इंदौर। रेसीडेंसी एरिया में चल रहे सर्वे में नया खुलासा हुआ है कि दस्तावेजों में दर्ज 1083 एकड़ जमीन में से लगभग 300 एकड़ जमीन लापता हो गई है। अब प्रशासन शहर के पॉश रेसीडेंसी क्षेत्र में लापता 300 एकड़ जमीन की तलाश कर रहा है। रेसीडेंसी क्षेत्र जो कभी मध्य भारत में ब्रिटिश प्रशासन का पावर हाउस था, उसका मिशल बंदोबस्त किया जा रहा है। कोई नक्शा या कोई दस्तावेज नहीं होने के कारण न प्रशासन को खबर थी कि उनके आधिपत्य में क्या-क्या आता है, न ही आम जनता को, जो वहां सालों से निवासरत है। जमीन का हक नहीं होने के कारण रहवासी भी प्रयोग नहीं कर पा रहे थे, जिसे देखते हुए प्रशासन ने पहल की और अब यह मुहिम रंग लाने लगी है। रहवासियों को नोटिस थमाने के बाद जब प्रशासन ने ड्रोन सर्वे कराया तो उनके भी होश उड़ गए कि 333 एकड़ भूमि कम कैसे है। दस्तावेजों की फिर जांच की जा रही है। पुराने दस्तावेज खंगाले जा रहे हैं।
750 एकड़ ही मिल रही
रिकॉर्ड बताते हैं कि रेसीडेंसी क्षेत्र 1,083 एकड़ में फैला हुआ है, लेकिन सर्वेक्षण में केवल 750 एकड़ जमीन ही मिल रही है। जमीन में गड़बड़ी का खुलासा तब हुआ, जब प्रशासन ने इस प्रमुख और ऐतिहासिक जमीन के अधिकारों के नए रिकॉर्ड तैयार करने के लिए इस साल फरवरी में रेसीडेंसी का सर्वेक्षण शुरू किया। ज्ञात हो कि कलेक्टर गाइडलाइन के अनुसार यहां भूमि दर आवासीय और वाणिज्यिक दोनों संपत्तियों के लिए 80 हजार रुपए प्रति वर्गमीटर है, जबकि बाजार दरें बहुत अधिक हैं।
दस्तावेजों को नहीं रखा सुरक्षित
ज्ञात हो कि यह क्षेत्र सरकारी और निजी भूमि का मिश्रण है, लेकिन दस्तावेजों का रखरखाव ठीक से नहीं किया गया था, जिससे विवाद शुरू हो गया और संपत्ति का उपयोग बाधित हुआ। विवादों को खत्म करने के लिए प्रशासन ने पूरे रेसीडेंसी क्षेत्र की नपती शुरू की। दो अधिकारी बदल जाने के बाद आखिरकार काम अपने आखिरी दौर तक तो पहुंचा, लेकिन अब यह नया खुलासा हुआ है।
अब होगा मानचित्र तैयार
पूरे क्षेत्र का मानचित्रण करने के लिए दो ड्रोन सर्वेक्षण किए गए और अधिकांश भूमि-धारकों ने स्वामित्व के समर्थन में दस्तावेज प्रस्तुत भी किए हैं। जब अधिकारों के नए रिकॉर्ड की प्रक्रिया शुरू की, तो अधिकारियों को भारी खामियां नजर आने लगीं। भौतिक और ड्रोन सर्वेक्षण की रिपोर्ट मेल नही खा रही है। फाइलों में मौजूद 1,083 एकड़ का मिलान नहीं कर पाने के कारण अधिकारी हैरान हैं और दो बिंदुओं पर मंथन व खोज कर रहे हैं कि 1,083 एकड़ जमीन रिकॉर्ड में त्रुटि थी या संपत्ति कहीं और स्थित है और रेसीडेंसी के हिस्से के रूप में पंजीकृत है। एक अधिकारी ने बताया कि इस बड़े अंतर के अन्य कारणों से इनकार नहीं किया जा सकता है। लापता 333 एकड़ जमीन की तलाश अब सर्वेक्षण का हिस्सा है। अधिकारियों को उम्मीद है कि यह प्रक्रिया तीन महीने में पूरी हो जाएगी, तब तक उनके पास कुछ जवाब होंगे। मामले की पुष्टि करते हुए एडीएम सपना लोवंशी ने कहा कि सर्वेक्षण में 750 एकड़ जमीन शामिल है और सर्वेक्षण अभी भी जारी है। हम रिकॉर्ड में उल्लेखित 1083 एकड़ के साथ निष्कर्षों का मिलान कर रहे हैं। इस अंतर के कुछ कारण अवश्य होंगे। हम इस पर काम कर रहे हैं।
दावे-आपत्तियां बुलाईं
अब प्रशासन निजी व सरकारी संस्थाओं द्वारा दावा किए गए स्वामित्व की सूची प्रकाशित करेगा। इनका निपटान होने के बाद रेसीडेंसी क्षेत्र में भूमि के स्वामित्व की अंतिम अधिसूचना जारी की जाएगी। एडीएम लोवंशी ने कहा कि जल्द ही रिकॉर्ड में सभी खाताधारकों के नाम, उनके शेयर, जिम्मेदारियां और सुगमता अधिकार दर्ज होंगे।
यह है इतिहास
रेसीडेंसी कोठी, जिसके नाम पर इस क्षेत्र का नाम रखा गया है, एक समय मध्यप्रदेश की सत्ता का केंद्र थी। यहां से ब्रिटिश प्रशासक मंदसौर, धार, झाबुआ और यहां तक कि भोपाल और ग्वालियर राज्यों को नियंत्रित करते थे। महू सैन्य प्रतिष्ठान की जड़ें यहीं थीं। पुरातत्ववेत्ता जफर अंसारी ने कहा कि कई पड़ोसी रियासतों के राजाओं ने अंग्रेजों के साथ प्रशासनिक व्यवहार में आसानी के लिए यहां अपने दूसरे घर (रतलाम कोठी, झाबुआ कोठी, धार कोठी) बनाए। राजपाट के दिनों से रेसीडेंसी प्रमुख अचल संपत्ति रही है। अब इसका एक टुकड़ा गायब है।
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