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    32 साल पहले बैतूल में बनी जनपरिषद पूरी दुनिया में छाई

  • August 29, 2022

    कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता
    एक पत्थर तो तबीअत से उछालो यारो।

    दुष्यंत कुमार के इस मशहूर शेर को बैतूल के चार अज़ीज़ दोस्तों ने जि़ंदगी का मक़सद बनाया और उस मक़सद को जनपरिषद जैसे इंटरनेशनल इदारे की शकल दे दी। सन 1988 में रामजी श्रीवास्तव बैतूल में दैनिक भास्कर का ब्यूरो देखते थे। आमतौर से क़स्बाई सहाफियों (पत्रकार) में पढऩे लिखने का कम और पत्रकार की ठसक से ज़्यादा लेना देना होता है। उस वखत तो अखबार के एजेंट ही उनके रिपोर्टर हुआ करते थे। लेकिन रामजी श्रीवास्तव उस भेड़चाल से अलग थे। कालिज में ही उन्हें हिंदी पे उम्दा कमांड था। लिहाज़ा बैतूल से वो जो भी खबरें भास्कर में भेजते उनमे ज़्यादा कांट छांट करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। भास्कर के संपादक महेश श्रीवास्तव ने भी उनके हुनर को संवारा। रामजी 22 साल तक भास्कर के ब्यूरो रहे। उनके दिल मे अपनी अलहदा पेचान बनाने का जुनून भोत था। लिहाज़ा कोई 32 बरस पेले इंन्ने अपने दोस्त शंकर यादव, रवि त्रिपाठी और बलराम साहू के साथ एक ऐसी तंज़ीम बनाने का तहैया करा के जिससे इनकी मआशरे में अलग पेचान बने। इन चार यारों ने बैतूल में जो तंज़ीम बनाई जो आज पूरी दुनिया मे जनपरिषद के नाम से जानी जाती है। इब्तिदाई दौर में जनपरिषद ने बैतूल और अतराफ़ के गांवों में हेल्थ केम्प, छोटे पैमाने पे वर्कशाप और सेमिनार मुनक़्क़ीद किये। इसमे जि़ले के अफसरों को बुलाया। इससे जनपरिषद की अलग पहचान तो बनी, बाकी वो सिर्फ बैतूल तक ही महदूद (सीमित) रही। रामजी और इनके दोस्तों के दिल में जनपरिषद को कुलहिन्द लेवल पे क़ायम करने की थी। सो, रामजी ने बैतूल से भोपाल आने का फैसला किया। यहां सहाफत के साथ ही जनपरिषद के काम को आगे बढ़ाते रहे। इतने सालों की मेहनत का नतीजा ये है साब के आज जनपरिषद के हिंदुस्तान के 16 राज्यों में 183 चेप्टर काम कर रहे हैं। इस इदारे के 3800 मेम्बर हैं।



    मध्यप्रदेश में इनके 78 चेप्टर हैं। यही नहीं जनपरिषद 6 चैप्टर बैरूनी मुमालिक (विदेश) में भी क़ायम हो चुके हैं। थायलेंड, फिलिपींस, नेपाल, बांग्लादेश और पोलैंड में जनपरिषद काम कर रही है। बकौल रामजी। हर चेप्टर का एक चेयरमैन होता है। बाकी के अराकीन उसके ज़ेरे एहतमाम काम करते हैं। आने वाले वक्त में जनपरिषद के 250 चेप्टर अपने मुल्क और 20 चेप्टर दूसरे मुल्क में बनाने का टारगेट है। जनपरिषद देश दुनिया मे पर्यावरण पे बतौर-ए-खास काम कर रही है। इसके चेप्टर गांव कस्बो में जाकर लोगों से राब्ता करते हैं। उन्हें पेड़ लगाने में मदद के साथ ही साफ आबोहवा की अहमियत बताते हैं। हर चेप्टर हर साल सर्दियों में ज़रूरतमंदों को गरम कपड़े और बीमारों को फल, दवा वगेरह का इंतज़ाम करता है। हर बरस नेत्र शिविर लागए जाते हैं। साबिक डीजीपी एनके त्रिपाठी जनपरिषद के चेयरमैन हैं। रिटायर्ड आईपीएस महान भारत, रिटायर्ड आईएएस अजातशत्रु, एडमिरल राकेश पंडित, ब्रिगेडियर एसएन गुप्ता, पूर्व आईपीएस संतोष द्विवेदी, पद्मश्री सुनील दवास जैसी शख्सियतें जनपरिषद से बावस्ता हैं। ये लोग हर बरस बड़े पैमाने पे पर्यावरण के माहिरों के साथ गौर-ओ-फिक्र करते हैं। हर सेमिनार या वर्कशाप के हासिल को सरकार को भेजा जाता है। रामजी श्रीवास्तव के मुताबिक हमे कोई सरकारी मदद नहीं मिलती। हमारे काम को आप लायन्स और रोटरी क्लब का देसी एडिशन कह सकते हैं। फर्क इतना है कि उन इदारों के पास इफरात पैसा है और हमारे पास धन कम लेकिन इरादे मज़बूत हैं। मुबारक हो साब जनपरिषद को बैतूल की चाय की गुमटी से इंटरनेशनल पहचान देने के लिए।

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