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बिहार चुनाव और कृषि मुद्दों पर चर्चा के लिए कांग्रेस स्टीयरिंग कमेटी की बैठक में 4 नेता रहे उपस्थित

November 18, 2020


नई दिल्ली। कांग्रेस की स्टीयरिंग कमेटी की मंगलवार को बैठक हुई। बिहार चुनाव के बाद यह उनकी पहली बैठक थी। इसमें केवल चार सदस्य उपस्थित हुए जहां विभिन्न मसलों पर चर्चा की गई। संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल, मीडिया चेयरपर्सन रणदीप सिंह सुरजेवाला, वरिष्ठ नेता अंबिका सोनी और महासचिव मुकुल वासनिक वर्चुअल मीटिंग में शामिल हुए।

बहरहाल, बताया गया कि इस बैठक में बिहार चुनाव और कृषि कानूनों को लेकर सिग्नेचर कैम्पेन को लेकर चर्चा की गई। हालांकि आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई, लेकिन सूत्रों ने बताया कि इस मीटिंग के दौरान बिहार और गुजरात, मणिपुर, मध्य प्रदेश और देश के बाकी हिस्सों में हुए उपचुनाव परिणामों पर चर्चा की गई।

बैठक में अहमद पटेल और एके एंटनी की कमी महसूस की गई। यह बैठक कपिल सिब्बल के असंतोष जाहिर किए जाने के बाद की गई। सिब्बल उन 23 नेताओं में शामिल रहे हैं जिन्होंने कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठाया था। फिलहाल, कपिल सिब्बल ने बिहार चुनाव में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन को लेकर भी सवाल उठाया है।

बिहार के अलावा मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात समेत कई राज्यों में हुए चुनावों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। इससे पार्टी के नेता के अलावा गठबंधन के नेता भी नाराज हैं और कांग्रेस को आत्ममंथन करने की सलाह दे रहे हैं। एक अखबार से बातचीत में कपिल सिब्बल ने भी हाईकमान को आत्ममंथन की सलाह दी थी।

कपिल सिब्बल का कहना था कि देश के लोग, न केवल बिहार में, बल्कि जहां भी उपचुनाव हुए, जाहिर तौर पर कांग्रेस को एक प्रभावी विकल्प नहीं मानते। यह एक निष्कर्ष है। बिहार में विकल्प आरजेडी ही था। हम गुजरात में सभी उपचुनाव हार गए। लोकसभा चुनाव में भी हमने वहां एक भी सीट नहीं जीती थी। उत्तर प्रदेश की कई सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों को 2 फीसदी से कम वोट मिले। मुझे उम्मीद है कि कांग्रेस आत्ममंथन करेगी।

वहीं कपिल सिब्बल के इंटरव्यू को लेकर पार्टी के नेता और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने नाराजगी जाहिर की। उन्होंने पार्टी के आंतरिक मसलों को मीडिया में न लाने की बात कही है। अशोक गहलोत ने कहा कि कपिल सिब्बल के बयान से कांग्रेस कार्यकर्ता आहत हैं। उन्हें पार्टी के आंतरिक मसलों को मीडिया में लाने की जरूरत नहीं है। कांग्रेस ने कई बुरे दौर देखे हैं। साल 1969, 1977, 1989 और फिर 1996 में पार्टी बुरे दौर से गुजरी, मगर पार्टी ने अपनी नीतियों, विचारधारा और नेतृत्व के विश्वास के दम पर जबरदस्त वापसी की।

 

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