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    3.5 लाख मंडी कारोबारियों के पेट पर पड़ेगी लात, APMC बंदी की आशंका

  • September 14, 2020

    नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने कोरोना काल में किसानों के हितों में नीतिगत फैसले लेते हुए अध्यादेश के जरिए कृषि क्षेत्र में बड़े सुधार की शुरुआत की, लेकिन इससे मंडी कारोबारियों की चिंता बढ़ गई है। इसलिए अध्यादेश को स्थाई तौर पर कानूनी स्वरूप प्रदान करने के लिए जब संसद में विधेयक लाए गए हैं तो एक तरफ सदन में विपक्षी दलों के सदस्य इसका विरोध कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ विभिन्न प्रांतों की मंडियों के कारोबारी विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

    केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सोमवार को लोकसभा में कहा कि ‘कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020’ और ‘मूल्य आश्वासन पर किसान समझौता (अधिकार प्रदान करना और सुरक्षा) और कृषि सेवा विधेयक 2020’ पेश किए, जिसका कांग्रेस सांसदों ने विरोध किया। वहीं, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, राजस्थान व अन्य प्रांतों में मंडी के कारोबारियों ने विगत दिनों मंडियां बंद कर कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश 2020 का विरोध किया।

    कारोबारियों को आशंका है कि राज्य के एपीएमसी (कृषि उपज विपणन समिति) एक्ट के तहत संचालित मंडियों से बाहर जब किसान अपने उत्पाद बेचेंगे तो एपीएमसी का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।
    राजस्थान खाद्य पदार्थ व्यापार संघ के अध्यक्ष बाबूलाल गुप्ता ने बताया कि, ” इस कानून से एपीएमसी का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा, जिससे सिर्फ राजस्थान में 13,000 मंडी कारोबारियों और मंडी कारोबार से रोजी-रोटी कमाने वाले करीब 3.5 लाख लोगों का रोजगार छिन जाएगा।”

    राजस्थान की 247 मंडियों के कारोबारियों के संगठन के अध्यक्ष गुप्ता ने कहा, “सरकार कह रही है कि इस कानून से किसान बंधन मुक्त हो जाएंगे, जबकि हकीकत यह है कि मंडी के बाहर किसान पहले भी अपने उत्पाद बेचते थे और इसके लिए उन पर कोई प्रतिबंध कभी नहीं रहा।”

    उन्होंने कहा कि एपीएमसी मंडी पर किसानों का भरोसा होता है क्योंकि वहां लाइसेंसधारी कारोबारी होते हैं और किसानों को उनके उपज की बिक्री के साथ-साथ उनका भुगतान मिलने की गारंटी रहती है।

    राजस्थान की बूंदी मंडी के कारोबारी उत्तम जेठवानी ने कहा कि, ” राजस्थान की मंडियों में 1.6 फीसदी मंडी शुल्क है, इसके अलावा एक फीसदी कृषि कल्याण उपकर लगता है, फिर 2.25 फीसदी आढ़तियों का कमीशन होता है, लेकिन मंडी के बाहर कोई शुल्क नहीं है। ऐसे में किसानों की उपज का अगर मंडी के बाहर कोई खरीदार होगा तो फिर एपीएमसी मंडियों में किसान क्यों अपनी उपज लेकर आएगा।”

    उन्होंने कहा कि ऐसे में मंडी के कारोबारियों को काफी नुकसान हो रहा है। यह भी मांग की कि मंडियों को शुल्क मुक्त कर दिया जाए। मध्यप्रदेश के भोपाल के कारोबारी अमित खंडेलवाल ने भी कहा कि नये कानून से मंडियों के कारोबारियों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है।

    लोकसभा में कृषि मंत्री जब कृषि क्षेत्र में सुधार के कार्यक्रमों को अमलीजामा पहनाने वाले ये दोनों विधेयक पेश कर रहे थे, तो कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, शशि थरूर समेत कई अन्य विपक्षी दलों के सांसदों ने इसका विरोध किया। सांसद गौरव गोगई ने विधेयक को किसान विरोधी बताते हुए कहा कि सरकार किसानों का अधिकार छीनकर कॉरपोरेट को सौंप रही है।

    कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि इससे एपीएमसी एक्ट पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा कि राज्य अगर चाहेगा तो मंडियां चलेंगी। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि मंडी की परिधि के बाहर जो ट्रेड होगा, उस पर नया कानून लागू होगा।

    उन्होंने कहा कि इससे किसानों को उनकी फसल बेचने की आजादी मिलेगी और व्यापारियों को लाइसेंस राज से मुक्ति मिलेगी, इस प्रकार भ्रष्टाचार पर नियंत्रण होगा।

    कृषि के क्षेत्र में सुधार और किसानों के हितों की रक्षा के मकसद से कोरोना काल में केंद्र सरकार ने कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश 2020 मूल्य आश्वासन पर किसान समझौता (अधिकार प्रदान करना और सुरक्षा) और कृषि सेवा अध्यादेश 2020 लाए, जिनकी अधिसूचना पांच जून को जारी हुई थी।

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