इंदौर, प्रदीप मिश्रा।
न उन्हें खांसी या कफ (cough or phlegm) की कोई शिकायत थी, न उन्हें बुखार (Fever) की कोई समस्या थी, यानी उनमें ऐसे कोई लक्षण नहीं थे, जिससे लगे की इन्हें टीबी (TB) सम्बन्धित जांच या इलाज की कोई जरूरत है। मगर जब मरीज की अन्य जांचें की गई तो मालूम पड़ा कि इंदौर जिले में 3 हजार 311 ऐसे मरीज हैं, जो प्राइवेट पार्ट, पेट (stomach), हड्डी (bone), गठान, हार्ट या फेफड़े, रीढ़ की हड्डी व चमड़ी से सम्बन्धित टीबी की बीमारी से पीडि़त हैं।
वाकई उन्हें सावधान हो जाना चाहिए, जो सिर्फ यह समझते हैं कि टीबी बीमारी का सम्बंध सिर्फ फेफड़ों से होता है। मल्हारगंज टीबी हॉस्पिटल के रिकार्ड के अनुसार इन्दौर जिले में इस साल 9 माह में यानी सितम्बर माह तक टीबी के 6 हजार 694 मरीज जांच में पाए गए हैं। इनमें से फेफड़े की टीबी वाले 3 हजार 383 हैं, वहीं 3 हजार 311 ऐसे मरीज हैं, जिनके शरीर के जनांगों यानी अंदरूनी निजी अंगों के अलावा रीढ़ की हड्डी, बॉडी स्किन यानी शरीर की चमड़ी, पेट के अंदर यानी आंतों में, लिवर में और हार्ट व फेफड़ो के आसपास वो हिस्से जहां पानी भर जाता है, सहित अन्य अंगों में भी टीबी की बीमारी पाई गई है। इन सभी मरीजों का मुफ्त में इलाज किया जा रहा है।
अन्य टीबी वाले इतने मरीज
– फेफड़े वाले 3 हजार 383 टीबी मरीज
– पेट सम्बंधित अंगों वाले 621 टीबी मरीज
– जनांग औऱ अंदरूनी अंगों वाले 63 मरीज
– शरीर और नसों में गठानों वाले 901 मरीज
– शरीर के कई हिस्सों में टीबी के 22 मरीज
– शरीर हड्डी वाले अंगों में टीबी के 150 मरीज
– दिल के बाहरी हिस्सों में टीबी के 8 मरीज, फेफड़े के बाहरी हिस्सों में टीबी के 741 मरीज
– रीढ़ की हड्डी वाले टीबी के 227 मरीज
– ब्रेन यानी मस्तिष्क टीबी के 163 मरीज
– इनके अलावा अन्य टीबी के 415 मरीज
मुफ्त जांच और इलाज
सभी प्रकार की टीबी वाले मरीजों की मुफ्त में जांच और इलाज किया जाता है । 6 माह तक इन मरीजों को सरकार हर महीने 500 रुपए भी इनके खातों में जमा कराती है। जिला क्षय अधिकारी डॉक्टर शैलेन्द्र जैन ने बताया कि इंदौर सहित पूरे जिले टीबी की जांच और इलाज के लिए 55 सेंटर हैं, जहां कोई भी जाकर अपनी जांच और इलाज करवा सकता है।
फेफड़े की टीबी का पता बलगम यानी खखार की जांच से ही चल जाता है, मगर बाकी अंगों में टीबी की मौजूदगी का पता एमआरआई, सीटी स्कैन, बायोप्सी सहित अन्य जांचों से चलता है। कसी भी प्रकार की टीबी की बीमारी को लगातार 6 माह तक दवा खाकर ठीक किया जा सकता है।
-डॉ शैलेन्द्र जैन, जिला क्षय अधिकारी, लाल अस्पताल मल्हारगंज इन्दौर
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