इन्दौर (Indore)। हर मृत देह को मिले मोक्ष। यह खयाल आते ही आज से 35 वर्ष पूर्व अपने सहयोगियों (the allies) की मदद से एमवाय अस्पताल से शुरू हुआ लावारिस लाशों (unclaimed corpses) का अंतिम संस्कार आज भी अनवरत हो रहा है। संस्था महाकाल सेवा संस्था और सुलताने एकता समिति ने इन वर्षों में करीब 3 हजार 500 से ज्यादा लावारिस लाशों का उनके धर्म और जाति के आधार पर अंतिम संस्कार किया।
देश, धर्म एवं समाज के उत्थान के लिए कोई ऐसा कार्य करने की चेष्टा करना, जिसे कोई ना करता हो, उसे वह कर अपने जीवन को सार्थक कर सके, ऐसे विचार रखने वाले समाजसेवी अशोक गोयल ने 35 वर्ष पहले अपने साथी कलीम पठान के सहयोग से लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार करने का जो बीड़ा उठाया था, वह आज भी निरंतर जारी है। इसमें अब करीम पठान के दोनों बेटे कलीम एवं फिरोज उनकी सहायता करते हैं। गोयल के अनुसार लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार के पहले उनका धर्म और जाति जानने की कोशिश की जाती है, जिसके अनुसार उस मृतक का अंतिम संस्कार उनकी जाति के विधि-विधान से किया जा सके। 35 वर्षों में लगभग तीन हजार पांच सौ लावारिस लाशों की अस्थियों का विसर्जन मां नर्मदा में किया।
कोरोना काल में सबसे ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ा
अशोक गोयल के अनुसार लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार के कार्य में 35 वर्षो में जितनी समस्या नहीं आई, उससे ज्यादा कोरोना काल में आई। एक दिन में हमने करीब 4 से 5 लोगों के अंतिम संस्कार अपनी संस्थाओं के करीब 40 से 50 सदस्यों के माध्यम से शहर के अलग-अलग श्मशान और कब्रिस्तानों में किए। वह समय जिन्दगी का सबसे कठिन समय था।
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