हर पाठक ऐसे जुड़ा, जैसे परिवार का ही सदस्य हो
अग्रिबाण एक अखबार के रूप में नहीं, बल्कि एक परिवार के रूप में शहर में जाना जाने लगा है। अखबार समय पर नहीं पहुंचता है तो फोन घनघनाना शुरू हो जाते हैं कि आज हमारी कॉलोनी में अखबार नहीं आया। 46 साल के अपने सफर में अखबार ने उस मुकाम को छुआ, जहां पहुंचने के लिए न जाने कितने दौड़ में आए और पिछड़ते चले गए। अपनी बेबाक खबरों, समसामयिक विषय पर लिखी खरी-खरी और समाज को जगाने वाली खबरों के साथ-साथ सामाजिक गतिविधियों की जानकारी देने में अग्रणी अग्रिबाण दुकानों और संस्थानों से निकलकर घरों में भी पहुंच गया। भले ही मोबाइल पर खबरें पढ़ ली जाती हों, लेकिन संतुष्टि और पुष्टि तो अग्रिबाण को पढऩे के बाद ही मिलती है। परिवार के एक सदस्य की तरह अग्रिबाण आज सबकी जरूरत है। अभी भी दोपहर की चाय अग्रिबाण के बिना अधूरी होती है, लेकिन प्रतिस्पर्धा ने इसे लंच के समय हाथों में पहुंचाना शुरू कर दिया है। अग्रिबाण की खबर पर शहर में चर्चा न हो, ऐसा कोई दिन नहीं जाता। व्यापारी वर्ग हो या मेहनत-मजदूरी करने वाला या फिर कॉर्पोरेट ऑफिस में बैठने वाला, सबकी जरूरत आज अग्रिबाण बन गया है और इसे खास बनाती है अग्रिबाण परिवार की मेहनत। सुबह के अखबार के 4 घंटे के अंदर ही न केवल आपको शहर में होने वाली घटनाओं से रूबरू करवाना, बल्कि सचेत करना, सजग करना, आने वाले कल की जानकारी देना, शहर के विकास से रूबरू कराना, चिंताओं पर चिंतन करना, वक्त वक्त पर लोगों की मुसीबतों में शामिल होना। सरकार को झंझोडऩा, प्रशासन को चेतावनी, चुनौती तक दे डालना। अच्छे को अच्छा कहना, बुरे को बुरा कहने की ताकत रखना यह अग्निबाण का सलीका भी रहा और जिम्मेदारी भी बनी। अग्रिबाण परिवार का हर सदस्य शब्दों की कसौटी पर स्वयं को खरा साबित करने की जहां होड़ में रहता है, वहीं अखबार के सैकड़ों वितरक समय पर अखबार को पहुंचाने की जिम्मेदारी निभाने से नहीं चूकते हैं भले ही कड़ाके की ठंड हो या गर्मी की तपन, बरसात की फुहार हो या धुआंधार बारिश… वितरकों की निष्ठा अखबार की मेहनत को मंजिल तक पहुंचाती है और हर पाठक की खबरों से लेकर विचारों तक की भूख को शांत करती है। तभी हर पाठक आज अग्रिबाण अखबार को अपना परिवार समझता है और अपने आपको उसका सदस्य।
-संजीव मालवीय
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