नई दिल्ली । जिस देश में लोकतंत्र (Democracy) होता है, वहां हर पांच साल बाद होने वाला चुनाव (Election) ही सबसे बड़ा पर्व होता है. गुजरात (Gujarat) में आज पहले चरण की वोटिंग है और इस पर सिर्फ देश का ही नहीं बल्कि दुनिया के 42 इस्लामिक मुल्कों (islamic countries) का भी ध्यान लगा हुआ है. इसलिये नहीं कि उन्हें गुजरात से कोई खास मोहब्बत है बल्कि उनकी दिलचस्पी ये जानने में है कि 2002 में गोधरा की घटना (Godhra incident) से भड़के दंगों के बाद इस प्रांत का निज़ाम बदलेगा या नहीं. शायद इसीलिये राजनीतिक पंडित इसे लोकसभा चुनाव से भी ज्यादा अहम मान रहे हैं.
हालांकि ये तो गुजरात की जनता ही तय करेगी कि वो 27 साल से राज कर रही बीजेपी को ही फिर से पांच साल का मौका देती है या फ़िर राज्य को एक खिचड़ी जनादेश की तरफ ले जाएगी. ये मुद्दा इसलिये महत्वपूर्ण है कि इतने साल बाद सत्तारूढ़ पार्टी को आम आदमी पार्टी के इस दंगल में उतरने की वजह से त्रिकोणीय मुकाबले का सामना करने पर मजबूर होना पड़ा है.
बेशक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का वह गृह राज्य है, लिहाज़ा वहां बड़ी चुनावी सभाएं आयोजित करवाना उनकी सियासी मजबूरी है. जिस तरह से तमाम केंद्रीय मंत्रियों के अलावा बीजेपी शासित सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को चुनाव प्रचार में झोंका गया है, उससे ये संकेत मिलता है कि बीजेपी को ये आभास हो चुका है कि अरविंद केजरीवाल की आप सिर्फ कांग्रेस का ही नहीं, बल्कि उसका भी खेल बिगाड़ रही है. शायद यही वजह है कि गुजरात के जिलों में जाति समीकरण को साधने के लिए बीजेपी ने अन्य राज्यों के मंत्रियों को भी चुनावी ड्यूटी पर तैनात कर दिया.
बीते दिनों मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में रहते हुए छात्र-जीवन के पुराने मित्र रहे और जो अब राज्य सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री हैं, उन्हें फोन मिलाया तो वो आउट ऑफ रीच जा रहा था. रात में पलटकर उनका फोन आया तो बताया कि वे गुजरात के किसी ग्रामीण इलाके में चुनाव-प्रचार करने में व्यस्त थे. इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि बीजेपी ने इस चुनाव को किस कदर अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है.
गुजरात की 182 विधानसभा की सीटों में से आज 19 जिलों की 89 सीटों पर चुनाव पर वोटिंग होंगी. जिसमें सभी राजनीतिक दलों के 788 दावेदार चुनावी मैदान में उतरे हैं. पहले चरण में गुजरात के सौराष्ट्र और दक्षिणी गुजरात की सीटों पर वोट डाले जाएंगे, जहां कई दिग्गजों की किस्मत दांव पर है. लेकिन इसमें सबसे ज्यादा अहम है, मोरबी की सीट जहां पिछले दिनों झूलते हुए पुल के गिर जाने से 135 से भी ज्यादा बेगुनाह लोगों की मौत हुई थी.
मोरबी में बने पुल टूटने के बाद यह सीट चर्चा का विषय बनने के साथ ही बीजेपी के लिए भी बेहद चिंता की बात इसलिये बनी हुई है कि इसके अलावा आसपास की तीन-चार सीटों पर भी इसका नकारात्मक असर भुनाने में कांग्रेस व आम आदमी पार्टी ने कोई कसर नहीं छोड़ी है. हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव में भी यहां बीजेपी का कोई बहुत अच्छा प्रर्दशन नहीं था और बेहद कम वोट शेयर के साथ ही उसने ये जीती थी.
अगर 2017 के चुनाव-नतीजों पर गौर करें, तो यहां बीजेपी का ही पलड़ा भारी रहा था. तब भी राज्य में दो चरणों में ही मतदान हुआ था. जिसमें पहले चरण की 89 सीटों में से बीजेपी के खाते में 48 सीटें आई थीं. यदि प्रतिशत की बात करें तो बीजेपी ने 48 सीटों के साथ पहले चरण में 54 फीसदी सीटों को जीता था.
वैसे गुजरात को भौगोलिक नजरिए से देखें, तो सूरत विधानसभा का क्षेत्र सबसे बड़ा शहर है. जिसके अंतर्गत 16 विधानसभा की सीटें शामिल है. पहले चरण के मतदान में सबसे अधिक सीट सूरत में ही हैं. चूंकि सूरत के नगर निगम पर आम आदमी पार्टी का कब्ज़ा है, लिहाजा यहां बीजेपी व आप के बीच ही मुख्य टक्कर होने के आसार हैं. सूरत विधानसभा के अंतर्गत 16 निर्वाचन क्षेत्र जिसमें सूरत ईस्ट, सूरत नॉर्थ, सूरत वेस्ट, मांडवी, मांगरोल, ओलपाड, उधना, वारछा, चोयार्स, कामरेज, करंज, कतार्गम, लिंबायत, महुवा और मजूरा जैसे क्षेत्र शामिल हैं.
हालांकि कटु सत्य है ये भी है कि लोकतंत्र के इस पर्व में शामिल होने वाला कोई भी शख्स ये नहीं जानता कि उसका एक वोट सरकार बदलने की ताकत रखता है भी या नहीं लेकिन फिर भी इसमें बढ़-चढ़कर भागीदारी होने से ही जनतंत्र के मजबूत होने की ताकत पता लगती है.
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