नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट विस्तार से जुड़ी चर्चाओं में कांग्रेस पार्टी छोड़ भाजपा का दामन थामने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम सबसे ज्यादा सुर्खियों रहा। मध्यप्रदेश में भाजपा की वापसी को कराने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बुधवार शाम राष्ट्रपति भवन में मंत्री पद की शपथ ली। इस कैबिनेट विस्तार में सिंधिया को नागरिक उड्डयन मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई है। खास बात यह है कि 30 साल पहले उनके पिता ने भी यही मंत्रालय संभाला है।
ग्वालियर के राजघराने से ताल्लुक रखने वाले सिंधिया पांचवीं बार संसद पहुंचे हैं। उनके पिता माधवराव सिंधिया कांग्रेस के बड़े नेता थे। माधवराव सिंधिया पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री रहे थे। माधवराव सिंधिया ने 1991 से 1993 तक राव सरकार में नागरिक उड्डयन और पर्यटन मंत्रालयों को संभाला था। बाद में मनमोहन सिंह सरकार में ऊर्जा मंत्री (स्वतंत्र) प्रभार) रहे। अब ज्योतिरादित्य अपने पिता की तरह ही नागर विमानन मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालेंगे।
बाप-बेटा नागरिक मंत्रालय से पहले रह चुके केंद्रीय मंत्री
खास बात यह है कि नागरिक उड्डयन मंत्रालय का कार्यभार संभालने से पहले माधवराव सिंधिया और ज्योतिरादित्य दोनों केंद्र में मंत्री के तौर पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं। पिता माधवराव नागरिक उड्डयन मंत्रालय संभालने से पहले राजीव गांधी सरकार में रेल मंत्री रह चुके थे। वहीं बेटा ज्योतिरादित्य मनमोहन सरकार में संचार और आईटी मंत्री के तौर पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं। ज्योतिरादित्य को डाक व्यवस्था को पुनर्जीवित करने का श्रेय दिया जाता है।
पिता के नक्शे कदमों पर ज्योतिरादित्य
वर्ष 2002 में पहली बार सांसद बने ज्योतिरादित्य ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत पिता माधवराव सिंधिया के निधन के बाद की थी। 18 सितंबर, 2001 को माधवराव की एक हवाई हादसे में मृत्यु हो गई थी। उस दौरान माधवराव गुना से लोकसभा सांसद थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने पिता की लोकसभा सीट से ही पहली बार चुनाव लड़ा और फरवरी 2002 में साढ़े चार लाख से ज्यादा वोटों से जीत हासिल कर संसद पहुंचे थे।
प्राइवेट नौकरी से केंद्रीय मंत्री
ज्योतिरादित्य सिंधिया राजनीति में आने से पहले एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे। दरअसल, बड़े महाराज के नाम से मशहूर माधवराव सिंधिया अपने बेटे की पढ़ाई-लिखाई और करियर को लेकर चिंतित रहा करते थे। वे चाहते थे कि उनके बेटे के साथ राजा-महाराजाओं की तरह व्यवहार न हो। ज्योतिरादित्य के बचपन से ही बड़े महाराज ने इसका खास ध्यान रखा और उन्हें आम युवकों की तरह शिक्षा-दीक्षा और नौकरी करने के लिए प्रेरित किया। यही कारण था कि ज्योतिरादित्य ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद एक प्राइवेट कंपनी में अपनी सेवाएं देनी शुरू कर दी थी। हालांकि, पिता के निधन के बाद उन्होंने राजनीति को ही अपना करियर बना लिया।
माधवराव ने बेटे की पढ़ाई पर दिया विशेष ध्यान
माधवराव ने अपने बेटे को दून स्कूल में पढ़ने को भेजा था। उनका मानना था कि सिंधिया स्कूल ग्वालियर में उनके बेटे को ज्यादा लाड़-प्यार मिलेगा। स्कूली शिक्षा पूरी होने पर वे ज्योतिरादित्य को अपने साथ दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज और इंग्लैंड के ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी लेकर गए। ऑक्सफोर्ड में ज्योतिरादित्य का एडमिशन नहीं हो पाया तो अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में उनका दाखिला कराया।
सिंधिया ने यहां दीं अपनी सेवाएं
वर्ष 1991 में पढ़ाई पूरी करने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने लॉस एंजिल्स में अंतरराष्ट्रीय कंपनी मैरिल लिंच के साथ अपने करियर की शुरुआत की थी। इसके बाद उन्होंने कुछ समय तक न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र संघ में भी काम किया। अगस्त, 1993 में भारत लौटने के बाद उन्होंने मुंबई में मॉर्गन स्टेनले कंपनी के लिए भी काम किया।
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