टीबी जांच की नई तकनीक इग्रा टेस्ट से पता चला
12 महीने में इंदौर में 8000 नए टीबी मरीज मिले
इंदौर। प्रदीप मिश्रा। टीबी पीडि़त मरीजों के परिजनों के लिए टीबी टेस्ट, यानी जांच की इग्रा टेस्ट तकनीक (Igra Test Techniques) वरदान साबित हो रही है। नई तकनीक के जरिए टीबी मरीजों के संपर्क में रहने वालों या मरीज के परिजनों की जांच कर पता लगाया जा सकता है कि कहीं वह भी तो टीबी की चपेट में नहीं है। इतना ही नहीं, यह भी मालूम किया जा सकता है कि आने वाले समय में मरीज के करीबियों को टीबी होने की संभावना है या नहीं। टीबी डॉक्टरों का कहना है कि जिस घर में टीबी का मरीज हो उस घर के सदस्यों को भी इग्रा टेस्ट जरूर करवाना चाहिए। यदि मरीज विवाहित है तो मरीज के पति या पत्नी व उसके बच्चों को अनिवार्य रूप से जांच कराना चाहिए।
इस नई तकनीक को मेडिकल भाषा में इग्रा टेस्ट (Igra Test Techniques) नाम दिया गया है। इसके अलावा इसे टीबी गोल्ड टेस्ट भी बोला-कहा जाता है। टीबी-इग्रा टेस्ट की नई तकनीक के जरिए गुप्त और सक्रिय टीबी अस्पताल टीबी का पता लगाने में सक्षम हैं। गुप्त टीबी, यानी जिसके लक्षण तात्कालिक रूप से दिखाई नहीं पड़ते, मगर कुछ महीनों बाद व्यक्ति टीबी की चपेट में आ सकता है। सक्रिय टीबी, यानी जिसमें टीबी के लक्षण स्पष्ट नजर आते हैं अथवा जांच से साबित हो जाती है।
सिर्फ खून की जांच से ही टीबी का पता
किसी को टीबी की बीमारी है या नही यह पता लगाने के लिए अभी तक संदिग्ध व्यक्तियों की बलगम यानी खखार ,मतलब कफ की जांच की जाती है, उसका चेस्ट एक्सरे कराया जाता है। मगर इग्रा टेस्ट की नई तकनीक से टीबी मरीजो के परिजनों औऱ सम्पर्क में रहने वालों के ब्लड यानी खून की जांच के जरिये पता लगाया जा सकता है कि टीबी मरीज के सम्पर्क में रहने वालो को टीबी की बीमारी है या नही। इतना ही नही यह जानकारी भी मिल जाती है उनमे भविष्य मे टीबी होने की संभावना है अथवा नही।
मरीजों के 5 प्रतिशत परिजन चपेट में
जिला क्षय अधिकारी मल्हारगंज लाल अस्पताल के डॉक्टर राहुल श्रीवास्तव ने बताया कि पिछले दिनों इंदौर के टीबी पीडि़त मरीजों से संबंधित 1000 परिजनों के खून की जांच इग्रा टेस्ट की नई तकनीक से की गई तो इनके करीबी 50 पारिवारिक लोगों में टीबी की संभावना पाई गई। यानी पांच प्रतिशत करीबी लोग टीबी मरीज के संपर्क में आने से चपेट में आ चुके हैं। चपेट में आने वालों में ज्यादातर मरीज की पत्नी या फिर उनके बच्चे हैं।
12 महीनों में इतने नए मरीज मिले
मल्हारगंज लाल अस्पताल के टीबी रिकॉर्ड के अनुसार पिछले साल 12 महीनों में इंदौर जिले में सात हजार सात सौ सतहत्तर टीबी के नए मरीज मिले हैं। इनमें से 5057 मरीज सरकारी अस्पताल से इलाज कराने वाले हैं तो वहीं 2720 मरीज निजी अस्पतालों में इलाज करवा रहे हैं।
लगातार 180 दिन दवा लेना बेहद जरूरी
टीवी विशेषज्ञ डाक्टर श्री वास्तव ने बताया की जिस टीबी मरीज के परिजनों के खून में टीबी के बैक्टीरिया की मौजूदगी का पता चल ऐसे लोगो को 180 दिनों तक आईसोनियाजाइड दवा दी जाती है। नवजात से लेकर 12 साल तक के छोटे बच्चों को 5 0 एमजी ,12 से 18 साल वालो को 100 एमजी 18 साल से ऊपर उम्र वालो को 300 एमजी पावर की आईसोनियाजाइड दवा दी जाती है।
इतने मरीजों को मिल रहे 500 रु. महीना
इंदौर के टीबी संबंधित सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार सरकार की योजना के अनुसार टीबी मरीजों को उनके स्वस्थ होने तक 500 रुपए प्रतिमाह दिए जाते हैं। पिछले साल 6874 मरीजों को 34 लाख 37 हजार रुपए दिए गए। यानी सालभर में 4 करोड़ 12 लाख 24 हजार रुपए टीबी मरीजों को दिए गए। इसके अलावा उनके ठीक होने तक सभी मरीजों की जांचें व इलाज सरकार द्वारा मुफ्त में किया गया। ऐसे लोगों को 180 दिनों तक आइसोनियाजाइड दवा दी जाती है।
6 हजार से ज्यादा मरीज टीबीमुक्त
पिछले 12 महीनों में जहां 7777 नए मरीज मिले तो वहीं सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार 6316 मरीज पूरी तरह से स्वस्थ हो चुके हैं। बाकी का इलाज जारी है। टीबीमुक्त हो चुके मरीजों को नियमानुसार सरकार द्वारा हर महीने दी जाने वाली मदद बंद कर दी गई है।
टीबी जांच की नई तकनीक इग्रा टेस्ट से हम मरीज के संपर्क में रहने वाले पत्नी-बच्चे सहित अन्य परिजनों में टीबी बैक्टीरिया का पता लगाकर पहले से ही बचाव कर सकते हैं। यदि परिजन 180 दिन तक आइसोनियाजाइड दवा का बिना नागा किए इस्तेमाल करते हैं तो टीबी होने की संभावना खत्म हो जाती है।
डॉक्टर राहुल श्रीवास्तव, जिला क्षय अधिकारी, इंदौर
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