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    Ujjain से चलने वाली 700 में से 300 Buses बंद

  • August 10, 2021

    • कोरोना काल के 16 महीनों में पूरी तरह गड़बड़ा गई परिवहन व्यवस्था
    • यात्री परेशान: बसें आधी रह जाने से कई मार्गों के फेरे कम हुए, कई ग्रामीण क्षेत्रों की कनेक्टिविटी टूटी
    • डीजल सहित अन्य खर्च 40 प्रतिशत तक बढ़े, किराया कम होने से बस संचालकों को हो रहा नुकसान

    उज्जैन। कोरोना महामारी ने प्रदेश के यात्री बस परिवहन की कमर तोड़ दी है। 16 माह में उज्जैन से चलने वाली 700 में से करीब 300 बसों का संचालन बंद हो चुका है। बसें बंद होने से प्रमुख मार्गों पर बसों के फेरे कम हो चुके हैं, जिससे कई ग्रामीण क्षेत्रों की कनेक्टिविटी भी टूट चुकी है। इससे यात्रियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। दूसरी ओर बसों की संचालन लागत 40 प्रतिशत से भी ज्यादा बढऩे और किराए में वृद्धि ना होने से बस संचालकों के लिए बसें चलाना मुश्किल हो रहा है। अगर ऐसी ही हालत रही तो प्रदेश से निजी बसों का संचालन बंद होने की नौबत आ सकती है।

    उल्लेखनीय है कि प्रदेश में कोरोना के प्रकोप के कारण 22 मार्च 2020 से ही यात्री बसों के संचालन पर रोक लगा दी थी। 100 दिन के लॉकडाउन में जिले की 700 के लगभग निजी बसें जहाँ की तहाँ खड़ी रह गई थी। हालांकि इसके बाद सितंबर से प्रदेश में बसें चलना शुरु हो गई थी लेकिन उज्जैन में उसके बावजूद 15 से 20 फीसदी बसें ही सड़कों पर लौट पाई थी। इधर दूसरी लहर के कारण एक बार फिर लॉकडाउन और सख्ती से हालत फिर बिगड़ गई। पहली लहर में बसों का संचालन रोक दिया गया था। दूसरी लहर में शासन ने रोक नहीं लगाई, लेकिन यात्री ना मिलने से बसों का संचालन ना के बराबर ही हुआ। स्थानीय बस ऑपरेटरों के अनुसार उज्जैन से प्रदेश सहित अन्य प्रदेशों के प्रमुख शहरों के लिए चलने वाली करीब 700 बसें पूरे जिले में मौजूद हैं। इनमें कई बसों के स्टेज कैरेज परमिट (रूट परमिट) भी थे। इनमें से करीब 40 फीसदी बसें सवारी नहीं मिलने या अन्य कारणों के चलते फिलहाल सड़कों पर नहीं चल रही है। यानी इस समय करीब 400 बसें ही जिले से अन्य राज्यों से लेकर आसपास के शहरों और अंचलों में चल रही है।

    ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा परेशानी
    बसों की संख्या कम होने से प्रमुख शहरों तक बसें तो जा रही हैं, लेकिन फेरे आधे से भी कम हो चुके हैं। पहले जहां प्रमुख शहरों के लिए 10 मिनट में बसें मिल जाया करती थीं, वहीं अब एक घंटे के इंतजार के बाद मिलती हंै। इससे सबसे ज्यादा परेशानी ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के लिए खड़ी हो गई है। उज्जैन से प्रमुख शहरों तक बस जाने के बाद वहां से आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए ग्रामीण बसें मिल जाती थीं, लेकिन अब दोनों बसों का समय मैच ना होने से ग्रामीण परेशान हैं।

    निजी वाहनों का चलन बढ़ा
    ग्रामीण क्षेत्रों में बसों की कनेक्टिविटी कम होने से निजी वाहन चालक यात्रियों को ढो रहे हैं। इसके लिए वे छोटे वाहनों का इस्तेमाल करते हैं और क्षमता से कहीं ज्यादा यात्रियों को बिना अनुमति बैठाते हैं। इससे हादसे के डर के साथ ही शासन को राजस्व का भी भारी नुकसान हो रहा है। दूसरी ओर यात्रियों से भी मनमानी वसूली की जा रही है। शासन द्वारा किराया वृद्धि के संदर्भ में यदि निर्णय नहीं किया गया और परमिट नियम शिथिल नहीं किए गए तो अवैैध वाहनों की भरमार हो जाएगी।

    इन शहरों के लिए चलती हैं बसें
    उज्जैन से मुख्य रूप से प्रदेश में जबलपुर, रीवा, सतना, सागर, भोपाल, बुरहानपुर, खंडवा, सेंधवा, बड़वानी, खरगोन, आगर, सोयत, आलीराजपुर, झाबुआ, गुना, ग्वालियर के लिए बसें चलती हैं और इंटर स्टेट रूट्स की बात करें तो औरंगाबाद, पुणे, शिर्डी, झालावाड़, नागपुर, उदयपुर, वडोदरा, अहमदाबाद, सूरत के लिए रूट परमिट बसें चलती हैं। वहीं आल इंडिया टूरिस्ट परमिट लेकर दिल्ली, मुंबई, जयपुर, राजकोट, रायपुर जैसे शहरों के लिए भी बसें चलती हैं।

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