतिक रूप से मुझे व्यक्ति के शरीर की नसें दिखती हैं। बस मैं इतना ही पूछता हूं कि कहां दर्द है। इसके बाद हाथ सीधे वहीं जाता है, जिन नसों की वजह से दर्द है। कुछ ही देर में लोगों को आराम लग जाता है। मेरे लिए यह बड़ी पूंजी है। भगवान करे जब तक जीवन है, तब तक ऐसे ही लोगों की सेवा करता रहूं।
झुकते नहीं बनता था, मिनटों में ठीक हुए
इंदौर निवासी मनवीरसिंह ने बताया कि जब मैं यहां आया, अकड़ा हुआ था, झुक भी नहीं पा रहा था। दो लोगों ने लेटाया था। कुछ ही देर में आराम लगा। मैं स्वयं पालती मारकर बैठा। राजगढ़ से आए मदन परमार ने बताया कि मैं दूसरी बार आया हूं। 30 दिन पहले आया था तो एल4एल5 में दिक्कत थी। फिजियोथैरेपी से भी राहत नहीं थी। सर्जरी का सोच रहा था। तभी किसी के बताने पर यहां आया था। दर्द है, लेकिन काफी कम। मुझे उम्मीद है कि यह भी जल्द दूर हो जाएगा।
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