पन्ना। मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) बाघों की रक्षा करने में कमजोर साबित होता नजर आ रहा है. देश में इस साल अब तक कुल 107 टाइगर की जान जा चुकी है. इसमें सर्वाधिक 32 मौतें मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में हुई हैं. बीते साल के मुकाबले स्थिति थोड़ी बेहतर हुई है. पिछले साल की तुलना में बाघों (tigers) की मौत में कमी आई है. 2021 में देशभर में 127 टाइगर की जान गई थी,जिसमें से 42 मध्य प्रदेश के थे. टाइगर कंजर्वेशन में कर्नाटक का रिकॉर्ड सबसे बेहतर है. कर्नाटक में टाइगर की संख्या 524 है, जो मध्य प्रदेश से सिर्फ 2 ही कम है. इस साल कर्नाटक में सिर्फ 13 ही टाइगर की मौत दर्ज की गई है.
मध्य प्रदेश में सर्वाधिक छह टाइगर रिजर्व हैं. यह देश में सबसे ज्यादा है. नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) की रिपोर्ट के मुताबिक 21 टाइगर की मौत इन्हीं टाइगर रिजर्व के अंदर हुई है,जबकि 11 टाइगर रिजर्व के बाहर मारे गए हैं. सर्वाधिक 7 टाइगर की मौत बांधवगढ़ नेशनल पार्क, 6 की पेंच नेशनल पार्क (Pench National Park), 4 की कान्हा नेशनल पार्क, दो की संजय नेशनल पार्क डुबरी तथा पन्ना और सतपुड़ा (Panna and Satpura) के भीतर 1-1 टाइगर की इस साल मौत है. कहा जा रहा है कि ज्यादातर मौतों की वजह एक्सीडेंटल या टेरिटोरियल फाइट है.
सफारी बनाने के दौरान हुई बाघों की मौत
वहीं, जबलपुर हाई कोर्ट (Jabalpur High Court) में दाखिल एक जनहित याचिका में कहा गया है कि पेंच में छह और बांधवगढ़ में एक बाघ की मौत टाइगर सफारी का निर्माण कार्य शुरू होने के बाद हुई है. इसमें से एक बाघ का शिकार किया गया था. इसकी पुष्टि बाद में एनटीसीए की रिपोर्ट में भी हुई. बफर जोन में बिना वैरिफिकेशन मजदूरों को एंट्री दी गई थी. याचिकाकर्ता अजय दुबे ने बताया कि टाइगर रिजर्व के बफर जोन में टाइगर सफारी शुरू करने के एमपी फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के प्रस्ताव पर सेंट्रल जू अथॉरिटी (सीजेडए) ने भी आपत्ति दर्ज कराई थी. वन विभाग और मध्यप्रदेश ईको टूरिज्म बोर्ड के अफसरों ने सीजेडए की आपत्ति को खारिज कर दिया था.
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