पृथ्वी की 40 फीसदी जमीन अकेले खेती के आधुनिक तौर-तरीकों की भेंट चढ़ी
इंसानी लालच के कारण दुनियाभर में भूमि को भारी नुकसान पहुंचा है और इसका लगातार क्षरण हो रहा है। पृथ्वी की 40 फीसदी जमीन अकेले खेती के आधुनिक तौर-तरीकों की भेंट चढ़ चुकी है.
यह बात संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट में सामने आई है, जिसमें 2050 तक दक्षिण अमेरिका के आकार के बराबर जमीन नष्ट होने का अनुमान लगाया गया है।
मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीसीडी) के ग्लोबल लैंड आउटलुक के दूसरे संस्करण (जीएलओ-2) में मृदा, जल और जैव विविधता जैसे भूमि स्रोतों के कुप्रबंधन और दुरुपयोग का उल्लेख किया गया है। इसमें बताया गया है कि खराब होती जमीन धरती पर कई प्रजातियों के स्वास्थ्य और अस्तित्व पर खतरा बढ़ा रहा है। हालांकि, समय रहते भूमि संरक्षण कर लिया गया तो जलवायु परिवर्तन और प्रजातियों के नुकसान को रोकने की उम्मीद की जा सकती है।
50 फीसदी वैश्विक जीडीपी पर असर
भूमि क्षरण आधी मानवता पर सीधा असर डालता है, जिसके चलते मोटे तौर पर दुनिया की 50% जीडीपी दांव पर लगी है। जीएलओ-2 को संयुक्त राष्ट्र के 21 साझेदार संगठनों के साथ मिलकर पांच वर्षों में तैयार किया है। इसमें 2050 तक भूमि क्षरण को लेकर तीन परिदृश्य बताए गए हैं। पहला-जस की तस स्थिति, दूसरा-पांच करोड़ वर्ग किमी का पुनरुद्धार और तीसरा-विशेष पारिस्थितिकी कार्यों के लिए महत्वपूर्ण प्राकृतिक इलाकों के संरक्षण के जरिए संवर्धित पुनरुद्धार के उपाय।
भूमि बहाली से 28 साल में मिलेगा नया भू-भाग
भूमि पुनरुद्धार के पर्याप्त उपाय किए गए तो 2050 तक अतिरिक्त 40 लाख वर्ग किमी प्राकृतिक इलाके बढ़ जाएंगे। संरक्षण का सबसे ज्यादा लाभ दक्षिण, दक्षिणपूर्वी एशिया और लातिन अमेरिका में अपेक्षित हैं। यूएनसीसीडी रिपोर्ट के मुताबिक, जमीन क्षरण, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और जैव विविधता क्षति को घटाकर वैश्विक अर्थव्यवस्था को सालाना 125-140 खरब डॉलर मिल सकते हैं।
भूमि संसाधनों का सही उपयोग जरूरी
रिपोर्ट का कहना है कि आज भूमि संसाधनों का संरक्षण, बहाली और उनका सही उपयोग वैश्विक अनिवार्यता बन गए हैं। रिपोर्ट ने देशों के 2030 तक एक अरब हेक्टेयर क्षरित भूमि के पुनरुद्धार के संकल्प का भी उल्लेख किया है, जिसके लिए 1.6 खरब डॉलर की जरूरत है।
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