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    मध्यप्रदेश में स्टेट और नेशनल हाईवे से आवारा पशुओं को हटाने के लिए मिलेंगे 5 लाख

  • July 16, 2024

    • पशुपालन और डेयरी विभाग ने सभी कलेक्टरों को दिए निर्देश, पकड़े गए पशुओं को गौशालाओं को सौंपेंगे, हर जिले को होगा बजट आवंटित

    इंदौर। प्रदेश सरकार ने अब गौशालाओं को दिए जाने वाले अनुदान को दो गुना कर दिया है और क्षमता के अनुसार ही गौवंश रखने और सडक़ों पर नजर न आने के निर्देश मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने दिए हैं, जिसके चलते विभागीय मंत्री ने भी सभी जिला कलेक्टरोंको कहा है कि वे स्टेट और नेशनल हाईवे से पूरी सख्ती के साथ आवारा पशुओं को हटाएं और इसके लिए बजट में 5-5 लाख रुपए हर जिले को देना तय किया है और इसकी जिम्मेदारी कलेक्टरों को ही सौंपी गई है। चूंकि बजट में इसका स्पष्ट प्रावधान नहीं था। लिहाजा अब पशु कल्याण समिति की मदद से इस अभियान को अंजाम दिया जाएगा। प्रदेश में 1289 गौशालाएं सीएम गौ सेवा योजना के तहत संचालित होती है और इनमें सवा लाख से ज्यादा पशु मौजूद हैं और 627 गौशालाएं स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा चलाई जाती है, जिसमें लगभग 2 लाख पशुओं को रखा गया है।

    इंदौर शहर की सडक़ों पर कचरे के ढेर के साथ-साथ आवारा पशु विचरण करते नजर आने लगे हैं, जबकि पूर्व में अधिकारियों की सख्ती के चलते इन पशुओं को शहर से बाहर कर दिया था और लगातार पशु बाड़े भी पुलिस प्रशासन की सहायता से निगम ने खूब तोड़े और पशु पालकों पर रासुका तक की कार्रवाई भी की गई, जिसके चलते सडक़ों से आवारा पशु गायब हो गए थे। मगर अब नगर निगम की ढिलाई के चलते फिर से सडक़ों पर इन आवारा पशुओं को कब्जा होने लगा है। दूसरी तरफ स्टेट और नेशनल हाईवे भी आवारा पशुओं की समस्या से ग्रसित हैं। दरअसल, कई हाईवे तो अब शहरों के बीच से या नजदीक से गुजरने लगे हैं, जिसके चलते शहर के भीतर विचरण करने वाले ये आवारा पशु हाईवे पर भी पहुंच जाते हैं। यही कारण है कि अभी बायपास पर प्राधिकरण के जरिए हाईवे अथॉरिटी ने दोनों तरफ स्टील की जालियां-रैलिंग लगवाई है, ताकि कोई व्यक्ति या पशु भी मैन केरेजवे पर नहीं आ सके। राज्यमंत्री पशु पालन और डेयरी विभाग ने सभी कलेक्टरों को भी इस संबंध में पत्र लिखा है कि हाईवे से गौवंश को हटाने की जिम्मेदारी उनकी है और चूंकि बजट की कमी आड़े आ रही थी, जिसके चलते पशु कल्याण समिति के जरिए इस काम को करवाया जाएगा और प्रत्येक जिले को 5-5 लाख रुपए की राशि भी दी जा रही है। कलेक्टरों से कहा गया है कि वे शासन को पत्र लिखकर इस राशि की मांग कर सकते हैं।


    जो पशु हटाए जाएंगे या पकड़ेंगे, उन्हें गौशालाओं को सौंप दिया जाएगा, ताकि वे इन गौवंश की देखभाल कर सकें। प्रदेश में सीएम गौसेवा योजना के तहत 1289 गौशालाएं संचालित हो रही है, जिनमें सवा लाख से अधिक पशु मौजूद हैं। दूसरी तरफ कई सामाजिक, धार्मिक और व्यापारिक संगठनों से लेकर अन्य एनजीओ भी गौशालाओं का संचालन कर रहे हैं, जिनकी संख्या पूरे प्रदेश में 627 बताई गई है, जहां पर 2 लाख पशुओं को आश्रय दिया गया है। एक और विसंगति यह है कि जो गौवंश सडक़ों से पकड़े जाते हैं उनके लिए अलग से कोई बजट नहीं है। पशु पालन एवं डेयरी विभाग का अमला इन गौवंश को पकडक़र गौशालाओं में तो लाता है मगर उसके पास कोई बजट नहीं रहता, जिसके चलते थोड़े ही दिन के पकड़े गए आवारा पशुओं को रखने के बाद उन्हें छोडऩा पड़ता है। दरअसल शासन भी सिर्फ उन्हीं गौवंशों के लिए राशि देता है जिन्हें टेगिंग की जाती है, वहीं गौशालाओं में भी इन सडक़ों से पकड़े गए पशुओं को रखने की कोई व्यवस्था नहीं रहती और असहाय-बीमार गौवंश की बेहतर देखभाल के लिए ही अब शासन स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं और 5-5 लाख रुपए की राशि, जो कि अत्यंत कम है, फिलहाल सभी कलेक्टरों को दी जाएगी। शहर के भीतर नगर निगम को इस कार्रवाई को करना है। मगर उसका अमला भी फिलहाल इस मामले में पीछे ही है। यही कारण है कि शहर की सडक़ों पर कचरों के ढेर के साथ-साथ आवारा पशुओं की तादाद भी बढ़ती जा रही है। शहर आवारा कुत्तों की समस्या से भी भीषण परेशान है और उसका ही कोई हल अभी तक निगम के कर्ताधर्ता नहीं खोज पाए हैं। पिछले दिनों कई दुर्घटनाएं भी आवारा पशुओं से लेकर कुत्तों के काटने के चलते हो चुकी है।

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